वो जलप्रलय यादकर आज भी सिहर उठता है जम्मू-कश्मीर, उन भयानक यादों से उड़ जाती है नींद

उत्तराखंड में प्रकृति के कहर ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। ऐसा ही कहर साल 2014 के सितंबर महीने में जम्मू-कश्मीर में बरपा था। उस प्रलय के दिए जख्म इतने गहर हैं कि आज तक भर नहीं पाए। अपनों के जिंदा दफन होने और आशियाने जमींदोज होने का वह खौफनाक मंजर यादकर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उन भयानक यादों से नींद उड़ जाती है।

सद्दल गांव को तो सितंबर माह में आई आपदा ने उजाड़ कर रख दिया था।

एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि उसका हंसता-खेलता पूरा परिवार ही इस हादसे की भेंट चढ़ गया। देखते ही देखते जलप्रलय ने पूरे परिवार को निगल लिया। बुजुर्ग महिलाकी जान इस वजह से बज गई क्योंकि वह घर में मौजूद नहीं थीं। लेकिन घर में मौजूद उसके परिवार का एक बच्चा तक नहीं बच पाया।

देश के विभिन्न हिस्सों से श्रीनगर में राहत सामग्री भेजी गई थी। वायु सेना के सी17, सी130जे, आईएल 76 और एएन 32 एयरक्राफ्ट दिन-रात बचाव कार्य में लगे रहे थे। जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ के लिए चलाया गया राहत एवं बचाव कार्य बहुत बड़ा था।

कश्मीर में लोगों को रिलीफ देने का काम तो बहुत ही कठिन था। लोगों के घरों की छतें तिरछी होने के कारण जो सामान हेलिकॉप्टर से लोगों के लिए फेंका जाता था, वह पूरी तरह उन तक नहीं पहुंच पा रहा था।

वर्ष 2014 के सितंबर माह में आई सदी की सबसे भयंकर बाढ़ ने सभी को सिहरा दिया था। वर्ष 1892 के बाद जम्मू-कश्मीर में आई इस बाढ़ में 260 से ज्यादा लोगों की जान गई थी। हजारों करोड़ रुपये की सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचा।

कश्मीर में बाढ़ का पानी दो मंजिल तक पहुंच चुका था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाढ़ में फंसे लोगों पर क्या गुजरी होगी। केंद्र सरकार ने राहत और बचाव कार्य में राज्य सरकार की युद्धस्तर पर मदद कर करीब एक लाख पच्चीस हजार लोगों की जान बचाई थी।