महाराष्ट्र के ‘एकनाथ ‘बने शिंदे ,बाल ठाकरे को नमन कर मराठी में ली मुख्यमंत्री पद की शपथ ,डिप्टी सीएम बने फणनवीस

मुम्बई। एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलायी। शिंदे ने मराठी में शपथ ली। बता दें कि देंवेंद्र फडणवीस ने ही ऐलान किया था कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बनेंगे।

उन्होंने यह भी कहा था कि वह खुद सरकार में नहीं होंगे और बाहर से सरकार की मदद करेंगे। हालांकि बाद में जेपी नड्डा ने खुद मीडिया के सामने आकर कहा कि पार्टी चाहती है कि वह उपमुख्यमंत्री बनें।शपथ ग्रहण के मौके पर एकनाथ शिंदे का परिवार भी राजभवन पहुंचा। बता दें कि एकनाथ शिंंदे उद्धव सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। शपथ ग्रहण में शिवसेना के विधायक शामिल नहीं हो सके। दरअसल बागी विधायकों इस समय गोवा के होटल में ही हैं। हालांकि शपथ के दौरान उन्होंने गोवा के होटल में ही जश्न मानाया। भाजपा के नेता शपथ ग्रहण में पहुंचे।

डिप्टी सीएम बने देवेंद्र फडणवीस

पांच साल तक महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री रहने वाले देवेंद्र फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। जब वह शपथ लेने चले तो विधायकों ने उनके समर्थन में नारेबाजी की। बता दें कि एकनाथ शिंदे ने 40 शिवसेना के विधायकों के साथ कुल 50 विधायक होने का दावा किया है। वहीं भाजपा के 106 विधायक हैं।

देवेंद्र फडणवीस के ‘त्याग’ की नड्डा ने की तारीफ

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने देवेंद्र फडणवीस की तारीफ करते हुए कहा कि एकनाथ शिंदे जी और देवेंद्र फडणवीस जी को बधाई। आज ये सिद्ध हो गया कि BJP के मन में कभी मुख्यमंत्री पद की लालसा नहीं थी। 2019 के चुनाव में स्पष्ट जनादेश मा. नरेंद्र मोदी जी एवं देवेंद्र जी को मिला था। उद्धव ठाकरे ने CM पद के लालच में हमारा साथ छोड़कर विपक्ष के साथ सरकार बनाई थी। उन्होंने कहा कि पार्टी चाहती है कि देवेंद्र फडणवीस सरकार में रहें और उपमुख्यमंत्री का पदभार संभालें।

जानिए कौन है शिंदे औऱ उनका बचपन ?

58 साल के एकनाथ शिंदे का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था। उनका बचपन काफी गरीबी में बीता।वो जब 16 साल के थे, तब उन्होंने अपने परिवार की मदद करने के लिए काफी समय तक ऑटो रिक्शा भी चलाया।इसके अलावा उन्होंने पैसे कमाने के लिए शराब की एक फैक्ट्री में भी काफी समय तक काम किया।

जानें शिंदे को राजनीति में कौन लाया ?

यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि शिवसेना में जाने को लेकर शिंदे को प्रेरणा बाल ठाकरे से नहीं बल्कि तब के कद्दावर नेता आनंद दीघे से मिली। आनंद दीघे से ही प्रभावित होकर उन्होंने शिवसेना ज्वॉइन कर ली।

क्यों खफा हो गए शिंदे ?

एकनाथ शिंदे 2004 में पहली बार विधायक बने थे और बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद उन्हें शिवसेना के सबसे बड़े नेता के तौर पर देखा जाता था। हालांकि पिछले दो वर्षों में उनका ये कद घट गया और पार्टी में उनसे ज्यादा उद्धव ठाकरे के पुत्र और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे को ज्यादा प्राथमिकता दी जाने लगी, जिससे एकनाथ शिंदे खफा हो गए। असल में एकनाथ शिंदे पार्टी में सिर्फ नाम के लिए रह गए थे और उन्हें ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था।

जब शिंदे ने खोया अपना परिवार

बता दें कि 2 जून 2000 को एकनाथ शिंदे ने अपने 11 साल के बेटे दीपेश और 7 साल की बेटी शुभदा को खो दिया था। वो अपने बच्चों के साथ सतारा गए थे।बोटिंग करते हुए एक्सीडेंट हुआ और शिंदे के दोनों बच्चे उनकी आंखों के सामने डूब गए। उस वक्त शिंदे का तीसरा बच्चा श्रीकांत सिर्फ 14 साल का था।

जब शिंदे को मिली अपने गुरू की राजनीतिक विरासत

शिंदे के गुरू की भी अचानक मौत हो गई। 26 अगस्त 2001 को एक हादसे में दीघे की मौत हो गई। उनकी मौत को आज भी कई लोग हत्या मानते हैं। दीघे की मौत के बाद शिवसेना को ठाणे क्षेत्र में खालीपन आ गया और शिवसेना का वर्चस्व कम होने लगा, लेकिन समय रहते पार्टी ने इसकी भरपाई करने की योजना बनाई और शिंदे को वहां की कमान सौंप दी। शिंदे शुरुआत से ही दीगे के साथ जुड़े हुए थे इसलिए वहां कि जनता ने शिंदे पर भरोसा जताया और पार्टी का परचम लहाराता रहा।