रेत माफियाओं ने कांग्रेस को डुबाया ,अब भाजपा सरकार की भी मौन स्वीकृति !
थाना-चौकियों के सामने से गुजरते ट्रैक्टर प्रशासन की आंख में रेत झोंक रहे

घाटों पर चेतावनी बोर्ड भी बेअसर,रेत की जरूरत सरकारी निगरानी में पूरी होनी चाहिए

कोरबा । जिले में सक्रिय रेत माफियाओं के कारण कांग्रेस की किरकिरी इस चुनाव में हुई है,इससे इंकार नहीं किया जा सकता। अब सरकार बदल गई है लेकिन रेत चोर अपने करतूतों से भाजपा के दामन को भी दागदार करने पर तुले हैं। अवैध खनन परिवहन के संरक्षण की आखिर ऐसी कौन सी ताकत है जो कोर्ट,प्रशासन,पुलिस को भी बौना साबित किये हुए है।

रेत चोरों के द्वारा कुछ ऐसा ही नजारा शहर की सड़कों पर उस वक्त देखने को मिलता है, जब चौक चौराहों से रेत उड़ाते ट्रैक्टर गुजरते हैं। अवैध उत्खनन और परिवहन का दौर जिस बेधड़क अंदाज में जारी है, उससे ऐसा प्रतीत होता है, मानों रेत घाट से लेकर सड़कों तक सरकार या प्रशासन का नहीं, बल्कि रेत माफिया का ही राज हो। कांग्रेस शासन में जिस दुस्साहसिक ढंग से रेत तस्करों की सक्रियता रही, ताजा काबिज भाजपा की सरकार में भी प्रशासन के बेपरवाह रवैये के चलते इनके हौसले बुलंद दिखाई दे रहे हैं।


इन दिनों जल स्तर बढ़ा होने के बावजूद नदी-नालों से ज्यादा शहर की सड़कों पर रेत उड़ती देखी जा सकती है। रात का अंधेरा ही नही, दिन दहाड़े आम राहगीरों की आंख में किरकिरी तो परिवहन और खनिज विभाग की आंखों में धूल झोंकते हुए रेत तस्कर बेधड़क अपना गोरखधंधा चमका रहे हैं। तमाम प्रशसनिक व्यवस्था, अधिकारियों और अमले से लैस जिला मुख्यालय में सबसे ज्यादा अफरा तफरी प्रतिदिन देखी जा सकती है। बिना अनुमति या स्वीकृति के संचालित अवैध रेत खदानों, अवैध भंडारण से दिन में कई फेरे लगते हैं। ट्रैक्टर, एक्सीवेटर से लेकर पोकलेन के साथ हाइवा और मेटाडोर की कतार लगी होती है पर उसके बाद भी विभागीय अमले को जैसे कुछ नजर ही नहीं आता। विधानसभा चुनाव में रेत चोरी का मुद्दा खूब गरमाया था। विपक्ष ने जोर-शोर से मुद्दे को उठाया और सरकार बदली, लेकिन रेत चोरों और उनके कृत्य पर कहीं भी जरा सा बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है।
कोरवाली से लेकर सी एस ई बी पुलिस चौकी के सामने से बेधड़क रेत माफियाओं द्वारा संचालित किया जा रहा ये अवैध व्यापार सिविल लाइन थाना क्षेत्र से भी होकर गुजरता है। उप नगरीय थाना भी इससे अछूते नहीं हैं।

जब मंजूरी ही नहीं, तो किसका इंतजार कर रहे खनिज-डीटीओ

दरअसल, कोरबा के प्रवेश द्वार सीतामढ़ी के पास कोरबा का सबसे बड़ा रेत घाट है। यहां से सर्वाधिक रेत निकाली जाती है। जब रेत निकालना वैध था, तो यहां से प्रतिदिन दर्जनों ट्रैक्टर रेत बाहर निकालकर जरूरतमंदों के निर्धारित स्थान पर पहुंचाई जाती थी, लेकिन पिछले लगभग 3 वर्ष से रेत घाट का आवंटन नहीं किया गया। कोरबा में यानी वैध तरीके से रेत परिवहन बंद कर दिया गया। इस अवसर का लाभ रेत माफिया ने उठाया। सीतामढ़ी रेट घाट से शायद ही कोई दिन हो जब प्रतिबंध के बाद भी दर्जनों ट्रैक्टर प्रतिदिन रेत ना निकालते हों। खनिज विभाग ने एक बैरियर लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी। कुछ दिन बाद बैरियर तोड़कर फिर से रेत माफिया ने अपना काम शुरू कर दिया, जो अभी भी जारी है।

तस्करों का सिंडीकेट, नदी नालों का सीना छलनी, हादसों को बुलावा

एनजीटी कि गाईड लाइन दरकिनार कर नदी-नालो का सीना छलनी किया जा रहा है। बिना मंजूरी रेत उत्खनन पर प्रतिबंध होता है। लेकिन दूसरी ओर जिले के शहरी क्षेत्र में रेत की डिमांड ज्यादा और खनिज विभाग सुस्त है। इस कारण इस सीजन में रेत माफिया सक्रिय है। जो खुलेआम नदी-नालों से रेत का अवैध उत्खनन व परिवहन कर रहे हैं। कई बार तस्करों के बीच वर्चस्व की लड़ाई के परिणाम स्वरूप खुलेआम गुंडागर्दी की बाते भी सामने आती रहीं हैं। कई बार शहरी क्षेत्र में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बिगड़ने लग जाती है। शहर में रेत माफियाओं ने सिंडिकेट बनाकर हसदेव नदी, अहिरन नदी व ढेंगुरनाला में अलग-अलग अवैध घाट बना लिया है। जहां अंधेरा होते ही ट्रैक्टर-ट्राली लगाकर रातभर रेत निकालकर बेचते हैं। खनिज विभाग की टीम सब जानते हुए भी कार्रवाई करने में पीछे रहती है। रात में रेत माफिया व उनके लोग घाट पर हथियार व डंडे से लैस रहते हैं। रोकने पर वे लोग मारपीट करते हैं। कभी भी बड़ी घटना हो सकती है।

बिना नंबर के ट्रैक्टर-ट्रॉली, मामूली जुर्माना लगा खानापूर्ति

प्रतिबंध के दौरान अवैध रूप से नदी-नाला से रेत निकालकर बेचने का मामला सीधे चोरी का बनता है लेकिन खनिज विभाग ऐसे मामले पकड़े जाने के बाद केवल जुर्माना की कार्रवाई करके छोड़ देता है। एक ट्रैक्टर-ट्राली रेत बेचकर माफिया 4 हजार रुपए कमा लेते हैं और कभी-कभार पकड़ाने पर इसकी तुलना में बेहद कम रकम जुर्माना के तौर पर पटाना पड़ता है। रेत माफियाओं द्वारा रेत चोरी के लिए बिना नंबर के ट्रैक्टर व ट्राली का उपयोग किया जाता है। इसके बाद भी उनपर कड़ी कार्रवाई नहीं की जाती