कोरबा। कोरबा जिले में रेत माफिया कुछ ज्यादा ही बेलगाम हो गए हैं। इन्हें किसका संरक्षण इतनी मजबूती से प्राप्त हो रहा है कि यह ना तो एनजीटी के प्रतिबन्ध निर्देश का पालन कर रहे हैं और ना ही जिला प्रशासन के आदेश का।
बारिश की अवधि में नदियों से रेत के खनन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा हुआ है साथ ही कलेक्टर ने भी टास्क फोर्स को संयुक्त रूप से कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया है। शुरुआती दिनों में दो-चार कार्रवाई तो हुई लेकिन इसके बाद मामला ठंडा पड़ गया। अभी एक तस्वीर कटघोरा क्षेत्र से सामने आई जिसमें नदी में ट्रैक्टर उतार कर रेत ढोई जा रही है।

दूसरी तरफ एक चौंकाने वाला वीडियो सामने आया है जो न सिर्फ एनजीटी के निर्देश बल्कि रेत के अवैध खनन- परिवहन को लेकर बनाए गए कानून, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के द्वारा अवैध खनन के मामले में दिखाई जा रही सख्ती के साथ शासन को दिए जाने वाले निर्देश तथा जिला प्रशासन की हिदायत का मजाक उड़ाने वाली कही जा सकती है।
सीतामणी-भिलाइखुर्द इलाके में सक्रिय रहने वाले रेत माफिया के यह सभी ड्राइवर हैं जो सीतामढ़ी घाट में दिनदहाड़े नदी में उतरकर जेसीबी की मदद से रेत की चोरी कर रहे हैं। कोतवाली थाना क्षेत्र अंतर्गत सीतामढ़ी घाट आता है। इंस्टाग्राम में यह वीडियो गाने के साथ किसी सूरज नाम के युवक ने पोस्ट किया है, उसके इंस्टाग्राम में यह वीडियो वायरल है जो यह बताने के लिए काफी है कि नियम और निर्देश इनके ठेंगे पर है और यह अपने मालिक के कहने पर कुछ भी करने को तैयार हैं। ऐसे लोगों की वजह से न सिर्फ सरकार के निर्देशों की अवहेलना हो रही है बल्कि यह किसी भी हद तक जाकर नुकसान भी पहुंचा सकते हैं।

यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि जिला प्रशासन की संयुक्त टीम हो या टास्क फोर्स, यह सभी शायद रेत माफियाओं के शरणागत हो गए हैं या फिर इन्हें संरक्षण देने वाले नेता की शरण में हैं…! अन्यथा इसके अलावा दूसरी और कोई वजह शायद ही होगी कि प्रतिबंध अवधि में भी रेत चोरी करने वालों पर कोई लगाम नहीं कस पा रही है। एक वीडियो में तो साफ दिख रहा है कि ट्रैक्टर का अगला हिस्सा पूरी तरह से उठ गया है यानी कि वह आगे बढ़ने को तैयार ही नहीं।किसी तरह से प्रयास कर इंजन के हिस्से को जमीन पर लाया गया और फिर चालक आगे बढ़ा।
नदी क्षेत्र में जहां जल भराव लगातार हो रहा है वहीं कीचड़ भी निर्मित हो रहे हैं। जहां-तहां से रेत खोदने के कारण छोटे-बड़े गड्ढे भी निर्मित हो गए हैं। इनकी वजह से कभी भी कोई भी छोटी-बड़ी दुर्घटना, दुर्घटना के कारण मौत या घायल होने की घटना घटित होना संभावित है। तो क्या ऐसी घटनाओं के लिए इन रेत चोरों पर जवाबदारी तय की जाएगी? इसमें यह भी है की रेत परिवहन में लगे अधिकांश ट्रैक्टरों में नंबर ही नहीं लिखा गया है, तो परिवहन विभाग भी इनके आगे बेबस है। फार्म हाउस के नाम पर सब्सिडी प्राप्त कर दूसरे जिले से ट्रैक्टर खरीदने के बाद इसका दीगर कार्यों में धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है तो क्या नियम-कायदे इन पर लागू नहीं होते? क्या जिले का पुलिस और प्रशासन इतना बेबस है कि वह ऐसे लोगों की धर पकड़ नहीं कर पा रहा है? खनिज संसाधन की चोरी का मुकदमा दर्ज नहीं कर पा रहा है। आखिर वह कौन से जनप्रतिनिधि हैं जो मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की मंशा के विपरीत जाकर इन रेत माफियाओं को जिले भर में संरक्षण दिए बैठे हैं..? ऐसे चंद नेताओं के संरक्षण में रेत और अन्य खनिज के माफिया सरकार और प्रशासन की भद्द पीट रहे हैं….। लुटते संसाधनों पर कांग्रेसजनों की सधी हुई खामोशी भी रहस्यमय है।
