तस्करों के निशाने पर कोरबा वनमंडल के जंगल ,काटे जा रहे पेंड ,अमले को भनक तक नहीं लग रही ,चिरान बनने के बाद कुछेक प्रकरणों में हो रही कार्रवाई

कोरबा। वन मंडल कोरबा के जंगल लकड़ी तस्करों के निशाने पर हैं। बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जा रहे हैं और कटे पेड़ ले जाए जा रहे हैं लेकिन वन अमले को भनक तक नहीं लग रही। जब तक पता चलता है,पेड़ बिक चुके होते हैं या उनका स्वरूप बदल चुका रहता है। हाथी निकल जाने के बाद पूंछ पकड़कर अमला और अधिकारी अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं।

कोरबा वन मंडल के भी जंगलों की रक्षा करने का दावा भले ही डीएफओ से लेकर एसडीओ और रेंजर,डिप्टी रेंजर करते हैं लेकिन हकीकत में इन्हें पता ही नहीं चल पाता है कि जंगल के भीतर क्या कुछ हो रहा है। इनका मुखबिर तंत्र जहाँ इस मामले में फेल है वहीं वन सुरक्षा के मामले में स्थानीय ग्रामीणों, सुरक्षा समिति के लोगो से बेहतर तालमेल का अभाव भी बना हुआ है। जलाऊ लकड़ी पकड़ने पर वसूली, विभिन्न निर्माण कार्यों में नियोजित करने के बाद महीनों/वर्षों से मजदूरी का भुगतान नहीं करने की प्रवृत्ति व और भी व्यवहार एवं व्यक्तिगत कारण जिम्मेदार हैं कि वन महकमा जंगल की सुरक्षा के मामले में स्थानीय लोगों के बीच अपनी पैठ नहीं बना पा रहा है।

कोरबा और बालकों रेंज चर्चा में

जंगल की बात चली है तो बता दें कि कोरबा और बाल्को रेंज अपने विभाग में भी चर्चा का विषय बना हुआ है। कोरबा रेंजर सियाराम कर्माकर को कोरबा में ही काम करना पसंद आ रहा है। उनका तबादला पूर्व में हो चुका है लेकिन वे घूम फिर कर कोरबा में ही लौट आते हैं। हालांकि वे अपना तबादला नई जगह से रिवर्स करा लेते हैं लेकिन यह सोचने वाली बात है कि जब यहां काम कर सकते हैं तो तबादला वाली जगह पर क्यों नहीं ?सांसद प्रतिनिधि संतोष मिश्रा भी इस संबंध में लिखा-पढ़ी कर चुके हैं लेकिन सुनता ही कौन है। कोरबा रेंज के जंगल और निर्माण कार्य सुर्खियां बटोर रहे हैं। कुछ यही हाल बालको रेंज का भी है जहां के प्रभारी रेंजर संजय लकड़ा को दूसरे रेंज में होने वाले निर्माण कार्यों का प्रभारी बना दिया गया है। अब वे अपना रेंज संभालें या दूसरे रेंज में काम कराएं! वैसे भी पूर्व से बॉक्साइट परिवहन के लिए बालको द्वारा निर्मित फुटका पहाड़ तक की सड़क को न जाने क्यों उखड़वाकर और अब ज्यादा जरूरी नहीं रह गए दूधीटांगर से फुटका पहाड़ के 14 किलोमीटर मार्ग पर 5 करोड़ की लागत से सड़क के नाम पर घपला किया जा रहा है। एसडीओ, डीएफओ की जानकारी में सब कुछ है, शिकायत भी हुई है लेकिन जब मामला दबाना ही है तो शिकायतकर्ता भी क्या बिगाड़ लेगा। डीएमएफ के 5 करोड रुपए यूं ही बर्बाद किए जा रहे हैं जबकि यह सड़क पूर्व से निर्मित थी और इस मार्ग का ज्यादा औचित्य अब नहीं रह गया है। हालांकि खर्च बताने के लिए विभाग ने कुछ योजना का बोर्ड लगा कर यहां टांग दिया है जबकि यह किसी भी तरह से फलीभूत नहीं हो रही है।

रेंजरों के चहेते लकड़ियों से मालामाल

जंगलों से इमारती लकड़ियों की अवैध कटाई के मामलों में कुछ वन कर्मियों की मिलीभगत से इनकार नहीं किया जा सकता। सूत्र यह भी बताते हैं कि कुछ ऐसे रेंजर हैं जो अपने चहेतों के लिए खुद ही इमारती महत्व के वृक्षों की कटाई करवा कर उनका सिलपट बनाकर उनके स्थल तक पहुंचाने का भी काम करते हैं। जब महकमा ही संपत्ति लुटवाने में जुटा रहेगा तो चोरों के हौसले बुलंद रहेंगे ही। यह और बात है कि कभी-कभार अपनी सक्रियता दिखाने के लिए थोड़ी बहुत कार्रवाई कर दी जाती है लेकिन इसके पहले और बाद में कटने के लिए जंगल खुला छोड़ दिया जाता है।

पेड़ चिरान बन गया तब हुई धरपकड़

कोरबा वनमंडल में वृक्षों और जंगल की सुरक्षा में खामी का मामला सामने आया जब काटे गए वृक्षों को चिरान बना लिया गया। ग्राम बासीन के तीन ग्रामीणों द्वारा साल प्रजाति के वृक्षों की अवैध कटाई की गई। उन्हें चिरान बनाकर घरों में छुपा कर रखा गया था। समय अनुसार लकड़ियों को बाजार में खपाने की तैयारी थी। इस बारे में महकमे को जानकारी मिलने पर एसडीओ आशीष खेलवार ने टीम को रवाना किया। बासीन में 3 ग्रामीणों के कब्जे से चिरान जप्त किया गया है।