कोरबा। आचार्य मृदुल कांत शास्त्री ने श्रीमद् भागवत कथा की छठवें दिवस की कथा में श्रोताओं को संबोधित करते हुए बताया कि भगवान को खोजने के लिए लोग कई प्रकार के उपक्रम किया करते हैं। सबसे बड़ी आवश्यकता ईश्वर को बाहर खोजने की नहीं बल्कि अंतःकरण में खोजने और स्थापित करने की है। सच्ची भक्ति और प्रेम से वह अपने भक्तों के वशीभूत हो जाते हैं।
पंडित दीनदयाल संस्कृतिक भवन आशीर्वाद पॉइंट में कबूलपुरिया परिवार के द्वारा पितृमोक्ष के लिए श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया गया है। भगवान कृष्ण और गोपियों से जुड़े हुए प्रसंग को लेकर आज उन्होंने यहां पर विशेष व्याख्या की। गोपियों की विरह कथा को लेकर उन्होंने कई बिंदुओं को स्पष्ट किया। आचार्य ने यह भी कहा कि घमंड के कारण व्यक्ति ही नहीं भक्तों की दूरी अपने ईष्ट से हो जाती हैं। गोपियों को छोड़कर भगवान कृष्ण के ब्रज मंडल से गमन करने के प्रसंग हो उन्होंने रेखांकित किया। गोपियों के माध्यम से उन्होंने पूछा कि- आखिर जिन्होंने अपना घर , परिवार और नाते रिश्तेदार छोड़ें, आखिर उनसे ऐसी कौन सी गलती हुई जिसकी इतनी बड़ी सजा मिली। उनका सवाल यह भी था कि- आखिर कन्हैया अपने शरणागत को कैसे छोड़ सकते हैं? कैसे त्याग सकते हैं? प्रासंगिक की मार्मिकता ने भक्तों के नयनों को सजल कर दिया।
वेणु, रेणु और धेनु से करें प्रेम
ब्रज मंडल की विशेषताओं पर अपनी बात रखते हुए आचार्य मृदुल कांत शास्त्री ने बताया कि शुद्ध भाव से ब्रज की यात्रा करने के दौरान भक्तों को कई चीजों का ध्यान रखना चाहिए। ब्रज मैं कन्हैया की बांसुरी, ब्रज की रज और स्वच्छंद रूप से विचरण करते हुए सभी के चित को शांत करने वाली धेनुओं का दर्शन करना अत्यंत शुभकर होता है। पूरा ब्रजमंडल इस प्रकार की विशेषताओं से भरा हुआ है और हमें इसी भाव से ब्रजमंडल का दर्शन करना चाहिए। ब्रज मंडल के साथ आध्यात्मिक और दर्शन को स्पष्ट करते हुए आपने बताया कि भगवान कृष्ण तो यहां तक कहते हैं कि भक्तों के चलने से उड़ने वाली रज उन तक पहुचे तो उनका सौभाग्य होगा।
महारास के लिए भगवान ने धरे अनंत रूप
कथा के अंतर्गत सोमवार को कृष्ण और गोपियों महारास कै प्रसंग पर भी चर्चा हुई। सुंदर झांकी के साथ महारास के विराट रूप को प्रस्तुत किया गया। सभी भक्त जनों ने इसका भरपूर आनंद लिया। आचार्य मृदुल कांत ने इस अवसर पर बताया कि गोपियों के साथ भगवान ने महारास किया तो अद्भुत दृश्य उत्पन्न हुआ। इस दौरान सभी गोपियों के साथ नृत्य करने के लिए भगवान ने अनंत रूप धारण किए।
कृष्ण रुक्मणी मंगल के दृश्य ने किया अभिभूत
श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिवस आयोजन स्थल पर भगवान कृष्ण और रुक्मणी मंगल का प्रसंग सबसे विशिष्ट रहा। इस अवसर पर आकर्षक झांकी प्रस्तुत की गई। कृष्ण की अनन्य भक्ति करने वाली रुक्मणी से उनका मंगल प्रसंग बताता है कि वह किसी को निराश होने का कोई अवसर नहीं देते। रुक्मणी के मंगल परिणय उत्सव पर यहां पर प्रस्तुत की गई झांकी का मातृशक्ति के अलावा सभी भक्तों ने प्रेम भाव से स्वागत स्वीकार किया और भेंट अर्पित की। कथा श्रवण करने के लिए आज बड़ी संख्या में भक्तों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।