हम खुद 140 करोड़ ,भारत कोई धर्मशाला नहीं ,जहाँ दुनिया भर के शरणार्थी आकर घुस जाएं :SC

दिल्ली। भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां दुनिया भर से शरणार्थी आएं और बसते चले जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने एक श्रीलंकाई तमिल की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि हमारी तो अपनी ही आबादी 140 करोड़ से ज्यादा है।

ऐसे में क्या भारत दुनिया भर के शरणार्थियों का अपने यहां स्वागत कर सकता है? यह कोई धर्मशाला तो नहीं है, जहां हम दुनिया भर से आए लोगों का स्वागत करें। इसके साथ ही उन्होंने श्रीलंकाई तमिल शख्स को हिरासत में लिए जाने के मामले में दखल से इनकार कर दिया। श्रीलंकाई तमिल शख्स ने खुद को हिरासत में लिए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी, जिसमें दखल से शीर्ष अदालत ने साफ इनकार कर दिया।

जस्टिस दीपांकर दत्ता के नेतृत्व वाली बेंच में जस्टिस के. विनोद चंद्रन भी शामिल थे। श्रीलंकाई तमिल ने मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल की थी, जिसमें कहा गया था कि अपनी 7 साल की सजा पूरी होने के तुरंत बाद वह देश से निकल जाए। शख्स को UAPA के एक केस में 7 साल कैद की सजा मिली थी। लेकिन श्रीलंकाई तमिल ने सजा पूरी होने के बाद भारत में ही रहने की इच्छा जाहिर की। उसके वकील ने अदालत से कहा कि मेरा मुवक्किल वीजा लेकर भारत आया था। अब यदि वह अपने देश वापस गया तो फिर उसकी जान को खतरा होगा। उन्होंने कहा कि शख्स को बिना किसी डिपोर्टेशन की प्रक्रिया के ही करीब 3 सालों से हिरासत में रखा गया है।

इस पर जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा, ‘आखिर आपका यहां बसने का क्या अधिकार है?’ इस पर याची के वकील ने कहा कि वह एक शरणार्थी हैं और उनके बच्चे एवं पत्नी पहले से ही भारत में सेटल हैं। इस पर जस्टिस दत्ता ने कहा कि याची को भारत छोड़ने का आदेश देने में किसी भी तरह से आर्टिकल 21 का उल्लंघन नहीं हुआ है। जस्टिस दत्ता ने कहा कि आर्टिकल 19 के तहत भारत में बसने का अधिकार सिर्फ यहां के नागरिक को ही है। किसी भी बाहरी व्यक्ति के पास कोई अधिकार नहीं है कि वह आए और यहां बस जाए। इस पर वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल यदि अपने देश वापस लौटे तो उनकी जान को खतरा होगा। इस पर जस्टिस दत्ता ने कहा कि वह किसी और मुल्क में जा सकते हैं।

रोहिंग्या रिफ्यूजी वाली अर्जी भी सुप्रीम कोर्ट ने की थी खारिज

बता दें कि रोहिंग्या रिफ्यूजियों के मामले में भी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इनकार कर दिया था। दरअसल याची को 2015 में लिट्टे से जुड़े होने के आरोप में अरेस्ट किया गया था। 2018 में शख्स को ट्रायल कोर्ट ने दोषी करार दिया था और 10 साल की कैद की सजा दी थी। इस फैसले के खिलाफ उसने हाई कोर्ट में अपील की थी, जिसके बाद उसकी सजा 7 साल हो गई। इसके साथ ही यह आदेश भी उच्च न्यायालय ने दिया था कि वह सजा पूरी होते ही देश छोड़ देगा। अब देश छोड़ने के फैसले के खिलाफ याची ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन अदालत ने राहत देने से साफ इनकार कर दिया

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने उसकी याचिका खारिज करते हुए सख्त टिप्पणी की- “क्या भारत दुनिया भर के शरणार्थियों की मेजबानी करने के लिए है? हम पहले से ही 140 करोड़ लोगों से जूझ रहे हैं। भारत कोई धर्मशाला नहीं है।” अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 — जिसमें बोलने की आज़ादी, यात्रा और रहने का अधिकार शामिल है — केवल भारतीय नागरिकों के लिए ही है।

संविधान और विदेशी नागरिकों के अधिकार

याचिकाकर्ता ने अपने अधिकारों की बात करते हुए संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 का हवाला दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि:

अनुच्छेद 19 केवल भारतीय नागरिकों पर लागू होता है।

अनुच्छेद 21 के तहत “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता” का अधिकार सभी को है, लेकिन यह अधिकार कानूनी प्रक्रिया के अनुसार सीमित किया जा सकता है।
इस व्यक्ति को कानून के मुताबिक हिरासत में लिया गया और सजा पूरी करने के बाद उसके निर्वासन का आदेश पहले से ही मौजूद था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि अगर उसे अपने देश श्रीलंका में खतरा है तो वह किसी अन्य देश में शरण मांग सकता है। लेकिन भारत में बसने का उसके पास कोई वैधानिक अधिकार नहीं है।