बिलासपुर/कोरबा (पब्लिक फोरम)।छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने कोरबा बालको के शांति नगर निवासियों के अधिकारों को संरक्षण देते हुए एक ऐतिहासिक और राहत भरा फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति श्री राकेश मोहन पांडे की एकल पीठ ने वेदांता समूह की कंपनी ‘बालको’ (BALCO) को कड़े निर्देश दिए हैं कि वह प्रभावितों की मुआवजा प्रक्रिया को तय समय सीमा के भीतर पूर्ण करे। यह आदेश शांति नगर के निवासियों के लंबे संघर्ष में एक बड़ी जीत मानी जा रही है।
👉जानें क्या है पूरा मामला?



यह पूरा प्रकरण बालको द्वारा स्थापित 1200 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट से जुड़ा है। प्लांट के कूलिंग टावर से निकलने वाले भीषण प्रदूषण और शोर के कारण शांति नगर (बालको नगर) के निवासियों का जीवन दूभर हो गया था। इसी समस्या के समाधान, उचित मुआवजे और पुनर्वास की मांग को लेकर वंदना सोनी ने हाईकोर्ट में याचिका (WPC No. 2724/2016) दायर की थी।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि पूर्व में दायर डिलेन्द्र यादव,आर नारायण द्वारा दायर एक जनहित याचिका के बाद बालको प्रबंधन ने भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास का आश्वासन दिया था। संशोधित सर्वे सूची में याचिकाकर्ता का नाम शामिल होने के बावजूद, उन्हें न तो मुआवजा मिला और न ही पुनर्वास का लाभ दिया गया।
👉कोर्ट में बालको की दलील और आदेश
सुनवाई के दौरान बालको प्रबंधन ने न्यायालय के समक्ष स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता का नाम प्रभावितों की सूची में शामिल है। कंपनी की ओर से कहा गया कि मुआवजे के आकलन और भुगतान की प्रक्रिया को जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा। राज्य शासन ने भी इस तथ्य की पुष्टि की।
👉तर्कों को सुनने के बाद, माननीय न्यायमूर्ति ने मामले का निपटारा करते हुए स्पष्ट निर्देश दिए:-
याचिकाकर्ता के लिए: उन्हें 15 दिनों के भीतर अपना प्रतिवेदन (आवेदन) बालको प्रबंधन (प्रतिवादी क्रमांक 6) के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।
बालको के लिए: प्रतिवेदन प्राप्त होने की तारीख से 90 दिनों के भीतर बालको को मुआवजे का आकलन कर उस पर अंतिम निर्णय लेना होगा और भुगतान प्रक्रिया पूरी करनी होगी।
👉फैसले के मायने: अब आश्वासन नहीं, कानूनी अधिकार
हाईकोर्ट का यह आदेश केवल एक याचिकाकर्ता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शांति नगर के उन सभी परिवारों के लिए एक मजबूत कानूनी नजीर (Precedent) बन गया है, जो वर्षों से प्रदूषण का दंश झेल रहे हैं।
इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कानूनी जानकारों का कहना है, “यह आदेश शांति नगर के सभी प्रभावित निवासियों के अधिकारों की जीत है। अब मुआवजा और पुनर्वास कंपनी की मर्जी या आश्वासन पर निर्भर नहीं है, बल्कि यह उनका एक अनिवार्य कानूनी दायित्व बन गया है।”
न्यायालय ने इस प्रकरण में किसी भी पक्ष पर कोई अतिरिक्त लागत नहीं लगाई है। इस निर्णय से क्षेत्र के निवासियों में न्याय के प्रति विश्वास और गहरा हुआ है।
