रायपुर । नदी का बहाव, लकड़ी के लट्ठे और ऊपर खड़े तस्कर — ऐसा नजारा कोई फिल्मी क्लाइमैक्स नहीं, बल्कि हमारी अपनी ज़मीन पर रोज़ दिखने वाली सच्चाई बन चुका है।
उदंती रेंज में तस्करों ने जो तरीका अपना लिया है, वह न सिर्फ़ नयेपन में चौंकाने वाला है बल्कि वन संरक्षण व्यवस्था की सूचना-निगरानी की पोल भी खोलता है — स्थानीय लोग और पर्यावरणकर्ता इसे बिना शर्त ‘पुष्पा-स्टाइल’ करार दे रहे हैं।
नदी के सहारे सीमा पार — तस्करी का नया मंशा-सहित ‘स्टंट’

मामला कुछ यूँ है — कीमती सागवान काटकर लट्ठों में बांधा जाता है, नदी के बहाव पर इन्हें छोड़ दिया जाता है और तस्कर उन पर खड़े होकर एक राज्य से दूसरे राज्य तक ‘फिल्मी अंदाज़’ में लकड़ी पहुंचाते हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि यह कोई एक-दो बार की घटना नहीं; महीनों से यही तरीका चल रहा है और आसपास के इलाकों में सागवान बड़े पैमाने पर गायब हो रहा है।
यह तो देखने में फिल्म जैसा है — पर असलियत झकझोर देने वाली है। हम रोज़ देखते हैं कि रात में लकड़ी निकलती है और सुबह तक कुछ पता नहीं चलता।
👉वन विभाग की प्रतिक्रिया और स्थानीय नाराज़गी
मिली जानकारी के मुताबिक़ कर्मचारियों का कहना है कि “पतासाजी की टीमों को लगाया गया है और कार्रवाई शीघ्र की जाएगी।” पर स्थानीयों का गुस्सा घटने का नाम नहीं ले रहा — वे कहते हैं कि फाइलों में उलझा प्रशासन जंगल के वासियों से बड़े-बड़े एनओसी माँगता है, पर असल कटाई और तस्करी पर कार्रवाई धीमी और कम प्रभावी रही है।
उदंती-सीता नदी टाइगर रिजर्व जैसे संवेदनशील संरक्षण इलाके हैं — यहाँ की हर कटाई केवल पेड़ की कमी नहीं, बल्कि जैव विविधता और इकोसिस्टम की बर्बादी है।
स्थानीय बोल रहे हैं कि अगर रोक न लगी तो आने वाले समय में यह ‘सिनेमाई’ तस्करी स्थायी रूप से बढ़ जाएगी और जंगल नक़्शे से घटते चले जाएंगे।