श्रद्धांजलि : अन्याय से लड़ने त्याग दी सरकारी नौकरी, जल-जंगल-जमीन और आदिवासियों के लिए उम्र भर संघर्षरत रहे पूर्व विधायक दादा हीरासिंह मरकाम, पंचतत्व में विलीन हुई पार्थिव देह….

कोरबा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक हीरा सिंह मरकाम का पार्थिव देह गुरुवार को उनके गृहनिवास क्षेत्र तिवरता में पंचतत्व में विलीन किया गया। काफी लंबे समय से अस्वस्थ हीरा सिंह मरकाम ने बुधवार को बिलासपुर के निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर मिलते ही छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के उनके समर्थकों में शोक की लहर दौड़ पड़ी। गुरुवार को उनका अंतिम संस्कार किया गया जिस अवसर पर उनका अंतिम दर्शन करने बड़ी संख्या में समर्थक एकत्र हुए। नम आंखों से सभी ने जल-जंगल जमीन के लिए संघर्षरत अपने इस नेता को अंतिम विदाई दी।

हीरा सिंह मरकाम एक अद्भुत प्रतिभा के धनी रहे हैं। उनके संबंध में नजदीकियों ने बताया कि वे 14 जनवरी 1942 को तत्कालीन बिलासपुर जिले के तिवरता गांव के एक खेतिहर मजदूर किसान के यहां जन्मे जो अब कोरबा जिले के अंतर्गत आता है। दादा के नाम से प्रसिद्ध अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रमुख आदिवासी राजनेताओं में एक हीरासिंह मरकाम के 79 वर्ष की आयु में निधन के साथ ही प्रदेश की राजनीति का एक अध्याय समाप्त हो गया। अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर में हीरा सिंह मरकाम पाली-तानाखार विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। सन् 1952 में अपने गाँव से लगभग 40 किलोमीटर दूर सूरी गाँव के माध्यमिक विद्यालय में उन्होंने दाखिला लिया। 2 अगस्त 1960 को प्राइमरी स्कूल में शिक्षक के रूप में ग्राम रलिया में नियुक्ति हुई। अध्यापन के दौरान ही वर्ष 1964 में स्वाध्यायी छात्र के रूप में हायर सेकंडरी स्कूल की परीक्षा उन्होंने उत्तीर्ण की। कटघोरा तहसील से 12 किलोमीटर दूर पोड़ी उपरोड़ा में प्राइमरी स्कूल के अध्यापक के रूप में वर्ष 1977 तक कार्यरत रहें। अपने शिक्षण कार्य के साथ अध्ययन दादा हीरासिंह मरकाम ने निरंतर जारी रखा। उन्होंने पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से एम.ए. किया और फिर नौकरी के दौरान ही गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर से वर्ष 1984 में एलएलबी में गोल्ड मेडल प्राप्त किया। 80 के दशक में अनेक शिक्षकों से ट्रांसफर-पोस्टिंग के नाम पर हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और जिले के शिक्षा अधिकारी कुँवर बलवान सिंह के खिलाफ मोर्चा शुरु किया।
0 शिक्षक की नौकरी छोड़ राजनीति में आए
2 अप्रैल 1980 को शिक्षक की नौकरी से त्यागपत्र देकर पाली-तानाखार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव में उन्होंने नामांकन दाखिल किया और निर्दलीय प्रत्याशी होने के बावजूद दूसरे स्थान पर रहे। 1985-86 में दूसरा चुनाव भाजपा प्रत्याशी के रूप में लड़कर वे पहली बार मध्यप्रदेश विधानसभा में पहुंचे। 1990 के लोकसभा चुनाव में बागी होकर जांजगीर-चांपा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़े लेकिन हार का सामना करना पड़ा। 13 जनवरी 1991 को स्वतंत्र रूप से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की घोषणा कर वर्ष 1995 में गोंडवाना गणतन्त्र पार्टी से विधानसभा मध्यावधि चुनाव लड़ा और जीता। वर्ष 2003 के विधान सभा चुनाव में उनकी पार्टी से तीन विधायकों दरबू सिंह उईके, राम गुलाम उईके और मनमोहन वट्टी ने जीत हासिल की। इसके बाद के विधानसभा चुनावों में भी वे लड़ते रहे पर कम अंतरों से हार ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। उन्होंने आदिवासियों की आर्थिक उन्नति और बचत की आदत डालने के लिए गोंडवाना बैंक की स्थापना की जो बाद में विवाद से घिर गया और छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री रहे स्व. अजीत जोगी से इस विषय को लेकर वैचारिक मतभेद भी सामने आए व दलीय टकराहट भी रही। बाद के समय में हालिया विधानसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस ने मरवाही में आयोजित किसान सम्मेलन में हीरासिंह से नजदीकियां बढ़ाने का दावा किया जिसे भी श्री मरकाम ने इनकार कर दिया।
0 गोंड दर्शन पर काम किया
वे मानते थे कि देश में 1964 से पहले गोंड समाज से बड़ा रामायणी टीकाकार कोई नही था। हालाँकि बाद में गोंड दर्शन पर उन्होंने बेहद काम किया। गोंड लोगों को एकसूत्र में पिरोकर मजबूत करने के लिए ही गोंडवाना गणतंत्र पार्टी स्थापित की। निजी जीवन हो या संघर्षपूर्ण राजनैतिक यात्रा, उन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं किया। सादा जीवन उच्च विचार से ओत-प्रोत दादा हीरासिंह के निधन को राजनेताओं ने अपूरणीय क्षति बताया है। उनके निधन से निःसंदेह छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की आदिवासी राजनीति के एक युग का अवसान हो गया।