हसदेव एक्सप्रेस न्यूज जशपुर -कोरबा(भुवनेश्वर महतो) । रेडी टू ईट के निर्माण से पृथक करने के बाद महिला स्व सहायता समूहों को वितरण व्यवस्था की जिम्म्मेदारी देकर रोजगार से जोड़े रखने के छत्तीसगढ़ शासन के दावों की पोल खुल गई। राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम योजना के संचालन के 3 माह बाद भी कोरबा एवं जशपुर जैसे आदिवासी बाहुल्य आकांक्षी जिलों में रेडी टू ईट वितरण के लिए महिला स्व सहायता समूहों से अनुबंध नहीं कर सकी। जिससे समूह जहां शासन की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं वहीं दूसरी ओर राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम की उत्पादनकर्ता फर्म छत्तीसगढ़ एग्रो फूड कार्पोरेशन लिमिटेड इन दोनों जिलों में 2 लाख से अधिक हितग्राहियों तक रेडी टू ईट पहुंचाने में नाकाम नजर आ रहा ।अधिकांश जगह परियोजनाओं में रेडी टू ईट पहुंचाकर फर्म अपने दायित्वों से इतिश्री कर रही। जिससे समय पर नोनिहालों तक पोषण आहार नहीं पहुंच रहा। इस अव्यवस्था से कुपोषण मुक्त कोरबा ,जशपुर बनाने के लक्ष्य में आशातीत सफलता मिलना मुश्किल नजर आ रहा।
यहां बताना होगा कि महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा 6 माह से 6 वर्ष के
नौनिहालों ,किशोरियों,गर्भवती एवं शिशुवती माताओं के पोषण के लिए कार्य किया जा रहा है। पूर्व में स्थानीय महिला स्व सहायता समूहों के माध्यम से रेडी टू ईट कार्यक्रम का संचालन किया जा रहा था । गेहूं ,सोया ,चना ,मूंगफली मिश्रित पौष्टिक पोषण आहार रेडी टू ईट य माह से 3 वर्ष तक के बच्चों ,गर्भवती एवं शिशुवती माताओं के लिए प्रत्येक मंगलवार को दिए जाने का प्रावधान है ताकि उन पर कुपोषण की काली छाया न पड़े ,कुपोषित हितग्राही इसके दायरे से बाहर निकल सकें। लेकिन 24 दिसंबर 2021 को छत्तीसगढ़ शासन ने द्वारा कैबिनेट में लिए गए निर्णय अनुसार 1 फरवरी से राज्य बीज निगम की स्थापित इकाईयों के माध्यम से स्वचलित मशीनों के माध्यम से रेडी टू ईट का उत्पादन करने का निर्णय लिया था। इसके पीछे शासन ने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाईन का हवाला दिया है जिसमें मानव स्पर्श रहित गुणवत्ता युक्त आवश्यक पोषक तत्वों से भरे रेडी टू ईट बच्चों की सेहत के लिए उपयुक्त बताया गया है। सरकार के इस फैसले से पिछले करीब डेढ़ दशक से रेडी टू ईट का निर्माण कर रहीं स्व सहायता समूह के हाथों से रोजगार छीन गया । 20 हजार से अधिक महिलाएं सीधे तौर पर इससे प्रभावित हुईं ।
1 अप्रैल से राज्य बीज निगम की स्थापित इकाईयों के स्वचलित मशीनों के माध्यम से तैयार रेडी टू ईट बच्चों तक पहुंचाई जा रहा है। जिले में राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम की इकाई छत्तीसगढ़ एग्रो फूड कार्पोरेशन लिमिटेड को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। आपूर्तिकर्ता फर्म को केवल रेडी टू ईट उत्पादन की जिम्मेदारी दिए जाने की बात कही गई थी। शासन ने विधानसभा में विपक्ष के 16 हजार समूहों को योजना से बाहर कर बेरोजगार करने के आरोप के बीच स्पष्ट किया था कि सभी जिलों में वितरण की जिम्मेदारी महिला स्व सहायता समूह ही देखेंगी। उन्हें योजनाओं से बाहर नहीं किया गया। यहां तक कि हाल ही में महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रम में कोरबा पहुंची महिला एवं बाल विकास विभाग मंत्री श्रीमती अनिला भेड़िया ने भी मीडिया के सवालों के जवाब में वही बातें दोहराई थी,उन्होंने भी कहा था समूहों को बाहर नहीं किया गया सभी योजनाओं में बनी हैं । उनकी सूची वितरण व्यवस्था के लिए सूचीबद्ध की जा रही जल्द वे वितरण का काम करेंगी। लेकिन शासन सहित मंत्री के दावों की पोल इन दोनों जिलों में खुलती नजर आ रही। आज पर्यंत राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम यहां के समूहों से अनुबंध करने आगे नहीं आया। जिसकी वजह से उसके उत्पादनकर्ता फर्म छत्तीसगढ़ एग्रो फूड कार्पोरेशन लिमिटेड ही वितरण का कार्य कर रही। दोनों ही जिलों में फर्म की वितरण व्यवस्था अत्यंत निराशाजनक है । फर्म ने गोदाम एवं वितरक नियुक्त करने में 3 माह बीता डाले । केंद्रों तक रेडी टू ईट पहुंचाने की जगह अधिकांश जगह परियोजना तक ही रेडी टू ईट पहुंचा रही। जिसकी वजह से कई मौकों पर कार्यकर्ताओं को स्वयं के खर्चे से रेडी टू ईट ले जाना पड़ा । हालांकि दोनों ही जिलों में अधिकारी केंद्रों तक रेडी टू ईट पहुँचने का दावा करते हैं पर उनके इन दावों में शासन की योजना व्यवस्था का खिलाफत ना करने की डर स्पष्ट तौर पर परिलिक्षित होती है। हसदेव एक्सप्रेस न्यूज की पड़ताल में दोनों ही जिलों में रेडी टू ईट केंद्रों तक निर्धारित समयावधि में नहीं पहुंचने की शिकायत सही साबित हो चुकी है।
कोरबा में 91 तो जशपुर में 117 सेक्टर ,7 हजार केंद्रों में 2 लाख से अधिक हैं हितग्राही
आदिवासी बाहुल्य कोरबा जिला जो देश के 110 आकांक्षी (पिछड़े)जिलों में शामिल है यहां 91 सेक्टर हैं । 10 परियोजनाओं के अंतर्गत 2573 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। जहां सवा लाख से अधिक हितग्राहियों को रेडी टू ईट दिया जाना है। वहीं आदिवासी बाहुल्य जशपुर जिले में 117 सेक्टर हैं ,जो 17 परियोजनाओं में विभाजित हैं। यहां कुल 4500 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। जहां 80 हजार हितग्राहियों को योजना का लाभ दिया जाना है।
समूह जनदर्शन में वितरण व्यवस्था की जिम्मेदारी देने लगा चुके हैं गुहार
आदिवासी बाहुल्य जशपुर जिले में स्व सहायता समूह वितरण व्यवस्था का दायित्व देने कलेक्टर जनदर्शन में लिखित में आवेदन कर गुहार लगा चुके हैं। बावजूद इसके जिला प्रशासन ने समूहों के हित में कोई पहल नहीं की । सूत्रों के अनुसार उत्पादनकर्ता फर्म यूपी बिहार से लोगों को बुलाकर वितरण का काम करा रही। शासन की महती योजना ठेकेदारी प्रथा की भेंट चढ़ गई। समूहों के हाथों से रोजगार छीनकर व्यापारी वर्ग को थमा दिया गया।
तो कहीं मिलीभगत का तो खेल नहीं !
जिस तरह समूहों से अनुबंध करने में बीज निगम दिलचस्पी नहीं दिखा रही। अधिकारी भी सक्रिय व संजीदा नहीं है उससे व्यापक पैमाने पर मिलीभगत की आशंका को बल मिल रहा। दोनों जिलों में प्रतिमाह करीब 7 हजार आंगनबाडी केंद्रों में रेडी टू ईट की आपूर्ति के लिए तकरीबन 30 लाख रुपए से अधिक परिवहन व्यय में ही खर्च हो जाएगा।फर्म यह राशि शुद्ध तौर पर बचा रही। वहीं पर्याप्त मात्रा में रेडी टू ईट भी नहीं पहुंचने की जानकारी सामने आ रही । ऐसे में कमीशन के खेल में अफसरों की भूमिका भी संदिग्ध नजर आ रही।
वर्जन
अनुबंध करने शासन का नहीं आया लिखित आदेश
अभी तक शासन का समहों का वितरण व्यवस्था के लिए बीज निगम से अनुबंध करने कोई लिखित आदेश नहीं आया है तो इस संदर्भ में कुछ नहीं कह सकते। नई व्यवस्था है उम्मीद है जल्द सब कुछ दुरुस्त कर लिया जाएगा।
एम डी नायक डीपीओ ,मबावि कोरबा
वर्जन
बीज निगम का दायित्व ,जल्द होने की उम्मीद
रेडी टू ईट की वितरण व्यवस्था को लेकर समूहों का अनुबंध समूहों व बीज निगम के मध्य होना है। अनुबंध का दायित्व भी बीज निगम का है जल्द ही अनुबंध होने की उम्मीद है।
अरुण पांडेय ,डीपीओ ,मबावि जशपुर