जगदलपुर । तमाम लोगों ने नक्सलियों के डर से अपने घर और गांव को छोड़ दिया। परिवार को खो दिया। नक्सलियों ने उनके अपने और अपनों को मार दिया। गांव उजाड़े। अब वही लोग नक्सलियों को उनकी मांद में घुसकर मारने के लिए तैयार हैं। ये सब और इनके जैसे तमाम युवा बस्तर फाइटर्स का हिस्सा बनना चाहते हैं, जो नक्सलियों को उनकी मांद में घुसकर मार सकें। यही कारण है कि भर्ती के 2100 पदों के लिए 53 हजार से ज्यादा आवेदन आए हैं। इनमें 40% आवेदन उनके हैं, जो नक्सलियों के सताए हुए हैं।
आवेदन करने वालों में जंगल के भीतर से लोग आगे आ रहे हैं। इसमें नक्सल पीड़ित परिवार के युवक-युवतियां शामिल हैं। वह नक्सलियों को खदेड़ खुद का सुरक्षित जीवन चाहते हैं। ऐसे में स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता दी जा रही है। इसका एक कारण यह भी है कि वह जंगलों के साथ-साथ नक्सलियों की रणनीति से भी बखूबी वाकिफ हैं। IG सुंदरराज पी. बताते हैं कि घोर नक्सली इलाके की युवतियों तक ने बड़ी संख्या में आवेदन किया है। इसमें 37,498 युवक, 15,822 युवतियां और 16 ट्रांसजेंडर्स भी शामिल हैं।
उनकी कहानी, जो भर्ती होकर बदला लेना चाहते हैं….👇
सुकमा में रहने वाली 19 साल कुमारी सुशीला कहती है कि आज तक उसने अपना गांव नहीं देखा है। बहुत छोटी थी, तब नक्सलियों ने उनके गांव को उजाड़ दिया। उसके पिता को बहुत मारा। उन्हें गांव छोड़कर जाना पड़ा। इस कारण वह बस्तर फाइटर्स में जाना चाहती है। वह जंगलों में फिर गांव बसाना चाहती है। सुकमा से 35 किलोमीटर दूर जंगल में रहने वाले 25 साल के अजय सिंह (बदला हुआ नाम) ने बताया कि वह पिछले 4 साल से अपने घर नहीं जा पाया है। उसका बड़ा भाई नक्सली कमांडर बन गया है। 9-10 साल की उम्र में ही नक्सली उसे जंगल ले गए थे। उनका परिवार दशहत में था और उसे सुकमा भेज दिया। उसका घर, परिवार सब छूट गया है। वह अब बस्तर फाइटर्स तैयारी कर रहा है, ताकि अपने गांव जा सके। अपने लोगों की मदद कर सके
👉18 साल के मनोज ने बताया कि 2007 में तालमेटला में मुठभेड़ हुई। इसमें उनके पिता को नक्सलियों ने मार दिया था। वह पिछले 4 साल से अपने गांव नहीं जा पाया है। इस कारण वह फोर्स में भर्ती होना चाहता है। जब से नक्सलियों को इस बात की जानकारी मिली है, नक्सली परिजनों को लगातार धमकी भिजवा रहे हैं। फिर भी वह तैयारी कर रहा है।
👉 दंतेवाड़ा के 21 साल का जगदीश बताता है कि 6 साल पहले उसके चाचा की नक्सलियों ने हत्या कर दी। गांव छोड़ने की धमकी दी। वह अपने परिवार के साथ दंतोवाड़ा शहर आ गया। उसके बाद से गया नहीं है। कई युवक नक्सलियों के खौफ से पिछले 6 साल से अपने घर नहीं गए हैं। अकेले ही सुकमा में किराए पर रहते हैं।
बस्तर में एएसपी ओपी शर्मा अपने स्टाफ के जरिए से 400 से ज्यादा युवकों को पिछले 7 महीने से ट्रेनिंग दे रहे हैं। उनके रहने, खाने से लेकर हर तरह की व्यवस्था की जा रही है। सुकमा एसपी सुनील शर्मा, दंतेवाड़ा में टीआई जीतेंद्र ताम्रकर, कोंडगांव में राहुल देव शर्मा समेत अलग-अलग अधिकारी युवक-युवतियों को प्रैक्टिक्स करा रहे हैं। ये लड़के-लड़कियां जंगल के बीच से आए हैं।
बस्तर बटालियन, डीआरजी के बाद अब फाइटर्स
2014 में सीआरपीएफ ने बस्तर बटालियन की भर्ती की थी। इसमें बस्तर संभाग के 780 स्थानीय लोगों का चयन किया गया। उसके बाद 2016 में डीआरजी( डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) की भर्ती की गई। इसमें 800 लोगों की भर्ती हुई। डीआरजी को सबसे खतरनाक दस्ता माना जाता है। इनसे नक्सली भी खौफ खाते है, क्योंकि ये नक्सलियों की भाषा, जंगल का रास्ता जानते हैं और इनका ग्रामीणों से कम्यूनिकेशन बहुत अच्छा है। इन्हीं के तर्जग पर अब बस्तर फाइटर्स की भर्ती की जा रही है।
इन फायदों ने बस्तर फाइटर्स की भूमिका तैयार की
👉जंगल के बीच स्थानीय भाषा को समझना, रास्तों को समझना मुश्किल होता है, जिसे ये लोग बेहतर समझते हैं।
👉बस्तर बटालियन और डीआरजी के आने के बाद फोर्स को बहुत कम नुकसान हुआ है, जितनी भी मुठभेड़ हुई, उसमें नक्सलियों को पीछे हटना पड़ा।
👉अधिकारियों के मुताबिक 60 प्रतिशत तक घटनाओं में कमी आ गई है। लोकल फोर्सेज के कारण स्थानीय लोग भर्ती होने में हिचकते नहीं हैं।
👉नक्सलियों को अब जंगलों में लोग नहीं मिल रहे हैं, क्योंकि लोकल फोर्सेज कम्यूनिकेशन में माहिर हैं। स्थानीय लोगों को रोजगार से नक्सलियों का कैडर भी खत्म होता जा रहा है।