KORBA: 7 देवियों के अखण्ड ज्योति से ऊर्जित होगा उर्जाधानी ,गौमुखी सेवा धाम में हिंगलाजगढ़ की स्थापना से दूर-दूर तक फैलेगी प्रसिद्धि

0 देवपहरी बन रहा आध्यात्म और देशभक्ति का केंद्र,7 महापुरुषों के भी होंगे दर्शन

कोरबा। मिनी इंडिया कोरबा जिलावासियों को अब ग्राम देवपहरी में प्रसिद्ध शक्तिपीठों के अखंड ज्योति के दर्शन का पुण्य लाभ प्राप्त होगा। इस सेवा प्रकल्प में आम लोगों में देशभक्ति की भावना जागृत करने की दिशा में भी बेहतरीन कार्य किया जा रहा है। आध्यात्म और देशभक्ति जागृत करने का प्रकल्प भी सेवा के साथ-साथ चलेगा।
कोरबा जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर ग्राम देवपहरी में गौमुखी सेवा धाम के तत्वाधान में सिद्धीदात्री मंदिर स्थापना के 25 साल बाद हिंगलाजगढ़ का निर्माण करने जा रहे हैं। 6 शक्तिपीठों की अखंड ज्योति इस स्थान की महत्ता और बढ़ाएगी।

🔥 सप्तदेवियों की अखण्ड ज्योति से ऊर्जित होगा कोरबा

गौमुखी सेवाधाम के सचिव योगेश जैन ने बताया कि हिंगलाज माता जिनका मूल स्थान बलूचिस्तान है, वहां जिसे नानी मां के नाम से जाना जाता है। देवघाटी के 40 ग्रामों में माई कलशा के रूप में हिंगलाज माता की पूजा की जाती है। दोनों मनोकामना ज्योति कलश के समय हिंगलाज माता की स्थापना गौमुखी सेवा धाम में की जाती है। अब,ग्राम वासियों की मांग पर वहां पर हिंगलाजगढ़ की स्थापना होने जा रही है। किलेनुमा आकृति में बन रहे हिंगलाजगढ़ में भारत के चारों दिशाओं से सात अखंड ज्योति स्थापित होगी। छठवीं सिद्धिदात्री मैया की अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित होगी एवं सातवीं अखंड ज्योति के स्थान पर अभी एक दीप स्थापित होगा जहां बलूचिस्तान के अखंड भारत में आने पर वहां से ज्योति लाकर अखंड ज्योत को प्रज्ज्वलित किया जाएगा। माई कलशा पर 40 ग्रामों से मिट्टी लाकर उस स्थान को बनाया जायेगा, जहां ज्वारा बोया जायेगा। कोरवा, पंडों, बिरहोर, राठिया, कंवर, मंझवार समाज के ग्रामवासियों द्वारा ज्योति कलश की स्थापना की जाएगी।

👉🏻अखण्ड ज्योति लाने स्वयंसेवक होने लगे रवाना

दक्षिण में माता कामाक्षी देवी कांचीपुरम की दूरी 1456 किलोमीटर है। यहां के लिए आज 11 सितम्बर को ब्रम्हमुहूर्त में बालाजी मंदिर के पुजारी ने पूजापाठ कर महिला स्वयंसेवकों को रवाना किया। ये अखण्ड ज्योति लेकर 18 सितंबर को वापस बालाजी मंदिर आयेंगी।
उत्तर में माता वैष्णो देवी के लिए 12 सितंबर को जाने के बाद 19 तारीख को कुसमुंडा मंदिर पहुंचेगी।
पूरब से माता कामाख्या देवी गुवाहाटी से अखंड ज्योत लाने 14 सितंबर को स्वयंसेवक जाएंगे और 19 तारीख को वह वापस श्रीराम मंदिर बाल्को पहुंचेंगे। पश्चिम से मां कालका देवी पावागढ़ गुजरात के लिए स्वयंसेवक 15 सितंबर को जाएंगे एवं 19 सितंबर को जलाराम मंदिर वापस आएंगे। मध्य क्षेत्र में शारदा देवी के मैहर माता से अखंड ज्योति लाने स्वयंसेवक 14 सितम्बर को जाकर 17 को शिव मंदिर साडा कालोनी पहुंचेंगे।

🚩नवरात्रि के प्रथम दिन होगी स्थापना

सभी अखंड ज्योति 20 सितंबर को शाम 5 बजे तक सप्तदेव मंदिर कोरबा पहुंच जायेगी। वहां से 21 सितंबर को सुबह 10 बजे निकलकर गौमुखी सेवा धाम देवपहरी से 12 किलोमीटर पहले गढ़ उपरोड़ा पहुंचेगी। जहां से 22 सितंबर को सुबह 6 बजे पैदल चलकर ग्राम वासियों के द्वारा लगभग 10 बजे मां सिद्धिदात्री मंदिर देवपहरी में पांचों अखंड ज्योति को लाया जायेगा और विधि-विधान से अखंड ज्योति की स्थापना की जाएगी।

🇮🇳 राष्ट्रप्रेम की अलख जगाएँगी महापुरुषों की गाथाएं

हिंगलाजगढ़ में सप्त सरोवर का निर्माण राष्ट्र प्रेम को जागृत करने के उद्देश्य से किया जा रहा है जहां भारत माता की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। गुरु गोविंद सिंह जिन्होंने देश धर्म की रक्षा के लिए चारों पुत्रों का बलिदान कर दिए थे, उनकी प्रतिमा स्थापित होगी। चंद्रशेखर आजाद जिनके बारे में एक किस्सा कहा जाता है अंग्रेजों से लड़ाई लड़ने के लिए माउजर बंदूक खरीदने के लिए चंद्रशेखर ने पैसे इकट्ठा किए थे, भगत सिंह ने उनसे कहा की मां को साड़ी-रोटी की जरूरत है अभी इस पैसे से साड़ी-रोटी ले लेते हैं, माउजर बाद में ले लेंगे तो उन्होंने कहा था अभी देश को माउजर की जरूरत है तो पहले बंदूक लेंगे। सुभाष चंद्र बोस जिन्होंने आजाद हिंद फौज खड़ी कर देश को आजाद करने का संकल्प लिया था और जब उनको अंडमान जेल में रखा गया था तो उन्होंने जेल में ही तिरंगा फहराकर अंडमान को आजाद करा दिया था। भगवान बिरसा मुंडा जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ ग्रामीणों को संग लेकर तीर धनुष से लड़ाई लड़ी थी, उनकी प्रतिमा स्थापित होगी। रानी दुर्गावती जो गोंड़ वंश की रानी थी और मुगल सम्राट अकबर से जिन्होंने लड़ाई लड़ी थी, जिनकी पराक्रम की गाथाएं गायी जाती है, पति की मृत्यु के पश्चात 16 वर्षों तक गढ़ की उन्होंने सेवा की थी। छत्रपति शिवाजी जिन्होंने हिंद साम्राज्य की स्थापना की थी, औरंगजेब से लड़ाई लड़ने में उन्होंने सर्वप्रथम गोरिल्ला युद्ध का प्रयोग किया था और उस समय पहली जल सेना की स्थापना की थी, उनकी प्रतिमा स्थापित की जाएगी।

🚩 गौमुखी सेवाधाम- सेवा का एक प्रकल्प,जानें 25 साल का इतिहास

सर्वप्रथम 8 पंचायत के 40 ग्रामों के ग्रामवासियों के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से गौमुखी सेवा धाम देवपहरी का कार्य प्रारंभ हुआ था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस प्रकल्प गौमुखी सेवा धाम में चार आयाम पर कार्य होते हैं। पहला स्वास्थ्य, दूसरा शिक्षा, तीसरा आध्यात्म, चौथा स्वाबलंबन, स्वास्थ्य के उद्देश्य से जब मंदिर का भूमिपूजन हुआ था, उस समय से ही स्वास्थ्य शिविर का आयोजन स्वयंसेवकों द्वारा कोरबा के चिकित्सको की मदद से किया जाता था एवं 2004 में एक तीन बेड के चिकित्सालय की भी आधारशिला रखी गई थी। 2004 में टोकरी एवं खटिया में मरीजों को लाया जाता था और आश्रम में उनका इलाज के साथ-साथ दवाईयां भी नि:शुल्क दिया जाता था। विभिन्न संस्थाओं द्वारा सीएसआर मद से एंबुलेंस प्रदान किया गया, उस एंबुलेंस की मदद से हर 15 दिन में किसी न किसी ग्राम में कैंप लगाते आ रहे हैं एवं जरुरत पड़ने पर इलाज के लिए एंबुलेंस से मरीजों को कोरबा-बिलासपुर-रायपुर तक भेजने का कार्य भी करते हैं। आज सन् 2004 से ही 24 घण्टे 7 दिन ऐसे काम करने वाले चिकित्सक उपलब्ध हैं, जो हमेशा ग्रामीणों का इलाज के लिए तत्पर रहते हैं।

📚📖दूसरा आयाम शिक्षा

शिक्षा के लिए वर्ष 2002 में विद्यालय की स्थापना हो गई थी, उस समय कुल 27 बच्चे वहां अध्ययनरत थे। पांचवी तक की कक्षा लगती थी एवं 9 बालक, बालक छात्रावास में रहते थे आज 25 साल बाद वहां 90 बालक एवं 90 बालिकाओं के लिए छात्रावास उपलब्ध है एवं कुल 310 बच्चे वहां अध्यनरत हैं जिन्हें नि:शुल्क शिक्षा के साथ-साथ नि:शुल्क भोजन, नि:शुल्क गणवेश, प्रवेश आदि दिया जाता है। संस्थान से अभी तक 12 बच्चे नेशनल भी खेल चुके हैं।

🛕तीसरा आयाम आध्यात्म

सन् 2000 में मंदिर का भूमिपूजन हुआ और 2002 में मंदिर बनकर तैयार हो गया था। 2004 में 40 ग्रामों में हर घर में रामचरितमानस का वितरण कोरबा के नागरिकों के सौजन्य से किया गया। आज भी देवपहरी के 40 ग्रामों में जो रामचरितमानस घर-घर में है, उसमें किसी न किसी कोरबा के नागरिक का नाम लिखा होगा जिन्होंने उस समय उसकी राशि उपलब्ध कराई थी। 2002 से ही वहां मनोकामना ज्योति कलश प्रचलित होने लगे थे। चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि में लगभग 600- 600 मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जलवित होते हैं। सिद्धिदात्री माता की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही वहां पर आठ प्रांत से भारत के कोने के चार प्रांत एवं मध्य प्रदेश के कोने के चार प्रांतों से प्रतिमाएं लाई गई थी एवं कोरबा में रहने वाले इस प्रांत के लोगों ने धनराशि इकट्ठा कर एवं वहां जाकर प्रतिमा लेकर आए थे जिसे देवपहरी में प्राण-प्रतिष्ठित किया गया। मंदिर के निर्माण में 40 ग्राम के वासियों ने मिट्टी और जल लाया, श्रमदान भी किया। तभी आज से 25 साल पहले इतना भव्य मंदिर वहां बन पाया।