KORBA :मनरेगा की नर्सरी सह पौधरोपण से ग्रामीणों का हो रहा आजीविका संवर्धन,500 से अधिक किसान और समूह सदस्य रेशम के कृमि पालन से हुए लाभान्वित

0मनरेगा से 93869 मानव दिवस का हुआ सृजन
0रोजगार के साथ ही ग्रामीण कमा रहे हैं अतिरिक्त आमदनी

कोरबा। जिले में मनरेगा और रेशम विभाग के अभिसरण से ग्रामीण आजीविका में नई ऊर्जा का संचार हो रहा है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना अंतर्गत विगत वर्षों में तैयार किए गए नर्सरी और पौधारोपण से 546 किसान और महिला स्व-सहायता समूह के सदस्य रेशम कृमि पालन (कोसा पालन) से सीधे लाभान्वित हो रहे हैं।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत विगत वर्षों में जिले के सभी विकासखंडों में 30 स्थानों पर रेशम विभाग के द्वारा अर्जुन और साजा के पौधों की नर्सरी तथा पौधारोपण किया गया जिससे 93869 मानव दिवस सृजित किए गए। इस कार्य से पिछले 6 वर्षों में करीब 7422 श्रमिकों को रोजगार के अवसर मिले।

रेशम विभाग के तकनीकी मार्गदर्शन और फील्डमैन मंगल दास महंत के सहयोग से ग्रामीणों ने अर्जुन और साजा वृक्षों पर रेशम की इल्लियों का पालन शुरू किया है। इससे किसानों को औसतन ₹50,000 वार्षिक की अतिरिक्त आमदनी हो रही है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार आया है।

कोसा पालन की वैज्ञानिक प्रक्रिया- फील्डमैन श्री महंत ने बताया कि कोसा पालन की प्रक्रिया में कोसा फलों को 5-5 के 20 गुच्छों में बांधकर कपलिंग की जाती है, जो 48 घंटे में पूर्ण होती है। माइक्रोस्कोप से अंडों की जांच कर बीमार अंडों को हटाया जाता है। फिर अंडों की सफाई एसिड और फॉर्मेलिन घोल से की जाती है और उन्हें सुखाकर ट्रे में रखा जाता है। 8 दिनों के भीतर इल्ली निकलती हैं, जिन्हें अर्जुन वृक्ष पर छोड़ा जाता है।

रेशम की ये इल्लियाँ लगातार पत्तियाँ खाकर बड़ा आकार लेती हैं और अंततः केवल 24 घंटे में रेशम फल का आवरण बना लेती हैं। प्रथम फसल डेढ़ माह में तैयार हो जाती।इन फलों से तैयार बीज बाजार में ₹3600 प्रति हजार फल की दर से बिकता है, जबकि कोसा धागा ₹7000 से ₹8000 प्रति किलो की दर से कोसा केंद्र में खरीदा जाता है। कई किसान इस धागे को सीधे बाजार में बेचकर और अधिक मुनाफा कमा रहे हैं।

सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता की ओर कदम👇

कोरबा जिले में यह पहल न केवल किसानों की अतिरिक्त आय का माध्यम बन रही है, बल्कि महिला समूहों के लिए भी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक सशक्त कदम सिद्ध हो रही है। मनरेगा के तहत लगाए गए पौधे अब आमदनी के स्थायी साधन बन चुके हैं।

सलोरा के किसान श्री छेदूराम और श्री भूलसीराम ने बताया कि महात्मा गांधी नरेगा ग्रामीणों के लिए उत्कृष्ट मिसाल बनता जा रहा है जिससे रोजगार, पर्यावरण और आजीविका संवर्धन एक साथ संभव हो रहा है।