ईडी को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका ,कहा -अदालत में दिया गया बयान ही ज्यादा महत्वपूर्ण

नई दिल्ली । छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले में सुप्रीम कोर्ट ने हाल में मनीलांड्रिंग के केस को रद्द कर दिया था। अब एक दूसरे मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से पीएमएलए एक्ट के तहत दर्ज केस में कहा- पीएमएलए एक्ट (धन शोधन निवारण अधिनियम) की धारा 50 के तहत दर्ज किए गए आरोपी के बयान की स्वीकार्यता और उसके साक्ष्य मूल्य में अंतर है। इसलिए- पीएमएलए एक्ट की धारा 50 का बयान अदालत के सामने साक्ष्य (सबूत) नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की इस राय को विधिक गलियारों में छत्तीसगढ़ में ईडी की ओर से दर्ज किए गए सभी मामलों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि अधिकांश पीएमएलए एक्ट के तहत ही दर्ज हुए हैं और जो साक्ष्य दिए गए हैं, उनमें ज्यादातर आरोपियों के बयान ही हैं।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की डबल बेंच ने आप के एक विधायक द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता के खिलाफ ईडी ने दिल्ली वक्फ बोर्ड की भर्ती में अनियमितता और मनीलांड्रिंग का केस दर्ज किया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों तथा सुनवाई को विधि विशेषज्ञों की ओर से प्रस्तुत करनेवाली वेबसाइट लाइव-ला के अनुसार- सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना ने 15 अप्रैल को मामले की सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से कहा कि धन शोधन निवारण अधिनिय़म (पीएमएलए एक्ट) की धारा 50 के तहत दर्ज आरोपी के बयान की स्वीकार्यता और उसके साक्ष्य मूल्य के बीच अंतर है। जस्टिस खन्ना ने कहा कि अदालत के समक्ष साक्ष्य अदालत में व्यक्ति द्वारा दिया गया वास्तविक बयान है, न कि पीएमएलए एक्ट की धारा 50 के तहत दिया गया बयान। ऐसा कहते हुए जस्टिस खन्ना ने कहा… पीएमएलए एक्ट की धारा 50 का बयान अदालत के समक्ष साक्ष्य नहीं है।

जिस केस के बारे में सुनवाई करते हुए जस्टिस खन्ना ने यह टिप्पणी की, वह हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर किया गया है, जिसमें हाईकोर्ट ने आप विधायक को अग्रिम जमानत देने से इंकार किया था। उस आदेश में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि अग्रिम जमानत याचिका पर फैसला करने के चरण में पीएमएलए एक्ट की धारा 50 के तहत दर्ज किए गए बयानों पर विचार करना और सराहना करना प्रासंगिक होगा। इस फैसले पर जस्टिस खन्ना ने कहा- निर्णय में कुछ टिप्पणियां हैं, जो मामले के गुण-दोष पर जाती हैं। धारा 50 के बयानों की विश्वसनीयता के संबंध में (टिप्पणियां) इस स्तर पर आवश्यक नहीं हैं। जस्टिस ने ईडी का प्रतिनिधित्व कर रहे एडिशनल सालिसिटर जनरल एसवी राजू को भी इस तथ्य से अवगत कराया है।