कोरबा। ऊर्जानगरी कोरबा के पॉवर संयंत्रों से बनी बिजली से भले ही देश-प्रदेश रौशन हो रहे हैं लेकिन इसके लिए कोरबा की जनता को भारी कीमत चुकानी पड़ रही। जनता प्रदूषण की मार से त्रस्त है। प्रदूषण की मार झेल रहे लोगों को लापरवाह परिवहनकर्ताओं के कारण और अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। संयंत्रों से निकलने वाले राख को खुले में डंप किया जा रहा है। जिससे स्वच्छ फिजा में राखड़ घुल रही है। सडक़ किनारे राखड़ के ढेर से हादसों का खतरा भी बना हुआ है।
बालको-उरगा बायपास मार्ग पर जगह-जगह संयंत्रों से निकलने वाले राखड़ को डंप किया जा रहा है, जबकि राखड़ परिवहनकर्ताओं को स्पष्ट निर्देश है कि लो लाइन और चिन्हित एरिया में ही राखड़ का डंप किया जाना है। इस निर्देश और एनजीटी के नियम कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ रही है। स्थानीय प्रशासन और पर्यावरण विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा है। जिसकी वजह से उक्त मार्ग पर राखड़ ही राखड़ नजर आता है। इसकी वजह से राखड़ के डस्ट ने मार्ग से चलना तक दुभर कर दिया है। डस्ट के कारण एक मीटर दूर की वाहन भी दिन में नजर नहीं आता। रात के समय तो मार्ग पर चलना और भी खतरनाक है। बेरोक-टोक परिवहन कर्ता राखड़ को खुले में सडक़ किनोर डंप कर देते हैं। इस पर सख्त कार्यवाही की जरूरत है लेकिन न ही प्रशासन के अधिकारी और न ही पर्यावरण विभाग कोई कार्यवाही कर रहा है। बायपास मार्ग के आसपास बसे लोगों का राखड़ के कारण जीना दुभर हो गया है। स्वास्थ्यगत परेशानियों का खतरा बना हुआ है।
बिना ढके हो रहा राखड़ परिवहन

एनजीटी का सख्त का निर्देश है कि संयंत्रों से निकलने वाले राखड़ को सावधानी पूर्वक परिवहन किया जाए। इसके लिए राखड़ को तिरपाल से ढक कर परिवहन किया जाना जरूरी है। मगर अधिकांश वाहनों में बिना ढके ही राखड़ का परिवहन हो रहा है, जो वाहन ढके भी रहते हैं वह पूरी तरह से सुरक्षित नहीं होते। कहीं-कहीं से राखड़ खुला रहता है। तेज गति से परिवहन में लगे वाहनों से राखड़ उडऩे लगता है, जिससे मार्ग पर आवागमन करने पर भारी परेशानी होती है। साथ ही लापरवाही पूर्वक परिवहन के कारण सडक़ पर ही गिर जाता है। इस तरह के नजारे बालको परसाभांठा क्षेत्र में देखने को मिल चुका है।