पथरी -किडनी कांड :सीएमएचओ दफ्तर आरोपी डॉक्टर को देता रहा संरक्षण !क्या जिम्मेदारों पर होगी कार्रवाई ,पीड़ित संतोष को न्याय की आश

कोरबा । पथरी का ईलाज करते-करते किडनी निकाल लेने के मामले में डॉक्टर और उसकी डिग्री को फर्जी बताया गया है। वह डॉक्टर फरार है लेकिन सवाल अब भी कायम है कि इस डॉक्टर को 10-12 साल तक प्रेक्टिस करने/सेवा करने का अवसर देने वाले, गंभीर शिकायत को स्व लाभ के लिए 10 साल तक अनदेखा करने वाले जिम्मेदार किन्तु उदासीन/कर्तव्यहीन अधिकारियों, संबंधित स्टाफ पर भी क्या आपराधिक कार्यवाही तय होगी। इनकी गैर जिम्मेदाराना हरकत और गंभीर शिकायत को हवा में उड़ा देने वालों के विरुद्ध कार्यवाही हुए बिना पूरी जांच ईमानदाराना नहीं कही सकती।

यहां बताना होगा कि तुलसीनगर में विद्युत सब स्टेशन के पीछे निवासरत संतोष गुप्ता 50 वर्ष को 32 एमएम की पथरी दायीं ओर किडनी के निकट थी। सृष्टि हास्पिटल में डॉ. एसएन यादव से मिले। 2 मार्च 2012 को चीरा पद्धति से ऑपरेशन कर पथरी निकाली गई। 4 मार्च को चीरा की ड्रेसिंग की गई और करीब 40 दिन तक वह सृष्टि अस्पताल में भर्ती रहा। 4 अप्रैल 2012 को ड्रेसिंग के नाम पर संतोष को ले जाया गया। करीब 2 घंटे बाद संतोष को बाहर निकाला गया। इसके बाद अस्पताल में किडनी निकालने की चर्चा हुई तो संतोष ने अपनी बेटी के जरिए पता करवाया तो मालूम हुआ कि किडनी निकाल ली गई है। संतोष और उसकी पत्नी ने इसकी वजह डॉक्टर से पूछा तो उसने किडनी में इंफेक्शन होने के कारण निकालना बताया लेकिन किसी तरह की सहमति, पूर्व अनुमति लेना जरूरी नहीं समझा। घर लौटने के कुछ दिन बाद संतोष ने सिटी स्कैन व सोनोग्राफी कराया तो रिपोर्ट में किडनी निकालने जाने की पुष्टि हुई।

तत्कालीन सीएमएचओ से लेकर सीएम से गुहार किसी ने नहीं सुनी पुकार ,कलेक्टर श्रीमती साहू ने लिया संज्ञान

किडनी निकालने की पुष्टि के बाद संतोष ने कलेक्टर, एसपी, तत्कालीन सीएमएचओ डॉ. पीआर कुंभकार के समक्ष आवेदन कर कार्यवाही की मांग रखी। फिर डॉ. सिसोदिया सीएमएचओ हुए और फिर डॉ. बीबी बोडे। अधिकारी बदलते रहे पर शिकायत यथावत दबी रही। पुलिस में एफआईआर के लिए संतोष को रामपुर, मानिकपुर चौकी तो कभी बालको थाना घुमाया जाता रहा, मजाक भी उड़ाया गया। थक-हार कर बड़ी उम्मीद लिए रायपुर में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के जन दरबार में शिकायत किया लेकिन कुछ नहीं हुआ। अधिकारी बदलते रहे, सरकार भी बदली लेकिन संतोष की शिकायत धूल खाती रही। कलेक्टर श्रीमती रानू साहू की पदस्थापना बाद फिर से संतोष में उम्मीद जागी और परिणाम फर्जी डॉक्टर के रूप में सामने आया। अब डॉक्टर यादव फरार है।

नर्सिंग एक्ट के नियम दरकिनार, सीएमएचओ दफ्तर देता रहा संरक्षण

निजी अस्पताल में सेवा देने वाले चिकित्सकों के साथ-साथ अस्पताल संचालन संबंधी नर्सिंग होम एक्ट के प्रावधान के संबंध में सीएमएचओ डॉ. बीबी बोर्डे से बार-बार संपर्क किया जाता रहा लेकिन हर बार प्लीज टैक्स्ट मी का मैसेज रिप्लाई होता रहा। जानकारों के मुताबिक अस्पताल में सेवा देने वाले चिकित्सक की डिग्री व संबंधित प्रमाण पत्र की एक प्रति नियोक्ता रखता है और एक प्रति नियुक्ति संबंधी जानकारी के साथ सीएमएचओ कार्यालय भेजी जाती है। सीएमएचओ कार्यालय की जिम्मेदारी है कि वह दस्तावेजों की सत्यता, चिकित्सक के बारे में वांछित जानकारी पुख्ता करे। यह सब डॉ. एसएन यादव के मामले में नहीं हुआ। शिकायत कर जब गड़बड़ी सामने लाई गई तो भी सीएमएचओ दफ्तर में मामले को दबाया रखा। वर्तमान में डॉ. यादव पर तो अपराध दर्ज हो चुका है लेकिन इस शिकायत और जांच को 10 साल तक दबाए रख कर कथित फर्जी चिकित्सक को अवसर देने वाले संबंधित अधिकारियों एवं स्टाफ पर भी क्या कार्यवाही तय होगी।

सवालों के घेरे में सीएमएचओ बोर्डे की कार्यशैली

जिस तरह शहर में बिना जरूरी लाइसेंस के गीता देवी मेमोरियल हॉस्पिटल का संचालन किया जाता रहा,फ़्रैक्चर के ऑपरेशन के लिए भर्ती पहाड़ी कोरवा महिला काल के गाल में समा गई, जिस तरह सृष्टि हॉस्पिटल में डॉक्टर एस एन यादव फर्जी डिग्री के सहारे पथरी पीड़ित मरीज की किडनी निकाल लिया उसने सीएमएचओ बी बी बोर्डे की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या इंसान की जिंदगी इतनी सस्ती हो गई है कि निहित स्वार्थ के लिए कायदे कानून को दरकिनार कर मरीजों की जान लेने फर्जी अस्पतालों ,फर्जी चिकित्सकों को मौन स्वीकृति दे दी जाए।इन दोनों गम्भीर प्रकरण के बाद आमजनता के मन में निजी अस्पतालों के प्रति भय का वातावरण निर्मित हो गया है। लोगों के मन मे यह आशंकाएं चल रही है कि सीएमएचओ कार्यालय की मिलीभगत से कितने फर्जी डॉक्टर और बिना मान्यता फर्जी अस्पताल चल रहे होंगे। जिसकी प्रशासन द्वारा जांच किया जाना नितांत आवश्यक है । ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।