CG : मंत्रालय में रंगों से तय होगा रूतबा !रंग-बिरंगे फीते वाले ID कार्ड लागू करने के फैसले पर कर्मचारी संगठनों ने जताया विरोध ,कहा -गहरी वर्गभेद की रेखाएं भी खिंच गई,फैसला वापस नहीं लेने पर सामूहिक अवकाश पर जाने की दी चेतावनी ….

रायपुर । छत्तीसगढ़ के रायपुर मंत्रालय में रंग-बिरंगे फीते वाले ID कार्ड लागू कर दिए गए हैं, जिससे कर्मचारियों की पहचान और रुतबा तय होगा। पीला फीता अफसरों का, नीला बाहरी विभाग का और सफेद गैर-शासकीय लोगों का। कर्मचारी संगठनों ने इसे भेदभावपूर्ण बताकर विरोध शुरू कर दिया है।

नवा रायपुर का मंत्रालय इन दिनों एक अजीब सी रंगीन दुनिया में तब्दील हो गया है। यहाँ न अब सिर्फ फाइलें चलती हैं, बल्कि गले में लटकते रंग-बिरंगे फीते भी अफसरों और कर्मचारियों की ‘औकात’ बताते हैं। सामान्य प्रशासन विभाग (General Administration Department) के नए आदेश के मुताबिक अब मंत्रालय और अन्य सरकारी दफ्तरों में रंग के आधार पर पहचान पत्र (ID card with color-coded lanyard) दिए जाएंगे, जिससे प्रवेश व्यवस्था सख्त तो होगी, पर साथ ही गहरी वर्गभेद की रेखाएं भी खिंच गई हैं।

पीला, नीला, सफेद- रुतबे की नई परिभाषा👇

नए आदेश के अनुसार जिनके पास पीला फीता होगा, वे मंत्रालय के ‘शासकीय सेवक’ माने जाएंगे – यानी वो अफसर या कर्मचारी जो पूर्णकालिक सरकारी सेवा में हैं। नीला फीता उन लोगों को दिया जाएगा जो किसी बाहरी विभाग से जुड़े हैं – यानी संविदा कर्मचारी या अस्थायी सेवा वाले। और सफेद फीता? वो उन लोगों का प्रतीक है जो गैर-शासकीय हैं – यानी विजिटर, ठेकेदार, रिटायर्ड कर्मचारी या कोई आम नागरिक। इस रंग-बिरंगी व्यवस्था (Chhattisgarh Ministry ID Card) ने मंत्रालय को ‘फैशन रैंप’ में तब्दील कर दिया है, जहाँ लोगों का रुतबा अब कंधे पर लटके फीते के रंग से तय होता है।

विरोध में गरजे कर्मचारी संगठन👇

कमल वर्मा, अध्यक्ष (अधिकारी कर्मचारी संघ) जय कुमार साहू (संचालनालय कर्मचारी संघ) और महेंद्र सिंह राजपूत (मंत्रालयीन कर्मचारी संघ) जैसे प्रमुख नेताओं ने इस आदेश का जोरदार विरोध किया है। उनका साफ़ कहना है कि “हम RFID या QR कोड वाले ID कार्ड का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन रंगों के ज़रिए कर्मचारियों के बीच भेदभाव को नहीं मानते।”

उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि सभी कर्मचारियों को एक जैसे रंग का फीता नहीं दिया गया, तो आंदोलन (employee protest against lanyard color discrimination) किया जाएगा। मंत्रालय में पहले ही लिफ्ट और कैंटीन में वर्गीकरण हो चुका है – अब गले के फीते से पहचान करवाना कर्मचारियों की गरिमा को ठेस पहुँचाने जैसा है।

‘फीते’ से तय होगी लिफ्ट, कैंटीन और सम्मान?👇

कल्पना कीजिए, एक दिन ऐसा आए जब मंत्रालय में लिफ्ट का इस्तेमाल भी रंग के आधार पर हो। पीले वालों को सीधे 5वीं मंजिल, नीले वालों को तीसरी और सफेद वालों को सीढ़ियाँ। कैंटीन में मेन्यू भी फीते के रंग से तय हो – “पीले वालों को बिरयानी, नीले वालों को खिचड़ी और सफेद वालों को सिर्फ चाय – वो भी बिना चीनी की।” यह व्यवस्था सिर्फ परिचय पत्र तक सीमित नहीं रही, बल्कि मानव गरिमा और अधिकारों का मज़ाक बनती दिख रही है।

RFID, QR कोड, और होलोग्राम से सजी पहचान👇

इस नई पहचान व्यवस्था में ID कार्ड में तकनीकी सुरक्षा जैसे RFID, QR कोड और होलोग्राम का उपयोग किया जाएगा। यह कदम सुरक्षा की दृष्टि से प्रशंसनीय है। लेकिन मूल विवाद इस तकनीक से नहीं, बल्कि फीते के रंग से है।

गैर-शासकीय कर्मचारियों को सिर्फ एक साल के लिए वैध ID मिलेगा, जबकि शासकीय सेवकों को पाँच साल के लिए। रिटायर्ड अफसरों तक को एक साधारण फीता मिलेगा – न लोगो, न विभाग का नाम। मानो रिटायर होते ही पहचान भी रद्द कर दी गई हो।