वैक्सीन मतलब कोरोना कवच, लेकिन लगभग पूरी दुनिया में इस वक्त वैक्सीन की कमी है. इस बीच वैज्ञानिकों और रिसर्चर्स ने वायरस के खिलाफ शरीर की लड़ाई का एक खास गुण ढूंढ निकाला है. इसके मुताबिक जब इंसान का शरीर किसी भी वायरस से लड़ने में कामयाब हो जाता है तो एंटीबॉडी बनती है. ये एंटीबॉडी दो तरह की होती हैं एक होती है. टी किलर सेल्स जो वायरस को खत्म करते हैं. वहीं एक एंटीबॉडी होती है मेमोरी B सेल्स. इनका काम ये होता है कि अगर भविष्य में वायरस ने दोबारा हमला किया तो उसे पहचानना और इम्यून सिस्टम को अलर्ट करना ताकि वो वायरस को खत्म करने के लिए किलर सेल्स बनाना शुरू कर दें.
जब से कोरोना महामारी फैली तभी से ही इसकी जांच शुरू हो गई कि इससे रिकवर हो चुके लोगों के शरीर में एंटीबॉडी कितने समय तक कायम रहती है.
ये जानना जरूरी है क्योंकि इससे पता चलता है कि किसी व्यक्ति के दोबारा संक्रमित होने की संभावना कितनी रह जाती है. कुछ लोगों में सालभर तो कुछ लोगों में कुछ महीने तक एंटीबॉडी मिली है.
जब वैक्सीन लगनी शुरू हुई तो अमेरिका में स्टडी शुरू हुई, जिसमें ये देखा गया कि जिन्हें कोरोना इन्फेक्शन हुआ और जिन्हें नहीं हुआ उन पर वैक्सीन के पहले और दूसरे डोज का क्या असर रहा है? पिछले हफ्ते साइंस इम्युनोलॉजी में छपी स्टडी के मुताबिक अमेरिका में कोरोना को हरा चुके लोगों में एमआरएनए वैक्सीन के पहले डोज के बाद एंटीबॉडी रिस्पॉन्स बहुत अच्छा दिखा, लेकिन दूसरे डोज के बाद इम्यून रिस्पॉन्स उतना नहीं था. रिसर्चर्स का दावा है कि जिन्हें कोरोना इन्फेक्शन नहीं हुआ था. उनमें एंटीबॉडी रिस्पॉन्स दूसरा डोज मिलने के कुछ दिन तक नहीं दिखा.
यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया की ओर से जारी बयान में पेन इंस्टीट्यूट ऑफ इम्युनोलॉजी के सीनियर लेखक ई जॉन वेरी ने कहा कि स्टडी के ये नतीजे शॉर्ट और लॉन्ग टर्म वैक्सीन एफिकेसी के लिए प्रोत्साहित करने वाले हैं. ये मेमोरी B सेल्स के एनालिसिस के जरिए एमआरएनए वैक्सीन इम्यून रिस्पॉन्स को समझने में भी मदद करती है.
कोरोना से जंग जीत चुके लोगों को वैक्सीन की एक डोज देने की रणनीति
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में हुई स्टडी के मुताबिक, ज्यादातर लोग आठ या नौ महीने पहले कोरोना से इन्फेक्ट हुए थे. वैक्सीन का पहला डोज दिया तो उनके शरीर में एंटीबॉडी सैकड़ों-हजारों गुना बढ़ गई. दूसरे डोज के बाद एंटीबॉडी लेवल ऐसे नहीं बढ़ा. सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि इटली, इजरायल और कई दूसरे देशों में भी इस तरह की स्टडी हुई है. सिएटल में फ्रेड हचिसन कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के इम्युनोलॉजिस्ट एंड्रयू मैकगुइरे ने ऐसी ही स्टडी की.
सिएटल कोविड कोहर्ट स्टडी में 10 वॉलंटियर पर ये स्टडी की गई. वैक्सीनेशन के दो से तीन हफ्ते बाद ब्लड सैम्पल लेने पर एंटीबॉडी के स्तर में उछाल देखा गया. दूसरे डोज के बाद उनमें एंटीबॉडी के स्तर में इतना बदलाव नहीं दिखा था. मैकगुइरे के मुताबिक ये साफ है कि वैक्सीन का पहला डोज शरीर में पहले से मौजूद इम्युनिटी को बढ़ा देता है.
यहां सवाल उठता है कि क्या ऐसी स्टडी से कुछ बदलाव हुआ है? तो जवाब है, हां बहुत कुछ बदला है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी से फ्रांस, स्पेन, इटली और जर्मनी जैसे कुछ यूरोपीय देशों ने कोरोना को हरा चुके लोगों को वैक्सीन के दो के बजाय एक डोज देने की स्ट्रैटजी बनाई. वैक्सीनेशन में वर्ल्ड लीडर बन चुके इजरायल ने भी फरवरी में ही तय किया कि जो लोग कोरोना को हरा चुके हैं, उन्हें एक ही डोज देंगे.
‘इन्फेक्टेड लोगों को दिया जाता है सिर्फ एक वैक्सीन डोज’
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में इटली की सिसर्च छपी, जिसके मुताबिक अगर आपको इन्फेक्शन हुआ है और आपने वैक्सीन का एक डोज लिया है तो एंटीबॉडी का स्तर उन लोगों से भी ज्यादा होगा, जिन्हें इन्फेक्शन नहीं हुआ था और उन्होंने दो डोज ले लिए. मैरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन की रिसर्च कसे मुताबिक, इन्फेक्टेड लोगों को सिर्फ एक वैक्सीन डोज दिया जाता है तो आपको एमआरएनए वैक्सीन के ही कम से कम 11 करोड़ डोज अतिरिक्त मिल जाएंगे.
लेकिन आपको ये बता देना भी जरूरी है कि भारत में अब तक इस संबंध में कोई स्टडी नहीं हुई है कि क्या कोरोना से रिकवर हो चुके लोगों को वैक्सीन का एक डोज काफी है? हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस संबंध में भारत में बड़े स्तर पर स्टडी की जरूरत है क्योंकि हमारे यहां लाखों लोग कोरोना से रिकवर हो चुके हैं. अगर स्टडी के जरिए स्वास्थ्य मंत्रालय या इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च इस दिशा में कोई कदम उठाए तो जल्द ही ज्यादा से ज्यादा लोग वैक्सीन के सिंगल डोज के दायरे में आ सकेंगे.