हाथों में तख्तियां लेकर युवा पूछ रहे कलेक्टर मैडम ,महापौर जी कब बनेगी जर्जर सड़क

चेतावनी, आश्वासन के बाद भी उपनगरीय क्षेत्रों की सडकों की नहीं ली जा रही सुध ,दर्री बराज मार्ग में लोगों ने किया प्रदर्शन

कोरबा। जिले में अत्यंत जर्जर जानलेवा हो चुकी सड़कों की मरम्मत जीर्णोद्धार, नव निर्माण को लेकर किए जा रहे कागजी दावे को लेकर क्षेत्रवासियों के सब्र का बांध फूटने लगा है ।
इसी कड़ी में दर्री बराज मार्ग में स्थानीय लोगों ने हाथों में तख्तियां लेकर श्रृंखला बनाकर प्रदर्शन किया। युवतियों और युवकों के द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन में नारेबाजी के साथ पूछा जाता रहा कि कलेक्टर मैडम, यह सड़क कब बनेगी? महापौर से गुहार लगा रहे हैं कि महापौर जी सड़क बनवा दो..।

जिले के प्रारंभ से लेकर अंतिम सीमा तक लोग सड़क की मार झेल रहे हैं। बारिश में सड़कों पर अनगिनत गड्ढे, गड्ढों में भरा पानी, कहीं-कहीं तो छोटी-छोटी डाबरियाँ और इनमें हिचकोले खाते बड़े वाहन और दाएं- बाएं से बचकर निकलने की कोशिश करते दुपहिया चालक और पैदल राहगीरों के गुजरने का नजारा आम है।यहां यह गौर करने वाली बात है कि जिले में कद्दावर और लोकप्रिय नेताओं की कमी नहीं किंतु उनकी भी बातों को कहीं न कहीं अनसुना कर दिया जा रहा है जिसका खामियाजा जनता के साथ वे खुद भी भुगत रहे हैं। इमली छापर कुसमुंडा से लेकर हरदी बाजार भिलाई बाजार होते हुए आगे जाने वाली सड़क हो, बांकीमोंगरा की सड़क हो या कटघोरा क्षेत्र में बीरबल की खिचड़ी की तरह निर्माणाधीन गौरव पथ हो या पाली क्षेत्र की सड़क, इनके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों अभी हाल बेहाल है। ग्रामीण क्षेत्रों की कुदमुरा-चिर्रा-श्यांग सहित कई चर्चित सड़कें भी अपना उद्धार नहीं करा पाई हैं जहां भारी वाहनों का दबाव नगण्य रहता है। एसईसीएल प्रबंधन की घोर अनदेखी और सिर्फ अपने माल ढुलाई से वास्ता रखने के कारण इस तरह के हालातों में उसकी सर्वाधिक जिम्मेदारी बनती है। कोयला परिवहन के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में खनिज व अन्य सामानों की ढुलाई के लिए भारी वाहनों का आवागमन सड़कों की दशा बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार है लेकिन महत्वपूर्ण और दमदार नेतृत्व होने के बाद भी सड़कों का रोना विगत 15-20 वर्षों से रोया जा रहा है तो नि:संदेह सुनवाई करने में आनाकानी का इसे परिणाम कहा जा सकता है। सड़कों के मामले में विभागीय उदासीनता, लापरवाही और अनदेखी भी कुछ कम जिम्मेदार नहीं। कई सड़कें समय से पहले दम तोड़ देती हैं जबकि निर्माणकर्ता एजेंसी हो या फिर विभागीय अधिकारी, उन्हें यह तो मालूम रहता ही है कि उक्त मार्ग से भारी वाहनों का 24 घंटे आवागमन होना है। तो भला सड़क उसकी भार वहन क्षमता लायक क्यों नहीं बनाई जाती? यदि क्षमता अनुसार बनाते हैं तो जल्द ही उखड़ने क्यों लगती है?

आश्वासन के झुनझुने पर बहल जाती है जनता

आश्वासन एक ऐसा झुनझुना है जिसको थमा देने पर आम जनता बड़े ही सरल और सहज तरीके से बहल जाती है। इसी का लाभ वर्षों से जनप्रतिनिधि, अधिकारी और उद्योग प्रबंधन उठाते आ रहे हैं। इस मामले में यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रशासन की बैठकों में संबंधित क्षेत्र के उद्योग प्रबंधनों को जनप्रतिनिधियों की घुड़की सिर्फ दिखावे की बन कर रह जा रही है। यदि जनप्रतिनिधि और प्रशासन सख्ती बरतते तो वर्षों की यह सड़क समस्या कब का निराकृत हो जाती। जिम्मेदार उद्योग प्रबंधन भी आश्वासन का महत्व समझ चुके हैं और वह जनप्रतिनिधियों एवं जिले के अधिकारियों को आश्वासन का झुनझुना थमा देते हैं और वही झुनझुना घूम-फिर कर जनता के हाथ आ जाता है। यही सिलसिला वर्षों से चलता आ रहा है और न जाने कब तक या झुनझुना आम जनता बजा-बजा कर अपना मन बहलाती रहेगी।