सोना, हीरे, जवाहरात का भंडार , जानें जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार में किसने रखवाया था खजाना !

पुरी । जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार को खोल दिया गया है। लंबे वक्त बाद इस खजाने को खोला गया है। बताया जा रहा है कि तहखाने में हीरे जवाहरात और सोने से भरे 12 बक्सों के साथ एक अलमारी मिली है। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आखिर जगन्नाथ मंदिर के इन रत्न भंडार में कितना सोना या खजाना है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर जगन्नाथ मंदिर में इतना सोना कहां से आया और किसने मंदिर को इतना सोना दान किया था?

रत्न भंडार से क्या क्या निकला?

अभी जगन्नाथ मंदिर में रत्नभंडार से क्या क्या मिला है, इसकी आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है। अभी तक इन सामानों की इन्वेंटरी नहीं हुई है। इसे भंडार की मरम्मत के बाद किया जाएगा। बताया जा रहा है कि हीरे जवाहरात और सोने से भरे 12 बक्से हैं। जब पहले 1805 में चार्ल्स ग्रोम की ओर से खजाने का डॉक्यूमेंटेंशन किया गया था, उस दौरान 64 सोने चांदी के आभूषण थे। साथ ही 128 सोने के सिक्के, 1,297 चांदी के सिक्के, 106 तांबे के सिक्के और 1,333 प्रकार के कपड़े थे।

किसने बनवाया था जगन्नाथ मंदिर?

पुरी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में पूरा हुआ था। गंग वंश के राजा अनंत बर्मन देव ने 1078 से 1148 के बीच इसका निर्माण शुरू करवाया था। उनके बाद सन 1197 में उड़िया शासक अनंत भीम देव ने मंदिर को वर्तमान रूप दिया। इसके बाद कई बार मंदिर में बदलाव हुए और जीर्णोद्धार का काम चलता रहा। इस मंदिर की वास्तुकला कलिंग और द्रविड़ शैलियों का मिश्रण है और इसका निर्माण ओडिशा की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है।

किसने दान दिए थे ये आभूषण?

वैसे तो इस मंदिर में राजा-महाराजाओं की आस्था रही, जिसकी वजह से कई राजाओं ने मंदिर में दान किया था। बताया जाता है कि मंदिर बनने के बाद राजा अनंगभीम देव ने भगवान के लिए कई लाख माधा सोना दान किया था। अगर माधा की बात करें तो एक तौला सोने में दो माधा होता है यानी एक माधा पांच ग्राम का होता है। इस हिसाब से उन्होंने करीब 5 किलो सोना मंदिर को दान दिया था। इसके अलावा सूर्यवंशी शासकों ने भी भगवान जगन्नाथ के लिए बहुमूल्य रत्न और सोना अर्पित किया था।
रिपोर्ट्स के अनुसार, 12वीं सदी में मंदिर के बनने के बाद 15वीं सदी में सूर्यवंशी राजा महाराजा कपिलेंद्र देव ने मंदिर को काफी दान दिया था। उस दौरान कपिलेंद्र देव ने मंदिर में सोना, चांदी, कई कीमती हीरे आदि दान किए थे। ये भी कहा जाता है कि जब कपिलेंद्र देव ने यहां दान दिया था, उस वक्त वे कई हाथियों पर सामान लाए थे, जो उन्होंने मंदिर को दान दिया था।
इनके अलावा महाराजा रणजीत सिंह ने भी काफी भारी मात्रा में श्री जगन्नाथ मंदिर को सोना दान किया था। रणजीत सिंह की वसीयत में कोहिनूर को भी जगन्नाथ मंदिर देने की बात कही गई है। इनके अलावा भी कई राजाओं ने यहां दान दिया और जिसके बाद यहां ‘सुना बेशा’ की परंपरा शुरू हुई, जिसमें भगवान का सोने से श्रंगार किया जाता है। बुधवार को ही जगन्नाथ मंदिर में सुना बेशा था।

कई बार लूटा भी गया

इस बारे में ओडिशा के इतिहासकार अनिल धीर का कहना है कि मंदिर के खजाने को पहले अफगानों और मुगलों ने भी लूटा था। साल 1803 में ये मंदिर अंग्रजों ने कब्जे में लिया था और इससे पहले ये मराठाओं के पास था। लेकिन खास बात ये है कि अंग्रेजों ने खजाने के साथ कोई छोड़खानी नहीं की और उन्होंने इसे रिकॉर्ड में रखा और आज भी उतना ही खजाना है। वहीं कई हाथियों के साथ दान देने की कई कहानियां, जो कहीं दर्ज नहीं है और सिर्फ मौखिक कहानियां ही हैं। उन्होंने बताया कि माना जाता है कि पहले का आक्रांताओं ने इसमें से सोना लूट लिया था। एक बार तो कई साल तक भगवान को भी छुपा लिया गया था। मंदिर के रत्न भंडार में दो चेंबर हैं, बाहर के चेंबर में भगवान के कपड़े रखे थे। भीतरी भंडार में प्रवेश करने के लिए बाहरी भंडार से होकर गुजरना पड़ता है।