जयकारों से गूंज उठा पर्वतवासिनी मां मड़वारानी का दरबार ,सप्तमी पर उमड़ा आस्था का सैलाब,दुर्गम पर्वत में चढ़ श्रद्धालुओं ने माता के दर पर नवाए शीश

कोरबा । जय माता दी के जयकारों से पर्वतवासिनी मां मड़वारानी का दरबार गूंज उठा। अवसर था पूरे प्रदेश में अनोखे तरीके से मनाए जाने वाले शारदीय नवरात्रि के सप्तमी पर्व का । 52 सौ मीटर लंबे 1200 मीटर ऊंचे सुरम्य वनों से आच्छादित पथरीले पर्वत पर पैदल चढ़कर श्रद्धालुओं ने मां के दरबार में मत्था टेक मनोवांक्षित फल की कामना की ।

सर्वविदित है कि ग्राम बरपाली -झींका- मड़वारानी स्थित पहाड़ों पर विराजित माता के दरबार में पर्वतवासिनी मां मड़वारानी में सदियों से शारदीय क्वांर नवरात्रि की पंचमी की तिथि से मनाए जाने की परंपरा चली आ रही है। पंचमी तिथि से ही ज्वारा बुआई ,मनोकामना ज्योतिकलश प्रज्ज्वलित की जाती है। दशहरा के तीसरे दिन त्रयोदशी ( तेरस ) को ज्वारा विसर्जन होता है।इस क्वांर नवरात्रि में भी इस पुरातन परंपरा का निर्वहन किया गया। पंचमी के दिन से ज्योतिकलश प्रज्ज्वलित कर शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ किया गया। कालरात्रि को समर्पित पर्व के तिथि तिथि बुधवार को पर्वतवासिनी मां मड़वारानी के दरबार में आस्था का सैलाब उमड़ा। दुर्गम पहाड़ में 5200 मीटर का सफर पहाड़ेवाली माता,मड़वारानी माता के जयकारे लगाते हुए तय किए। क्या बच्चे बूढ़े जवान सभी आयु वर्ग के लोगों ने आस्था एवं उल्लास के साथ माता के दरबार पहुंचकर शीश नवाया। मनोवांक्षित फल की कामना की। ऊंची पथरीली पहाड़ पर चढ़ना आसान नहीं होता,पर मन में मां के प्रति सच्ची श्रद्धा एवं नेक इरादों के साथ भक्त माता के जयकारे लगाते हर्षोल्लास के साथ सफर तय कर गए। मंदिर प्रांगण में प्रतिवर्ष की तरह शानदार मेला लगा था। जो भक्तों के उत्साह को और दोगुना कर रहा था। समूचे जिले ,सहित प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से पर्वतवासिनी के दर पर पहुंचकर लोगों ने अपनी मन्नतें पूरी होने की कामना की । मां को रिझाने के लिए भक्त क्या नहीं कर गुजरते। जिसका नजारा पर्वतवासिनी के दर पर दिखा। सैकड़ों आस्थावान भक्त अपनी मन्नतें लेकर सिर के बल लोटकर दुर्गम पर्वत की चढ़ाई माता मंदिर पहुंचकर शीश नवाते नजर आए। मंदिर परिसर में दर्शन निमित्त डेढ़ किलोमीटर लंबी श्रद्धालुओं की कतार लगी रही। मड़वारानी मंदिर के पहाड़ से लेकर नीचे तक भक्तों का रेला लगा रहा। पहाड़ में तकरीबन 4 हजार ज्योतिकलश (घृत श्रृंगार ,घृत ज्योतिकलश,तेल श्रृंगार,तेल ज्योतिकलश)प्रज्ज्वलित किए गए हैं।

सुविधाओं की दरकार ,नहीं सुन रही प्रशासन ,नहीं सुन रही सरकार

पर्वतवासिनी मां मड़वारानी का मंदिर न केवल जिले देश अपितु पूरे देश में अपनी महत्ता व मान्यता के लिए विख्यात है। यहां इंसान से लेकर कोई भी वस्तु खो जाए तो सच्ची श्रद्धा के साथ मां का सुमिरन करने से वो चंद मिनटों में मिला देती हैं।रास्ता भटके लोगों को बूढ़ी औरत बनकर रास्ता दिखाने की भी मां की कई किवंदतियाँ हैं। यही नहीं सुरम्य वनों से आच्छादित विशालकाय पर्वत से हसदेव नदी आसपास के गांव ,रेलवे सहित जिले के विद्युत संयत्रों का दीदार किया जा सकता है। बरपाली तरफ से जाने से कोठी खोली सहित कई रमणीय व्यू पॉइंट हैं। जहां आधा सफर तय करने के बाद श्रद्धालु न केवल थकान मिटाते हैं वरन यहाँ की सुंदर वादियों को अपने मोबाईल व कैमरों में कैद करते हैं। इस लिहाज से देखें धार्मिक व पर्यटन केंद्र के रूप में पर्वतवासिनी मां मड़वारानी एक अलग ही महत्व रखती हैं। बावजूद इसके मंदिर में तमाम सुविधाओं की दरकार है।सुगम सड़क मार्ग ,पेयजल ,ठहराव की उचित व्यवस्था से लेकर प्रसाधन के यहाँ कोई इंतजाम नहीं हैं।पीएचई के एक दशक पूर्व करीब 28 लाख की लागत से पेयजल पहुंचाने शुरू की गई योजना तकनीकी खमियों की वजह से फैल हो गई। श्रद्धालुओं को एक बूंद पानी नहीं मिला। पर्वतवासिनी मां मड़वारानी की तीन समितियों द्वारा सेवा की जाती है। जो रसीदें काटकर ज्योतिकलश प्रज्ज्वलित कराती हैं। मंदिर को प्राप्त चंदे ,चढ़ावा पर भी इन्हीं का अधिकार है। पर सेवा समितियां भी श्रद्धालुओं को सविधाएं मुहैया कराने में नाकाम रही हैं। इन सब स्थिति को देखते हुए मंदिर को ट्रस्ट बनाया जाना नितांत आवश्यक है। बशर्ते उसकी राह में सत्ताधारी दल के नेता अड़चने पैदा न करें। जिला प्रशासन मड़वारानी व मां सर्वमंगला मंदिर को ट्रस्ट बनाता है तो निसंदेह श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी। पूर्व में इस दिशा में कवायद की जा चुकी है पर निजी स्वार्थ की वजह से जनप्रतिनिधि इस कार्य में अड़चनें पैदा करते रहे हैं। बरपाली क्षेत्र से 50 फीसदी से अधिक श्रद्धालु पर्वत चढ़ते हैं। यहां से सफर कम समय में तय किया जा सकता है बावजूद इस क्षेत्र का विकास नहीं किया जा रहा है।