आस्था की अद्भुत कहानी ,चाहे वस्तु हो या इंसान ,खो जाएं तो मिला देती हैं माता मड़वारानी

  • पर्वतवासिनी के दर पर पंचमी तिथि से शुरू होती है शारदीय नवरात्र

भुवनेश्वर महतो, कोरबा (हसदेव एक्सप्रेस न्यूज)। 5 किलोमीटर लंबी ,1500 मीटर से ऊंची पहाड़, दुर्गम रास्ते, यहाँ अगर गुम हो जाए पशु ,वस्तु या इंसान, तो भी भयभीत नहीं होते इंसान । दिल में सच्ची श्रद्धा के साथ पुकारते, ढूंढते ही चंद लम्हों में ही सब मिल जाते हैं । स्वयं माता रानी भक्तों तक उनकी खोई हुई वस्तु , पशु या परिजनों को मिलाती हैं । आस्था की ये अद्भुत कहानी हैं पर्वतवासिनी मां मड़वारानी, जिनके दरबार से आज तक कोई खाली हाथ नहीं लौटा । पूरे देश में एकमात्र अनोखा देवी मंदिर है जहाँ शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ पंचमी तिथि से शुरू होती है ।

शनिवार से शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ हो रहा है, कोरोना संकटकाल के दौर में कड़े नियमों के बीच जहाँ देश के सभी देवी मंदिरों में पूजा-अर्चना शुरू हो जाएगी, वहीं देश में एक ऐसा देवी दरबार है, जहाँ नवरात्रि पाँच दिनों बाद शुरू होती है। यह पावन स्थल है छत्तीसगढ़ के कोरबा जिला मुख्यालय से 26 किलोमीटर दूर स्थित पहाड़ेवाली माता मड़वारानी का दरबार। यहाँ पंचमी को प्रथम तिथि मानकर शारदीय नवरात्रि की शुरुआत की जाती है। सदियों से चली आ रही इस अनोखी परंपरा का आज भी पंचमी से ज्वारा एवं मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित कर निर्वहन किया जा रहा है । इस मंदिर में पंचमी से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होने से लेकर मां की महात्म्य के बारे में आईए जानें ।


क्या है मान्यता

पुजारी रूपसिंह सहित स्थानीय लोगों के अनुसार सदियों पूर्व मड़वारानी पहाड़ घने वनों से आच्छादित था। हिसंक जानवरों का यहाँ निवास रहता था। पहाड़ में लकड़ी, फल, औषधि इत्यादि कार्य हेतु जाने के लिए लोगों को सोचना पड़ता था। कहते हैं कि यहाँ से 5 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम भैसामुड़ा निवासी बुधराम सुधुराम यादव ने पहाड़ की चोटी पर दो कलमी (आम ) के वृक्ष पर क्वांर शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ज्वारा (गेंहू की बाली ) उगे हुए देखा। यह देख सुधुराम हतप्रभ रह गया कि आखिर कलमी पेड़ से ज्वारा कैसे निकल सकती है। सुधुराम ने इस अनोखे वाक्ये की जानकारी तत्कालीन समय के मालगुजार कनसू गौटिया के दादा को इसकी जानकारी दी। तब बुधराम सहित सभी ग्रामीण वहाँ पहुँचे तो उनकी आंखें भी फटी की फटी रह गई । कलमी के वृक्ष पर घने ज्वारा उग आए थे। तब लोगों ने इस दैवीय चमत्कार को माता जगदम्बा का वास मानकर स्थल की साफ-सफाई कर पूजा -अर्चना करनी शुरू की । इसे दैवीय चमत्कार ही कहें कि श्रद्धालु सच्चे मन से जो भी मनोकामनाएं लेकर आते थे, पूरी हो जाती थी। लोगों ने कलमी पेड़ को सुरक्षित रख वहीं पर मंदिर की स्थापना कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी। एक और किंवदंती है कि सदियों पहले मालगुजार जमाने में मड़वारानी पहाड़ से लगे गांव के गाय अचानक गायब हो गए तब चरवाहा गाय जंगली जानवरों का शिकार न हो गए हों इस फिक्र में ढूंढते-ढूंढते थककर पहाड़ के चोटी पर पहुंचा, वहीं सारे गाय दो कलमी पेड़ के नीचे सकुशल बैठी मिलीं, जबकि उस समय पहाड़ में जंगली जानवर बहुतायत में थे। चरवाहा ने देखा कि कलमी वृक्ष के तने पर पर ज्वारा उगा हुआ है जिसकी सूचना उन्होंने ग्रामवासियों सहित तत्कालीन जमींदार जगेश्वर सिंह को दी ।
तब विधि-विधान से सब ने उस स्थान पर पूजा अर्चना शुरू कर दी। पहाड़ में पंचमी तिथि से पूजा -अर्चना की जा रही है । मंदिर की सेवा समितियाँ आज भी इस परंपरा का पूरी शिद्दत के साथ
निर्वहन कर रही हैं। पहले एक छोटा सा मंदिर था बाद में सेवा समितियों ने जन सहयोग से यहाँ भव्य मंदिर का निर्माण कराया है ।


इसलिए पंचमी को शुरू होती है शारदीय नवरात्रि

जिस समय लोगों ने आकाशीय बिजली की चपेट में आकर टूटे दो कलमी के पेड़ के पत्तों में ज्वारा निकलते देखा वो तिथि पंचमी थी और त्रयोदशी तिथि को वह ज्वारा अपने आप विलुप्त हो गया। यही वजह है पर्वतवासिनी के दर पर पंचमी तिथि से नवरात्रि की शुरुआत होती है और त्रयोदशी तिथि को समापन। यही वजह है कभी कभी दो पक्ष एक दिन पड़ने पर यहाँ 8 दिनों में ही शारदीय नवरात्रि का पर्व समाप्त हो जाता है ।


मड़वा से उठकर पर्वत में विराजित मां मड़वारानी

जिले की प्रसिद्ध देवी पर्वतवासिनी मां मड़वारानी का इतिहास सदियों पुराना है। कहते हैं हजारों वर्ष पहले मां मड़वारानी का जन्म एक राजघराने में साधारण कन्या के रूप में हुआ था। इन्हें राजमति के नाम से पुकारा जाता था। समय के साथ राजमति संज्ञान हुई। राजा ने उनकी विवाह तय कर दी । राजमति ने अपने पिता व ससुराल वालों से यह शर्त रखी कि वो तभी विवाह करेगी जब सूर्योदय से पहले उसका विवाह हो। सभी ने उनके शर्त को शिरोधार्य किया। इधर राजमति को तेल हल्दी चढ़ने लगा। लेकिन किसी कारणवश बारातियों को निकलते – निकलते रात्रि हो गया और जब पहुँचे तो सूर्योदय हो गया। गुस्से से लाल – पीला हो राजमति मंडप से उठ गई और वहाँ उपस्थित सभी बाराती को पत्थर में लीन हो जाने का श्राप देते हुए चुहरी कुएं में हल्दी को धोकर पर्वत में चली गई
। राजा की कन्या रानी व मंडप से उठकर पर्वत में चले जाने के कारण इनका नाम मड़वारानी पड़ा। राजमति (मां मड़वारानी ) के चुहरी कुएं पर हल्दी धोने के कारण यह स्थान नकदी चुहरी के नाम से जाना जाता है। कहते हैं यहाँ आते ही इंसान की काया अचानक पीली हो जाती है, जिसका प्रमाण आज भी है ।


उमड़ता है जनसैलाब

शारदीय नवरात्रि के समापन के बाद भी जारी नवरात्रि एवं हजारों मीटर ऊंचे दुर्गम पहाड़ में पर्वतवासिनी के दर पर मत्था टेकने श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। नवरात्रि के समापन के दूसरे दिन यहां छठ तिथि होता है , यहाँ से 4 दिनों तक भव्य मेला लगता है । यहाँ जिले सहित प्रदेश के अन्य प्रांतों से हजारों श्रद्धालुओं का संगम देखने को मिलता है ।


मां पर्वतवासिनी जाने का मार्ग

कोरबा जिला मुख्यालय से 26 किलोमीटर दूर विकासखंड करतला के कोरबा – चाम्पा मुख्य मार्ग पर ग्राम हसदेव बांयीं तट पर ग्राम खरहरी के पहाड़ में मां मड़वारानी विराजित है। यहाँ पहुंचने के दो मार्ग हैं । 5 किलोमीटर लंबी ऊंचे पहाड़ को मड़वारानी मुख्य द्वार से चढ़ने पर 1 से सवा घण्टा लगता है । बरपाली मार्ग से भी पर्वतवासिनी के दर पर पहुंचा जा सकता है । बरपाली से चुहरी हल्दी पर्वतवासिनी के दर पर पहुंचा जा सकता है। बरपाली से चुहरी हल्दी पर्वतवासिनी का पहाड़ मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । पहाड़ चढ़ने से यहाँ से जिले हसदेव नदी, सहित समस्त वादियों का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है । जो श्रद्धालुओं की सारी थकान को दूर कर मन एवं शरीर को तरो-ताजा कर देती है ।

इस साल नहीं कर सकेंगे प्रत्यक्ष दर्शन

कोरोना संकटकाल की वजह से इस साल शारदीय नवरात्रि में पर्वतवासिनी मां मड़वारानी के दरबार पहुंचकर श्रद्धालु दर्शन नहीं कर सकेंगे। मां मड़वारानी जनकल्याण समिति के सचिव विनोद साहू ने बताया कि इस बार कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए ज्वारा व ज्योतिकलश प्रज्वलित कराने वाले श्रद्धालुओं को वर्चुअल दर्शन कराया जाएगा । इसके लिए ऑनलाइन रसीद काटने की व्यवस्था की गई है ।ज्योतिकलश की ऑनलाइन दर्शन कराया जाएगा। इस बार पर्वतवासिनी के दरबार में 1500 ज्योति कलश प्रज्वलित किए जाएंगे । इस बार तेल ज्योति कलश का 551 रुपए, तेल श्रृंगार कलश का 751 रुपए ,घृत ज्योति कलश का 801 एवं घृत ज्योति कलश के लिए 1001 रुपए सेवा शुल्क रखा गया है ।इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 21 अक्टूबर को होगी जिसका समापन 29 अक्टूबर को होगा ।