एजेंसी।डॉक्टर (श्रीमती) अबस, प्रोफेसर (सुश्री) कखग. इस अबस और कखग की जगह आप किसी महिला का नाम डाल दीजिए. किसी डॉक्टर के क्लिनिक के बाहर या किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में महिला प्रोफेसर्स के नाम हमें इस तरह से लिखे दिखते हैं. इस तरह नाम लिखा जाना आंखों को चुभता है. कि जब डॉक्टर या प्रोफेसर अपने आप में एक संबोधन है तो फिर साथ में श्रीमती, सुश्री लगाने की क्या ज़रूरत? इस तरह से नाम लिखा जाना प्रोफेसर प्रतिमा गोंड को भी चुभता था. प्रोफेसर प्रतिमा बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के महिला महाविद्यालय में समाजशास्त्र की प्रोफेसर हैं.
अक्टूबर, 2020 में उन्होंने यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को इसे लेकर ईमेल लिख दिया. चिट्ठी में लिखा कि आखिर एक महिला शिक्षिका के मैरिटल स्टेटस पर इतना ज़ोर क्यों दिया जा रहा है? चिट्ठी में उन्होंने ये बात भी हाईलाइट की थी कि पुरुष शिक्षकों के नाम तो डॉक्टर या प्रोफसर के साथ सीधे लिखे जाते हैं. फिर महिलाओं के लिए ये अंतर क्यों? जब ईमेल का जवाब नहीं आया तो उसका प्रिंट आउट लेकर प्रोफेसर प्रतिमा खुद वीसी के पास पहुंचीं.
उन्होंने अपनी चिट्ठी को लेकर उनसे बात की, तब वीसी की तरफ से उन्हें कहा गया कि उनके सुझाव सही है और इस दिशा में ज़रूरी कदम उठाए जाएंगे. हालांकि, फिर कोरोना की दूसरी लहर आ गई और प्रोफेसर प्रतिमा को लगा कि मामला अटक गया. अब इसे लेकर कोई नोटिफिकेशन तो नहीं जारी किया गया है, लेकिन उनकी चिट्ठी में जो बातें हाईलाइट की गई थीं उन्हें करेक्ट कर लिया गया है.
प्रोफेसर प्रतिमा ने फोन पर हमसे बात की. उन्होंने बताया,
“मैंने लेटर में लिखा था कि महिला शिक्षकों के नाम केवल डॉक्टर या प्रोफेसर संबोधन के साथ लिखे जाने चाहिए. वीसी ने मुझे इसे लेकर आश्वासन भी दिया था. कोरोना वायरस के कारण मुझे पता था कि बदलाव आने में वक्त लगेगा. अभी कोई आधिकारिक नोटिफिकेशन तो नहीं आया है, लेकिन सेंट्रल ऑफिस और यूनिवर्सिटी के दूसरे ऑफिसेस के नेम प्लेट्स में पहले जो प्रोफेसर श्रीमती के साथ नाम लिखा होता था, वो अब नहीं है. नए नेम प्लेट्स में प्रोफेसर या डॉक्टर के साथ सीधे नाम लिखा गया है. अगस्त में जो सीनियरिटी लिस्ट आई थी उसमें भी श्रीमती या कुमारी की जगह Ms का इस्तेमाल किया गया है. हालांकि, इसकी भी ज़रूरत नहीं होनी चाहिए.”
प्रोफेसर प्रतिमा कहती हैं कि ये अजीब है कि महिलाओं की पहचान उनके मैरिटल स्टेटस से की जाती है. कुमारी, श्रीमती या फिर सुश्री के साथ उनका नाम लिखा जाता है. वो कहती हैं कि जिस तरह पुरुषों के लिए मिस्टर या श्रीमान जैसे एक मैरिटल न्यूट्रल टाइटल का इस्तेमाल किया जाता है, वैसे ही महिलाओं के लिए भी किया जाना चाहिए. हालांकि, वो मानती हैं कि इसके लिए अभी वक्त लगेगा.
लेकिन औरतों के संबोधन के लिए क्या कोई न्यूट्रल टाइटल नहीं है?
श्रीमती शब्द के लिए प्रोफेसर प्रतिमा कहती हैं कि ये असल में श्रीमान के समानांतर शब्द है. पहले नाम के आगे श्रीमती लगाने का मतलब ये नहीं था कि महिला शादीशुदा है. लेकिन वक्त के साथ श्रीमती शब्द को विवाहित महिलाओं से लिंक कर दिया गया. और अब इस शब्द का इस्तेमाल शादीशुदा स्त्रियों के लिए ही किया जाता है. औरतों के संबोधन के लिए हिंदी में मुख्यतः तीन शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है.
कुमारीः उन महिलाओं के लिए जो अविवाहित हैं.
श्रीमतीः शादीशुदा महिलाओं के लिए.
सुश्रीः उन महिलाओं के लिए जो या तो अपना मैरिटल स्टेटस जाहिर नहीं करना चाहतीं, या दोनों में से किसी भी खांचे में बंधना नहीं चाहती या उनके लिए जिनके मैरिटल स्टेटस को लेकर आपको संशय हो.
सुश्री शब्द चलन में कैसे आया इसे लेकर कवि त्रिभुवन ने साल 2018 में एक पोस्ट लिखी थी. दरअसल उस वक्त IAS टीना डाबी की नियुक्ति की चिट्ठी में उनके नाम के साथ सुश्री लिखा गया था. तब कई लोगों ने इस पर आपत्ति जताई कि टीना तो शादीशुदा हैं, ऐसे में उनके नाम के साथ श्रीमती लिखा जाना चाहिए. न कि सुश्री. इसी को लेकर त्रिभुवन ने पोस्ट लिखा था. उन्होंने लिखा,
यह बात मुझे एक पत्र में प्रसिद्ध लेखक हरिवंश राय बच्चन ने बताई थी. उनका कहना था कि हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका पल्लव का संपादन सुप्रसिद्ध कवि सुमित्रा नंदन पंत किया करते थे और उनके पास बहुत सी युवतियों की कविताएं आया करती थीं. उनमें उन कवयित्रियों के नामों के आगे न तो कुमारी लगा होता था और न ही श्रीमती. ऐसे में बहुत पसोपेश रहता और आजकल की तरह मोबाइल आदि थे नहीं. यह कैसे पूछा जाता कि आप शादीशुदा हो या कुमारी. यह एक बड़ी उलझन थी. इन हालात में पंत जी को एक विचार सूझा. जिन कवयित्रियों के श्रीमती या कुमारी होने का संशय होता, उन्होंने उनके आगे सुश्री लगाना शुरू कर दिया. यह श्रीमती के आगे भी लग जाता और कुमारी की जगह भी. इस तरह एक सुंदर शब्द का सृजन पंत जी ने किया. हालांकि कालांतर में इस शब्द ने शनै: शनै: कुमारी शब्द की जगह ले ली. लेकिन हक़ीक़त में इस शब्द का सृजन कुमारी और श्रीमती के संशय वाले नामों के लिए हुआ था.”
अंग्रेज़ी में भी Miss, Mrs and Ms टाइटल्स का लंबा इतिहास है
लेकिन तीन तरह के संबोधनों वाली समस्या केवल हिंदी में थोड़ी है. अंग्रेज़ी में भी औरतों के लिए तीन-तीन संबोधन हैं. Miss, Mrs और Ms. इसे लेकर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने इतिहासकार डॉक्टर एमी एरिक्सन के एक पेपर पर आर्टिकल प्रकाशित किया है. यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर छपे आर्टिकल के मुताबिक, एमी एरिक्सन के पेपर से ये पता चलता है कि Mrs शब्द का असल प्रनंसिएशन मिस्ट्रेस (Mistress) होता है. और कई सदियों तक इस टाइटल का इस्तेमाल हर उस वयस्क महिला के लिए होता था, जिसका सामाजिक दर्जा ऊंचा हो. इस टाइटल का महिला के शादीशुदा होने या नहीं होने से कोई संबंध नहीं था.
आर्टिकल के मुताबिक एमी एरिक्सन ने 1801 से पहले महिलाओं के रोज़गार पर स्टडी की थी. इसके लिए उन्होंने उस वक्त के दस्तावेज खंगाले थे. इसी दौरान उन्होंने ये भी देखा कि तब महिलाओं के नाम नाम किस तरह लिखे जाते थे. इसी के बाद उन्होंने ये ट्रैक किया कि टाइटल्स किस तरह समय के साथ बदलते गए.
एमी एरिक्सन के मुताबिक,
“Mrs और Miss, दोनों ही मिस्ट्रेस शब्द के एब्रिविएशन हैं. इसी तरह मास्टर शब्द का एब्रिविएशन Mr है. पर जिस तरह से समय के साथ इन टाइटल्स के अलग-अलग मतलब बना लिए गए ये काफी दिलचस्प है. ये समाज, घरों और काम की जगहों पर महिलाओं की बदलती स्थिति को भी बताता है.”
एरिक्सन की रिसर्च में यह भी पता चलता है कि 18वीं शताब्दी के मध्य तक मिस शब्द का इस्तेमाल केवल छोटी लड़कियों के लिए किया जाता था. वहीं 19वीं सदी तक ज्यादातर औरतों के नाम के साथ टाइटल नहीं लगाया जाता था. सीधे उनके नाम लिए जाते थे. Mrs या Miss टाइटल केवल ऊंचे घरानों की औरतों के लिए इस्तेमाल होते थे.
18वीं सदी तक हर उस महिला के लिए Mrs टाइटल का इस्तेमाल होता था जो बिजनेस ट्रेड करती थीं, ऊंचे घरानों से थीं. इस टाइटल का उनके मैरिटल स्टेटस से कोई लेना-देना नहीं था.
एरिक्सन के मुताबिक, Mrs टाइटल Mr का समानांतर टाइटल था. इसका औरत के शादीशुदा होने से कोई संबंध नहीं था. वो लिखती हैं,
18वीं सदी में जिन महिलाओं ने लंदन की कंपनियों की मेंबरशिप ली, वो सब सिंगल थीं. लेकिन उन्हें Mrs टाइटल के साथ संबोधित किया जाता था, जैसे पुरुषों को Mr टाइटल के साथ. ये सब अपने ट्रेड के मास्टर्स और मिस्ट्रेसेस थे.”
एरिक्सन के मुताबिक, बाद के सालों में युवा लड़कियों ने Mrs की जगह Miss टाइटल का इस्तेमाल शुरू किया. ये संभवतः उनका तरीका था अलग दिखने का. 19वीं सदी में औरतों ने पति का नाम अपनाना शुरू किया. इससे हुआ ये कि उन्हें Mrs (पति का नाम/सरनेम) से पुकारना शुरू हुआ. और धीरे-धीरे इसका ये मतलब निकाल लिया गया कि मिस मतलब अविवाहित और मिसेस मतलब विवाहित महिला.
पर कई महिलाएं तब भी थीं जो खुद को शादीशुदा या गैर शादीशुदा के खांचे में रखना नहीं चाहती थीं. एरिक्सन के मुताबिक, 1901 में Miss और Mrs के न्यूट्रल विकल्प के तौर पर महिलाओं ने Ms टाइटल का इस्तेमाल शुरू किया. एरिक्सन के मुताबिक,
“Miss या Mrs के विरोध में तर्क था कि ये टाइटल ये पारिभाषित करते हैं कि औरत किस पुरुष की जिम्मेदारी है. Miss है तो पिता, Mrs है तो पति. दूसरी तरफ कई लोग ये कहकर आज भी Ms की आलोचना करते हैं कि वो किसी कैटेगिरी में नहीं आता.”
हिंदी में कुमारी शब्द Miss, श्रीमती शब्द Mrs और सुश्री शब्द Ms के लिए इस्तेमाल होता है. वैसे इसमें एक और ट्रेंड भी देखने को मिलता है. एक शादीशुदा महिला के नाम के साथ श्रीमती जबकि उसके तलाकशुदा होते ही सुश्री या कुमारी टाइटल उसके नाम के साथ इस्तेमाल किए जाते हैं. ये बड़ा पेचीदा है और अजीब है. कि एक महिला का संबोधन उसके मैरिटल स्टेटस के आधार पर बदलता रहता है. जबकि एक पुरुष अविवाहित हो, विवाहित हो, विधुर हो या तलाकशुदा हो, वो मिस्टर या श्रीमान ही रहता है.
हमारा मानना है कि महिलाओं के लिए भी एक जेंडर न्यूट्रल टाइटल होना चाहिए. भले ही वो Ms या सुश्री ही क्यों न हो. जो उसके मैरिटल स्टेटस के साथ बदले न. और न ही ये रेखांकित करे कि कोई महिला शादी के लिए उपलब्ध है या नहीं है.