बिलासपुर। स्कूल शिक्षा विभाग में प्रमोशन से वंचित टीचर की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जस्टिस संजय जायसवाल ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि, किसी भी अधिकारी-कर्मचारी के पात्र होने के बाद भी प्रमोशन से वंचित रखना भेदभावपूर्ण है।
कोर्ट ने प्रमोशन से वंचित टीचर को राहत देते हुए शिक्षा विभाग के 16 सितंबर 2016 के उस आदेश को निरस्त कर दिया जिसमें याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वे अपनी समस्त मांगों के साथ नया अभ्यावेदन प्रस्तुत करें। साथ ही सक्षम प्राधिकारी को 90 दिनों के भीतर भर्ती एवं पदोन्नति नियम, 2008 के अनुसार निर्णय लेने का आदेश दिया है।
👉जानें क्या है मामला
याचिकाकर्ता दिनेश कुमार राठौर की पहली नियुक्ति 26 अप्रैल 1989 को शिक्षक के पद पर हुई थी। इसके बाद 2 फरवरी 2009 को उन्हें उच्च वर्ग शिक्षक के पद पर पदोन्नति दी गई। जिला शिक्षा अधिकारी ने 23 जनवरी 2015 के आदेश से उन्हें 18 अगस्त 2008 से वरिष्ठता भी प्रदान की थी। नियमों के अनुसार पांच वर्ष की सेवा पूर्ण करने के बाद वे व्याख्याता पद पर पदोन्नति के लिए पात्र थे।
👉सीनियर के बजाय जूनियर को दी नियुक्ति
छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा राजपत्रित सेवा (स्कूल स्तर सेवा) भर्ती एवं पदोन्नति नियम, 2008 के तहत व्याख्याता के पद 100 प्रतिशत पदोन्नति से भरे जाने का प्रावधान है। इसके बावजूद विभागीय पदोन्नति समिति ने 19 जून 2012 को जारी आदेश में याचिकाकर्ता से जूनियर को पदोन्नत कर दिया, जबकि उनके प्रकरण पर विचार ही नहीं किया गया।
👉दावा खारिज होने पर हाईकोर्ट में लगाई याचिका

विभाग ने याचिकाकर्ता का दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि, 1 अप्रैल 2010 को उनके पास स्नातकोत्तर उपाधि नहीं थी। जबकि, वास्तविकता यह है कि याचिकाकर्ता ने 16 अप्रैल 2012 को स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर ली थी और पदोन्नति आदेश 19 जून 2012 को जारी हुआ था, यानी पदोन्नति की तिथि पर वे पूरी तरह पात्र थे।
प्रशासनिक स्तर पर राहत न मिलने पर याचिकाकर्ता ने पहले वर्ष 2015 में हाईकोर्ट की शरण ली। कोर्ट के निर्देशों के बावजूद विभाग ने 16 सितंबर 2016 को दोबारा दावा खारिज कर दिया। इससे आहत होकर याचिकाकर्ता ने वकील जितेन्द्र पाली और अनिकेत वर्मा के माध्यम से याचिका दायर की थी।
