नीलकंठ विलुप्ति के कगार पर ,विजयादशमी को शुभ माना जाता है नीलकंठ

नीलकंठ का दर्शन आध्यात्मिक रूप से शुभ माना जाता है। विजयादशमी को इसके दर्शन का विशेष रिवाज है। लेकिन पिछले तीन दशकों में पवित्रता का प्रतीक माने जाने वाले इस पक्षी की संख्या में तेजी से कमी आई है। यही कारण है कि इंटनेशनल यूनियन ऑफ नेचर कंजर्वेशन ने अब इस पक्षी को विलुप्तप्राय पक्षियों की श्रेणी में रख दिया है। पर्यावरण विशेषज्ञों के आकलन के मुताबिक तीन दशक पूर्व तक वनों व पेड़ पौधों से आच्छादित कोसी क्षेत्र में प्रति वर्ग किमी क्षेत्र में इसकी संख्या 50 तक थी। कोसी सीमांचल के कटिहार, पूर्णिया, सहरसा एवं सुपौल जिले में पीपल, बरगद जैसे बड़े एवं पुराने पेड़ों पर नीलकंठ आसानी से दिख जाते थे। लेकिन अब शहर तो दूर ग्रामीण इलाकों में भी इसका दर्शन कठिन हो गया है। आध्यात्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने नीलकंठ का दर्शन करने के बाद ही आततायी रावण का वध किया था। भगवान शिव का भी एक नाम नीलकंठ है। इस कारण विजयादशमी को इस पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है। इसके लिए लोग दर्शन कराने वाले पक्षी पालक को उपहार स्वरूप कुछ पैसे या अन्न दान देने से भी नहीं हिचकते हैं। लेकिन कृषि कार्य के लिए कीटनाशकों का धड़ल्ले से प्रयोग किए जाने व अन्य कारणों से इस पक्षी की संख्या कम हो गई है। मोबाइल टावर के रेडिएशन से प्रजनन क्षमता पर असर होने के कारण भी इसकी संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है। खेतों में कीट-फतिंगों को खाकर फसल को रोग व्याधि से सुरक्षित रखने वाले नीलकंठ के विलुप्तप्राय होने से कृषि पैदावार पर विपरीत असर पड़ रहा है। पीठ पर हरी धारी व नुकीले चोंच वाली यह पक्षी दक्षिण एशिया से लेकर ईरान व थाईलैंड तक पाई जाती है। कोसी के इलाके में तीन दशक पूर्व तक नीलकंठ बहुतायत संख्या में पाए जाते थे। एक आकलन के मुताबिक तीन दशक पूर्व तक नीलकंठ की संख्या प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 50 थी। कृषि कार्य में धड़ल्ले से कीटनापशक के प्रयोग एवं जलवायु परिवर्तन के कारण नीलकंठ की संख्या में तेजी से कमी आई है। अब यह पक्षी विलुप्तप्राय पक्षियों की श्रेणी में आ गया है। इसकी संख्या के आकलन को लेकर अब तक प्रामाणिक व व्यवस्थित पद्धति से काम नहीं किया गया है। -डा. टीनएन तारक, पर्यावरणविद।