कुसमुंडा खदान में मिट्टी की ढेर पर कोयले की परत चढ़ा 15 लाख टन का कोयला घोटाला ,मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने केंद्रीय कोयला मंत्री को उच्चस्तरीय जांच के लिए लिखा पत्र

कोरबा। मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी को पत्र लिख कर साउथ इस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) के कुसमुंडा खदान में अधिकारियों द्वारा बरती जा रही अनियमितता की जानकारी दी है। मंत्री अग्रवाल ने करीब 15 लाख टन कोयले का घोटाला किए जाने का आरोप लगाते हुए उच्च स्तरीय जांच की मांग।

पत्र में मंत्री अग्रवाल ने कहा है कि कुसमुंडा कोयला खदान में कोल स्टाक क्रमांक 25, 26 व 28 में भले ही उपर से कोयले का भंडार दिख रहा हो, पर अंदर में मिट्टी की परत बिछा दी गई है। यह फर्जीवाड़ा वित्तीय वर्ष के अंत में स्टाक मेंटेन करने किया गया है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि करोड़ों रुपये का कोयला आखिर कहां गया। कोयला मंत्रालय यदि जांच टीम भेज कर तीनों स्टाक स्थल से कोयला हटा कर अंदर जांच करेगी तो मिट्टी के उपर कोयले की परत बिछाए जाने की पोल खुल जाएगी। कुसमुंडा परियोजना के 29 नंबर स्टाक के एक बड़े हिस्से में पिछले कई माह से आग लगी हुई है। इसे बुझाने का प्रयास नहीं किया जाता। पूर्व में जलते कोयला रेलवे बैगन में लोड किए जाने की वजह से सरगबुंदिया स्टेशन के पास बैगन में आग लग गई थी। इसकी वजह से स्टेशन को काफी क्षति पहुंची और कोयला मंत्रालय की छबि धूमिल हुई। कोयला स्टाक में हेराफेरी करने की नीयत से स्टाक में लगे आग को बुझाने का प्रयास नहीं किया जाता। इसके लिए सीधे तौर पर तत्कालीन व वर्तमान में पदस्थ शीर्ष अधिकारी जिम्मेदार हैं। इसके अलावा डायरेक्टर जनरल आफ माइंस सेफ्टी (डीजेएमएस) के मानकों का पालन नही किया जा रहा। उत्खनन कार्य के लिए भूमि की कमी के कारण बेंच फार्मेशन नहीं किया जा रहा है। इससे बेंच वर्टिकल हो चुके हैं और उंचाई 200 मीटर तक पहुंच गई है। इसकी वजह से कभी भी स्खलन की घटना होने की आशंका बनी रहती है। इसके पूर्व ईसीएल के राजमहल खदान में वर्ष 2016-17 में इस तरह की घटना हो चुकी है। इसकी भी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराया जाना चाहिए। वर्ष 2018 में दीपका खदान क्षेत्र में लीलागर नदी का पानी घुसने के कारण करोड़ो रुपये की क्षति हुई थी, जिसका प्रमुख कारण सुरक्षा मानकों की अनदेखी व लापरवाही रही। मंत्री अग्रवाल ने केंद्रीय कोयला मंत्री से कहा है कि इन तथ्यों की निष्पक्ष जांच समिति गठित कर कराई जाए।

पेयजल संकट की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं

राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने केंद्रीय मंत्री से कहा है कि कुसमुंडा क्षेत्र के आसपास निरंतर जल स्त्रोत गिर रहा। इसकी वजह से क्षेत्र में पेयजल की समस्या खड़ी हो गई है। प्रबंधन की ओर वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं की जा रही। निर्धारित मात्रा में ब्लास्टिंग के लिए बारुद उपयोग नहीं किए जाने की वजह से आसपास रिहाइशी मकान क्षतिग्रस्त हो रहे। हैंडपंप धस जा रहे। प्रबंधन अमानवीय रवैय्ये की वजह से क्षेत्र में आक्रोश व्याप्त है।

प्रदूषण का स्तर 200 से बढ़ कर 1613 पीएमक्यू

मंत्री अग्रवाल ने कहा कि कुसमुंडा खदान के आसपास अत्यधिक प्रदूषण फैल रहा। जिसकी वजह से घरों के अंदर तक कोलडस्ट पहुंचने से लोग परेशान हैं। क्षेत्र में डस्ट निगरानी सिस्टम को दुरूस्त किया जाना चाहिए। हवा की गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार खदान क्षेत्र में वायु प्रदूषण की निर्धारित मात्रा अधिकतम 150 से 200 पार्टिकुलेट मैटर (पीएमक्यू) होना चाहिए, लेकिन यहा प्रदूषण का स्तर 1613 पीएम क्यू पहुंच गया है। यह क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ है। कई तरह की बीमारियों से ग्रस्त हो रहे।

महाप्रबंधक की दमनकारी नीति से क्षेत्र में नाराजगी

राजस्व मंत्री ने कहा है कि भू-विस्थापितों के पुनर्वास के लिए बनाए गए बसाहट क्षेत्र में पेयजल, बिजली, सड़क व स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं कराई गई है। कुसमुंडा खदान के लिए वर्तमान में भूमि की उपलब्धता केवल 40 से 50 हेक्टेयर है। इस बचे हुए क्षेत्र में केवल एक वर्ष तक ही उत्खनन किया जाना संभव है। कुसमुंडा के महाप्रबंधक संजय मिश्रा के दुर्व्यवहार व भू-विस्थापितों के रोजगार व पुनर्वास के प्रति उदासीनता बरतने जाने से आए दिन आंदोलन की स्थिति निर्मित हो रही। इसका असर कोयला उत्पादन पर भी पड़ रहा। पहले ही विद्युत संयंत्रों मेंकोयले के संकट की स्थिति है। भू- विस्थापितों के फर्जी प्रकरण बना कर दमनकारी नीति अपनाई जा रही।

इसलिए अब तक कोयला स्टाक का चार्ज नहीं लिए

राजस्व मंत्री का कहना है कि कोल स्टाक में गड़बड़ी की वजह से पूर्व पदस्थ महाप्रबंधक आरपी सिंह को हटाया गया। उनके स्थान पर संजय मिश्रा को 27 अक्टूबर को पदस्थ हुए पर अभी तक वे कोयला स्टाक का प्रभार नहीं लिए हैं। यह बात कोयला के स्टाक में गड़बड़ी को पुष्ट करता है। पहले यह गड़बड़ी 50 लाख टन कोयले की थी, बाद में करीब 35 लाख टन कोयला का उत्पादन किया गया, पर स्टाक कम दिखा कर भरपाई की गई।