ना गांव में जली होलिका ना उड़ी गुलाल, जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर स्थित खरहरी में ग्रामीणों को होली नहीं मनाने का नहीं है मलाल
कोरबा। रंगों का त्यौहार होली में चहुंओर अबीर गुलाल गुलाल उड़ता है और हर कोई खुशियों में सराबोर रहते हैं , लेकिन कोरबा जिले में एक गांव ऐसा है, जहां पिछले 150 सालों से होली नहीं मनाई जाती है। न रंग भरी पिचकारी चलती है, न रंग-बिरंगे गुलाल उड़ते हैं। यहाँ गलती से रंग भी गिर गया तो लहू बह जाता है ।
इस गांव का नाम है खरहरी।कोरबा जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर स्थित खरहरी गांव के लोग आज भी उस परंपरा कहे या अंधविश्वास उसी को निभा रहे हैं, जो उन्हें विरासत में मिली है। हैरानी की बात ये है कि गांव की साक्षरता दर 76 प्रतिशत है, फिर भी ग्रामीण बुजुर्गों की बातों का आंख मूंदकर पालन करते आ रहे हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उनके जन्म से बहुत पहले ही इस गांव में होली न मनाने की परंपरा शुरू हो गई थी। उनका कहना है कि लगभग 150 साल पहले गांव में होली के दिन आग लग गई थी, जिससे काफी नुकसान हुआ था। गांव के लोगों का मानना है कि जैसे ही बैगा ने होलिका दहन की, उसके घर में आग लग गई। आसमान से गिरे अंगारे बैगा के घर पर गिरे और देखते ही देखते आग पूरे गांव में फैल गई। गांव के युवा भी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। वे बताते हैं कि वो पढ़े-लिखे हैं, लेकिन फिर भी अपने पूर्वजों की परंपरा का पालन कर रहे हैं। उन्हें डर है कि अगर वो गांव में होली खेलेंगे तो नुकसान हो सकता है। ये मान्यताएं निश्चित रूप से होली के त्योहार को फीका करती है, जो रंगों और खुशियों का प्रतीक है। देखना ये है कि क्या खरहरी गांव कभी इस जनश्रुत से बाहर निकल पाएगा और रंगों के इस त्योहार को खुशी से मना पाएगा।

होली ना मनाने के पीछे यह है मान्यता
होली न मनाने के पीछे एक और मान्यता है। कहा जाता है कि देवी मड़वारानी ने सपने में आकर कहा था कि गांव में न तो कभी होली का त्योहार मनाया जाए और न ही होलिका दहन किया जाए। अगर कोई ऐसा करता है, तो बड़ा अपशगुन होगा। गांव में रहने वाली महिलाएं बताती हैं कि शादी से पहले वे होली मनाती थीं लेकिन जब से वो खरहरी गांव आई हैं, उन्होंने होली खेलना छोड़ दिया है।