तसर से तैयार करेंगे तान , कोरबा की बढ़ेगी शान

जिले में स्थापित हुआ प्रदेश का पहला वेट रीलिंग इकाई

सर्वाधिक कोसा उत्पादन वाले जिले को संवार रही केंद्रीय रेशम बोर्ड

बुनकरों की आवश्यकता की जिले में ही होगी पूर्ति ,विदेशों से मंगाना पड़ता है धागा

भुवनेश्वर महतो हसदेव एक्सप्रेस न्यूज कोरबा – कोसा उत्पादन में पूरे प्रदेश में पहले पायदान पर रहने वाले कोरबा में अब वेट रीलिंग इकाई की स्थापना की गई है । जिसके माध्यम से जिले सहित प्रदेश के बुनकरों को सालभर रेशम ताना (वार्प )के आवश्यकता की पूर्ति की जा सकेगी । इस अत्याधुनिक इकाई से हाईटेक तरीके से तसर ताना तैयार करने की कवायद जिले में शुरू कर दी गई है ।

यहाँ बताना होगा कि कोसा उत्पादन में कोरबा पूरे प्रदेश में पहले पायदान पर है । हर साल कोरबा की कोसा उत्पादन के मामले में शान बढ़ रही है । हर साल यहाँ औसतन 2 करोड़ 50 लाख नग कोसा का उत्पादन होता है । 1248 हेक्टेयर के विशाल वन क्षेत्र में जिला यह लक्ष्य हासिल करता है । जिले में 50 कोसा केंद्र एवं 2800 संग्राहक परिवार इस कार्य में वर्ष भर पूरी सिद्दत से जुटे रहते हैं । गत वित्तीय वर्ष में जिले में रिकार्ड 2 करोड़ 60 लाख नग कोसा का उत्पादन हुआ था । जिले ही नहीं पूरे प्रदेश सहित दीगर राज्यों की भी कोसा के आवश्यकता की पूर्ति करने में कोरबा सक्षम है । लेकिन वर्तमान में प्रदेश में उत्पादित तसर कोसों से उत्पादित धागे का प्रयोग वस्त्र बुनाई में बाना में करते हैं । बुनकर ताने के रेशम चीन एवं कोरिया से आयातित धागे से करते हैं । वर्तमान में आयातित धागे की उपलब्धता कम होने के कारण ताना (वार्प )के रेशम का राष्ट्रीय स्तर पर संकट बना हुआ है ।जिसे देखते हुए प्रमुख सचिव ग्रामोद्योग डॉ.मनिंदर कौर द्विवेदी के नेतृत्व में यह अभिनव पहल की गई ।जिसे देखते हुए कलेक्टर किरण कौशल के नेतृत्व में उपसंचालक रेशम बी पी विश्वास के प्रयासों की बदौलत केन्द्रीय रेशम बोर्ड बैंगलौर भारत सरकार के सहयोग से तसर वेट रीलिंग की स्थापना की गई है । 13 .39 लाख की लागत से स्थापित इकाई में 20 वेट रीलिंग मशीन,12 बुनियादी मशीन एवं 10 स्पीनिंग मशीन की स्थापना की गई है ।सामान्यतः प्रदेश में तसर ककून को ड्राईरीलिंग पद्धति से धागाकरण किया जाता है । इसका उपयोग ताना में नहीं किया जाता है । जबकि वेट रीलिंग मशीन से तैयार तसर रेशम कोसों को गरम पानी में रखकर रीलिंग किया जाता है । जिससे 8 -9 कोसों के तार एक दूसरे से अच्छी तरह से चिपक जाते हैं । इस प्रक्रिया में करघे में टूटन की मात्रा नहीं के बराबर रह जाती है ।

केंद्रीय रेशम बोर्ड की निगरानी में होगा काम

वेट रीलिंग की प्रक्रिया में ककून को पकाने की विधि एवं प्रौद्योगिकी भिन्न है । इस प्रक्रिया को केंद्रीय रेशम अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलौर के सहयोग एवं मार्गदर्शन से किया जा रहा है । गौरतलब हो कि कोरबा में स्थापित वेट रीलिंग ईकाई प्रदेश का एक मात्र इकाई है । जिले में रेशम की बढ़ती मांग की आपूर्ति के लिए कोरबा का चयन किया गया है ।

सालाना 3 हजार किलो तक होगा उत्पादन

वेट रीलिंग की इकाई से प्रतिवर्ष 3 हजार किलोग्राम तसर का उत्पादन जिले में होगा ।मांग अनुरूप भविष्य में इसकी क्षमता में भी वृद्धि की जा सकेगी । इस तरह तसर की एक बड़ी आवश्यकता वेट रीलिंग मशीन के माध्यम से पूरी होगी ।

बेरोजगारों को मिलेगा रोजगार

रेशम विभाग की इस पहल से जिले के बेरोजगार युवक युवतियों में भी रोजगार की आश जग गई है। इस इकाई से 60 युवक युवतियों को जिले के भीतर ही सतत रोजगार मिलेगा । वर्तमान में 32 युवक युवतियाँ एक माह का प्रशिक्षण हासिल कर रही हैं । जो जल्द ही स्वरोजगार से जुड़ जाएंगे ।

वर्जन

बुनकरों की आवश्यकता की पूर्ति में होंगे सक्षम

जिले सहित प्रदेश में रेशम की बढ़ती मांग एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए केंद्रीय रेशम बोर्ड की सहायता से वेट रीलिंग इकाई की स्थापना की गई है । जिससे स्थानीय बुनकरों साल भर रेशम ताना की आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी । इससे कोरबा की एक अलग पहचान पूरे प्रदेश में बनेगी ।

बी पी विश्वास
उप संचालक रेशम विभाग