लड़कियों का खतना POCSO एक्ट का उल्लंघन ? यचिका पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र को जारी किया नोटिस …..

दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मुस्लिम समुदाय, खासकर दाऊदी बोहरा समुदाय में प्रचलित महिला जननांग विकृति (एफजीएम) या महिला खतना पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई करने की अनुमति दी। जस्टिस बी वी नागरथना और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने केंद्र सरकार और अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी किया है। सर्वोच्च न्यायालय अब इस याचिका पर केंद्र और अन्य पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आगे निर्णय लेगी।

एनजीओ चेतना वेलफेयर सोसाइटी ने याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है कि एफजीएम इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और यह बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में बताया गया कि इस पर कोई स्वतंत्र कानून मौजूद नहीं है, लेकिन यह बचे को चोट पहुंचाने से संबंधित कई धाराओं (113, 118(1), 118(2), 118(3)) के तहत आता है। याचिका में बताया गया है कि पॉक्सो एक्ट के तहत भी किसी नाबालिग के जननांग को गैर-चिकित्सीय कारणों से छूना अपराध माना गया है।

👉स्वास्थ्य और मानवाधिकार पर प्रभाव

डब्ल्यूएचओ ने एफजीएम को लड़कियों और महिलाओं के मानवाधिकार का गंभीर उल्लंघन बताया है। याचिका में कहा गया है कि यह गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, जिससे संक्रमण, प्रसव संबंधी जटिलताएँ और अन्य शारीरिक नुकसान हो सकते हैं। यह यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स के तहत दी गई मूलभूत गारंटियों का भी उल्लंघन है।

👉भारतीय किसान संघ आजाद ट्रंप ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

भारतीय किसान संघ आजाद ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इस याचिका में उत्तर प्रदेश में जारी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया को तीन महीने तक बढ़ाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि राज्य में जारी चार हफ्तों का यह विशेष पुनरीक्षण 15.35 करोड़ मतदाताओं के लिए ‘व्यावहारिक रूप से असंभव’ है और इससे बड़ी संख्या में लोगों का नाम मतदाता सूची से गलत तरीके से हट सकता है।
याचिका में तीन महीने का अतिरिक्त समय मांगा गया है, ताकि गलत तरीके से नाम हटने की संभावना को खत्म किया जा सके, ग्रामीण मतदाताओं की सुरक्षा हो सके और मतदाता सूची को सही और निष्पक्ष रखा जा सके। चुनाव आयोग ने चार नवंबर को उत्तर प्रदेश में यह विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया शुरू की थी।