जीवन-मृत्यु को मंगलमय बनाने वाला ग्रन्थ है भागवत-हिमान्शु महाराज ,भिलाईबाजार
निवासी टेकराम कश्यप के निवास पर आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने उमड़ रहे श्रोता

भिलाईबाजार। भागवत भव रोग की दवा है।यह जहां एक ओर जीवन संहिता है वहीं दूसरी ओर मोक्षदायिनी भी है।
भिलाई बाजार निवासी टेकराम कश्यप के निवास पर आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा प्रवचन के दौरान कथावाचक व्यास श्रद्धेय पण्डित डाक्टर सत्यनारायण तिवारी हिमान्शु महाराज ने कथा के द्वितीय दिवस पर बताया कि
भागवत जीवन और मृत्यु को मंगलमय बनाने वाला दिव्य ग्रंथ है। हम संसार मे रहें , हमारी जीवनचर्या कैसी हो और हम दुनिया से जाए तो कैसी मृत्यु हो इसका सम्यक ज्ञान शुकदेव जी ने राजर्षि परीक्षित को भागवत कथा मे कराया है।

ईश्वर प्राप्ति में आयु जाति कुल धर्म बाधक नही वरन दिव्य साधन है। बालक ध्रुव ने 5 वर्ष की अवस्था मे 5 महीने की कठिन तपस्या से ईश्वर को प्राप्त किया। कर्दम और देवहूति के घर कपिलनारायण स्वयम विराजमान हुए।
परमसाधु अत्रि व परमसती अनुसुईया के घर ब्रम्हा विष्णु व महेश क्रमशः चन्द्रमा दत्तात्रेय और दुर्वासा के रूप मे अवतरित हुए। भागवत का उपदेश क्रमशः भगवान विष्णु ने ब्रम्हा जी से, ब्रम्हा जी ने सनातन कुमारो से,इनसे नारदजी ने, नारद ने व्यास जी से, इनसे शुकदेव जी और शुकदेव जी ने जगत कल्याण के लिए राजर्षि परीक्षित को कथामृत का पान कराकर मृत्यु के भय से, शब्द रूपी शाप से मुक्त किया। शब्द रूपी श्राप से ग्रस्त समस्त जीवो के कल्याण का परम व सहज साधन भागवत कथा ही है।सती और शिव का चरित्र आदर्श परिवार का विशेष उदाहरण है।समाज को प्रभावित करने वाले की नही प्रभुभावित करने वाले की आवश्यकता है।हमे सिद्ध संतो की नही शुद्ध संतो का सानिध्य ग्रहण करना चाहिए।व्यक्ति को आस्तिक-नास्तिक के भाव से उपर उठकर वास्तविक होने की जरूरत है।माता पिता गुरू परिवार समाज व राष्ट्र की सेवा ही सच्ची ईश्वर भक्ति है इसका ज्ञान भागवत के विभिन्न प्रसंगो मे उद्धृत किया गया है।प्रत्येक आत्मा मे परमात्मा का निवास ऐसा मानकर भूखे को भोजन, प्यासे को पानी व प्राणीमात्र की सेवा को अपनी जीवनचर्या बनाने से जीवन सहजता सरलता तथा आनंद से ओतप्रोत होता चला जाएगा। हमे सिद्धांत मे रामायण व व्यवहार मे महाभारत जैसी प्रवृत्ति से बचकर चलना है। समाज के प्रत्येक उत्थान व पतन की जिम्मेदारी हमारी है।वर्तमान समय प्रत्येक सनातन धर्मियो के लिए सजग व जागरूक रहने का समय है।जहा एक ओर हमे भारत को विश्वगुरू की प्रतिष्ठा दिलाने हेतु तत्पर रहना है वही अपने मानबिन्दुओ संस्कारो व संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन मे अर्जुन की भांति सजग रहना है।राजा पृथु ने सर्वप्रथम धरती पर कृषि व ऋषि संस्कृति को वर्धन करने का प्रयास किया।ऋषभ नंदन भरत, दशरथ नंदन भरत व दुष्यन्त नंदन भरत तीनो महापुरुषो ने भारतवर्ष की महिमा वैश्विक मानचित्र पर स्थापित करने भव्यातिभव्य और दिव्यातिदिव्य कार्य किया। इस दौरान तपस्यारत बालक ध्रुव की सुन्दर झाकी प्रदर्शित की गई। उक्त अवसर पर पंडित राम खिलावन पाण्डेय, पंडित नीरज तिवारी, भूपतराम कश्यप, टेकराम कश्यप, देव कश्यप, दिनेश कश्यप, अशोक कश्यप लक्ष्मी कश्यप, धनीराम कश्यप, व्यास जायसवाल, अखिलेश जायसवाल, इन्द्रभान जायसवाल, डाक्टर नवीन अग्रवाल सहित सैकड़ो श्रद्धालु नर नारी उपस्थित थे।