कोरबा । लोकसभा चुनाव से पूर्व ताबड़तोड़ आदेश निर्देश जारी किए जा रहे हैं ,इस दौरान इस कदर हड़बड़ी बरती जा रही है कि मंत्रालययीन अफसरों द्वारा आंख मूंदकर। निर्वाचन आयोग के नियमों को ताक में रखकर स्थानांतरण आदेश जारी कर दिए जा रहे। एक ऐसा ही मामला प्रकाश में आया है ,जहां आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग के सचिव ने प्रदेश के 24 मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत के स्थानांतरण आदेश में इस कदर निर्वाचन आयोग के नियमों की धज्जियां उड़ाई कि गृह जिला कोरबा में जनपद सीईओ की पदस्थापना कर दी। जिससे
आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे।

निर्वाचन आयोग आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटा हुआ है। इसे लेकर निर्वाचन आयोग ने 3 साल व उससे अधिक समय से जमे अधिकारियों की सूची भी मंगाई है। जिनके स्थानांतरण किए जा रहे है। इस कड़ी में गत दिनों पाली जनपद पंचायत के सीईओ भूपेंद्र कुमार सोनवानी तथा करतला जनपद पंचायत सीईओ एमएस नागेश का तबादला कर दिया गया है। पाली जनपद पंचायत के सीईओ भूपेंद्र कुमार सोनवानी के स्थान पर पाली में प्रेम सिंह मरकाम और करतला में संजय कुमार राय नए सीईओ पदस्थ किए गए हैं।
आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग के सचिव ने मुख्य कार्यपालन अधिकारियों की तबादला सूची जारी की है। जिसमें प्रेम सिंह मरकाम डीपी मैनेजर, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत लैलूंगा जिला रायगढ़ को मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत पाली जिला कोरबा स्थानांतरित किया गया है। खास बात यह है कि प्रेम सिंह मरकाम ग्राम पोलमी जनपद पंचायत पाली के ही निवासी है। सूत्र बताते है कि गृह जिला व ब्लॉक में ही प्रेम सिंह मरकाम को पोस्टिंग दे दी गई है। सूत्रों का तो यह भी दावा है कि सीईओ प्रेम सिंह मरकाम का वोटर लिस्ट में भी नाम है। जिसका सीरियल क्रमांक 865 है। इस तरह इलेक्शन कमीशन के आदेश को दरकिनार कर गृह जिला में ही प्रेम सिंह मरकार को पोस्टिंग दे दी गई है। जानकार बताते है कि ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता। उसके बाद भी शासन स्तर पर एक बड़े अधिकारी को गृह जिला में नियुक्ति दे दी गई है। ऐसे में निष्पक्ष चुनाव के दावों पर प्रश्र चिन्ह लगना लाजमी है।
भारत निर्वाचन आयोग ने जारी किया है ये निर्देश

ईसीआई ने राज्य सरकारों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि जिन अधिकारियों को 3 साल पूरा करने के बाद जिले से बाहर स्थानांतरित किया जाता है, उन्हें उसी संसदीय क्षेत्र के किसी अन्य जिले में तैनात नहीं किया जाए।ईसीआई ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को स्थानांतरण नीति को अक्षरश: लागू करने का निर्देश दिया है।उन मामलों को गंभीरता से लेते हुए, जिनमें राज्य सरकारों द्वारा अधिकारियों को एक ही संसदीय क्षेत्र के भीतर निकटवर्ती जिलों में स्थानांतरित/तैनाती किया जा रहा है, आयोग ने यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी मौजूदा स्थानांतरण नीति को मजबूत किया है कि अधिकारी समान अवसर को बिगाड़ने में सक्षम नहीं हैं। चुनाव.मौजूदा निर्देशों में खामियों को दूर करते हुए, आयोग ने निर्देश दिया है कि, दो संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों वाले राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को छोड़कर, सभी राज्य यह सुनिश्चित करेंगे कि जिन अधिकारियों को जिले से बाहर स्थानांतरित किया गया है, उन्हें उसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में तैनात नहीं किया जाए।यह दोहराया गया है कि आयोग की स्थानांतरण नीति का अक्षरश: पालन किया जाना चाहिए, न कि अनुपालन दिखाने के लिए इसे छिपाया जाना चाहिए। यह नियम उन तबादलों और पोस्टिंग पर पूर्वव्यापी रूप से लागू होता है जिन्हें आयोग के पूर्व निर्देशों के अनुसार पहले ही लागू किया जा चुका है।ईसीआई नीति के अनुसार, उन सभी अधिकारियों को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया गया है जो या तो अपने गृह जिले में तैनात थे या एक स्थान पर तीन साल पूरे कर चुके हैं। इसमें वे अधिकारी शामिल हैं जो सीधे या पर्यवेक्षी क्षमता में किसी भी तरह से चुनाव कार्य से जुड़े हुए हैं। चुनावों में समान अवसर में खलल डालने के खिलाफ आयोग की जीरो टॉलरेंस नीति रही है। यह याद किया जा सकता है कि हाल ही में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में, आयोग ने विभिन्न अधिकारियों, यहां तक कि राज्य में वरिष्ठ स्तर के पुलिस अधिकारियों के स्थानांतरण का आदेश दिया था।