रायपुर। छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग नौनिहालों की भविष्य गढ़ने की बात कहता है, उन्हें चांद तक पहुंचाने की लाखे दावे करता है, लेकिन जमीनी हकीकत तलाशने अगर आप निकलेंगे, तो सारे दावे और खोखले वादे धूल चाटते दिखते हैं। कुछ ऐसा ही हाल है छत्तीसगढ़ के RTE के छात्रों का, जिनको सरकारी सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। गरीब बच्चों को खुद से ड्रेस और कॉपी-किताब खरीदना पड़ रहा है। निजी स्कूल पैसे की लालच में एडमिशन नहीं दे रहे हैं। ऐसे में नौनिहालों का कैसे भविष्य गढ़ा जाएगा ?
छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग हाईकोर्ट के आदेश का भी पालन कराने में नाकाम है। शिक्षा के अधिकार के तहत बच्चों को सीट एलाट है। बावजूद निजी स्कूल प्रवेश नहीं दे रहे हैं। निजी स्कूलों की मनमानी के सामने शिक्षा विभाग मौन क्यों। कक्षा 1-5 वीं तक के लिए सरकार 7 हज़ार रुपया देती है। कक्षा 8-11 वीं तक 11 हज़ार रुपया और कक्षा 9-12 वीं तक लिए 15 हज़ार रुपये निर्धारित है। बावजूद इसके एडमिशन नहीं मिल पा रहा है। शिक्षा का अधिकार कानून निःशुल्क शिक्षा की बात करता है और प्रदेश के लगभग 4 हजार प्राइवेट विद्यालयों में लगभग 4 लाख गरीब बच्चें आरटीई के अंतर्गत पढ़ रहे हैं। उनके अभिभावकों को अपने बच्चों को इस कानून के अंतर्गत पढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 8 से 10 हजार खर्च करना पड़ रहा है।छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर ने भी दो बार सरकार को यह आदेश दे चुका है कि प्राइवेट विद्यालयों में आरटीई के अंतर्गत प्रवेशित गरीब बच्चों को निःशुल्क पाठ्य पुस्तक, गणवेश एंव लेखन सामग्री उपलब्ध कराने की समुचित व्यवस्था किया जाए, लेकिन सरकार इस कानून और कोर्ट के आदेशों को सिर्फ कागजों तक सीमित कर रखना चाहती है।वो इसलिए की ज्यादात्तर प्राइवेट स्कूलों में तो आरटीई के गरीब बच्चों को निःशुल्क पाठ्य पुस्तक, गणवेश एंव लेखन सामग्री उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। छत्तीसगढ़ पैरेंटस एसोसिएशन के संचालक, लोक शिक्षण संचालनालय से यह मांग की गई है कि आरटीई के अंतर्गत प्राइवेट स्कलों में प्रवेशित गरीब बच्चों को निःशुल्क पाठ्य पुस्तक, गणवेश एंव लेखन सामग्री उपलब्ध कराया जाए।एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल का कहना है कि आरटीई के अंतर्गत प्रवेशित गरीब बच्चों को प्राइवेट स्कूलों के द्वारा निःशुल्क पाठ्य पुस्तक, गणवेश एंव लेखन सामग्री उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। अभिभावक स्वयं 8 से 10 हजार खर्च कर अपने बच्चों के लिए पाठ्य पुस्तक, गणवेश एंव लेखन सामग्री खरीद रहे हैं, जो माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों की अवमानना है।पॉल ने बताया कि डीपीआई और अन्य उच्च अधिकारियों को इस संबंध में पूर्व में दो बार लिखित जानकारी दी जा चुकी थी, लेकिन उनके द्वारा आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। इस वर्ष भी आरटीई के गरीब बच्चों के अभिभावक अपने बच्चों के लिए पाठ्य पुस्तक, गणवेश एंव लेखन सामग्री खरीद रहे हैं, जिसके लिए डीपीआई और डीईओ पूर्णतः जिम्मेदार है। प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने बताया कि कक्षा 1-5 वीं तक के लिए सरकार 7 हज़ार रुपया देती है और कक्षा 8-11 वीं तक 11 हज़ार रुपया और कक्षा 9-12 वीं तक लिए 15 हज़ार रुपये निर्धारित है। साथ में कॉपी किताब ड्रेस के लिए 650 रुपया अलग से दिया जाता है।लोक शिक्षण संचालनालय के अध्यक्ष सुनील जैन ने कहा कि जो स्कूल गड़बड़ी कर रहे हैं। उन पर कार्रवाई की जाएगी, निरीक्षण के लिए आदेश दे दिया गया है।