कोरबा। सुशासन की सरकार में चंद नेताओं का संरक्षण प्राप्त कर रेत माफिया फीलगुड में चल रहे हैं। विभागीय समन्वय के अभाव में और कार्रवाई के लिए अधिकारियों की अरुचि के कारण नदियों का सीना हर दिन 24 घंटे छलनी हो रहा है। पर्यावरण संरक्षण के मामले में कागजी खानापूर्ति करते आ रहा पर्यावरण संरक्षण विभाग नदियों के संरक्षण में फेल साबित हो रहा है।
गर्मी शुरू हो रही है और नदियां सूखने लगी हैं। ऐसे में नदियों में जेसीबी उतार कर बड़े पैमाने पर रेत खोदे जा रहे हैं। यह काम अवैधानिक तौर पर हो रहा है लेकिन इसे अधिकारी वैधानिक बनाने से परहेज नहीं कर रहे। पर्यावरण विभाग की उदासीनता के कारण जिले भर की नदियां और नाले रेत माफिया के निशाने पर रहकर अपना अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं तो दूसरी तरफ सड़कों का कचूमर ओवरलोड रेत/खनिज परिवहन करने वाले वाहनों के द्वारा निकाला जा रहा है।
परिवहन उड़नदस्ता उड़न-छू,ओव्हरलोड की अनुमति व छूट

परिवहन विभाग के अधिकारियों से लेकर उड़न दस्ता की खामोशी और उड़नदस्ता दल के अब छूमंतर हो जाने के कारण ओवरलोड का आलम यह है कि कंपनी द्वारा निर्मित डाला बॉडी को एक्स्ट्रा लोहा जुड़वा कर ऊंचा करते हुए ओवरलोड रेतबव अन्य खनिज भरे जा रहे हैं। इस एक्स्ट्रा डाला बॉडी से भी ऊपर ओवरलोड देखने को मिलता है।
दम निकलती सड़कों के संधारण में इन माफियाओं का कोई भी योगदान नहीं मिलता क्योंकि यह राजस्व की चोरी करके अपना काम निकाल रहे हैं। बेधड़क दौड़ते वाहनों के एवज में कोई भी राजस्व सरकार को प्राप्त नहीं होता किंतु राजस्व विभाग के अधिकारी भी नज़रें फेरे बैठे हैं। रेत सहित खनिज माफिया पर कोई पुलिसिया कार्रवाई करने के लिए FIR दर्ज नहीं कराई जाती जबकि यह चोरी का मसाला हो जाता है।
जिन विभागों पर इनके संरक्षण का दारोमदार है, वही दरियादिल हो जाए तो भला माफियाओं के कदम कौन रोक सकता है, फिर चाहे सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की। विपक्ष में रहते हुए कोसने की आदत सत्ता पक्ष में आते ही बदल जाती है और फिर वही कोसने वाले लोग संरक्षण देकर सरकार की नीति और नीयत पर सवाल खड़े करने लगते हैं।
सिस्टम पर सिंडिकेट हावी

कोरबा शहर से लगा इलाका सीतामढ़ी हो या आसपास के दूसरे क्षेत्रों से होकर बहने वाली हसदेव अथवा अहिरन नदी का बड़ी बेरहमी से हर दिन चीर हरण रेत माफिया कर रहे हैं लेकिन अधिकारियों की आंखों पर सब कुछ देखते हुए भी पट्टी बंधी हुई है। रेत की आवश्यकता हर निर्माण कार्य के लिए होती है लेकिन यदि यही कार्य सिस्टम से कराया जाए तो ना किसी के पेट पर लात पड़ेगी और न रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न होगा, प्रतिस्पर्धा भी खत्म होगी और लोगों को रेत निर्धारित सस्ती दर पर मिलेगी लेकिन यहां रेत के कारोबार में एकाधिकार काबिज करने की मंशा से सिंडिकेट बनाकर किए जा रहे कार्य जनता की जेब पर अब भी डाका डाल रहे हैं।
0 बढ़ते ट्रेक्टर,टीपर, अकुशल व नाबालिग हाथों में स्टेयरिंग
निगम क्षेत्र में शहर के सीतामढ़ी के अलावा भिलाईखुर्द, बरबसपुर, गेरवा घाट, बरमपुर, कुसमुंडा ऐसे नामचीन इलाके हैं जहां मुख्य रूप से हीरू, कादिर, शहजाद, गंगापुरी, रंजू, नन्हा घनश्याम, सुभाष, प्रदीप, अजय, राजेश, बिस्वा, नक्की, सद्दाम राजकुमार ने अपना आधिपत्य सा बना रखा है। चोरी के अलावा इनके वाहन कई बार नाबालिग हाथों में सहज ही दिख जाते हैं। इनके अवैधानिक कार्यों पर पर्दा भी सुनियोजित तरीके से डाला जा रहा है और कहा जाता है कि नेताजी ने कार्रवाई करने से मना किया है,जब सरकार ही चाहती है तो हम क्या कर सकते हैं। अब इसमें भी मजे की बात यह है कि इन रेत माफियाओं ने अपने-अपने आदमी कहीं ना कहीं फिट के हुए हैं जो कार्रवाई करने के लिए दफ्तर से या अपने घर से निकलने वाले अधिकारी की रेकी तक करते हैं। विभाग से जब अधिकारी कहीं छापा मारने निकलते हैं तो वहीं से इन्हें खबर मिल जाती है और मौके से ट्रैक्टर, टीपर, जेसीबी हटवा दिया जाता है। अधिकारी के पहुंचने पर सब सन्नाटा मिलता है तो बेचारे कार्रवाई भी क्या करें! ईमानदार अधिकारी के लिए भी मुसीबत खड़ी हो जाती है जब भ्रष्ट लोगों के चक्रव्यूह में वह फंस जाता है।