बिलासपुर । छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन के खिलाफ लगाई गई याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि, ग्रामीणों का सामुदायिक वन अधिकार का दावा साबित नहीं हुआ है। मामले पर जस्टिस राकेश मोहन पाण्डेय की सिंगल बेंच में सुनवाई हुई।
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति और जयनंदन सिंह पोर्ते ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। इसमें कहा था कि, ग्राम घठबार्रा के लोगों को वन अधिकार कानून, 2006 के तहत सामुदायिक अधिकार मिले थे। जिन्हें साल 2016 में जिला समिति ने रद्द कर दिया।


याचिकाकर्ताओं ने 2022 में फेज-2 कोल ब्लॉक की मंजूरी को भी चुनौती दी थी। उनका कहना था कि ग्रामसभा की सहमति लिए बिना खनन की मंजूरी दी गई, जो अवैध है। राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति कोई वैधानिक संस्था नहीं है, इसलिए वह ग्रामसभा या ग्रामीणों की ओर से सामुदायिक अधिकारों का दावा नहीं कर सकती।
👉वन अधिकार कानून इसमें बाधक नहीं
वहीं राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की ओर से कहा गया कि कोल ब्लॉक का आवंटन कोल माइंस (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट 2015 के तहत हुआ है। जिसे संसद ने पारित किया है। यह अधिनियम अन्य सभी कानूनों पर प्राथमिकता रखता है, इसलिए वन अधिकार कानून इसमें बाधक नहीं है।
👉 कोर्ट ने 2012 और 2022 के आदेशों को सही ठहराया
हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार के साल 2012 और 2022 के आदेशों को सही ठहराते हुए कहा कि पारसा ईस्ट और केते बासन (PEKB) कोल ब्लॉक के फेज-1 और फेज-2 में खनन की प्रक्रिया वैध है। कोर्ट ने माना कि खनन की मंजूरी के लिए सभी आवश्यक औपचारिकताओं और नियमों का पालन किया गया।
👉 ग्रामसभा बैठकों में हुई थी भूमि अधिकार और पट्टों पर चर्चा
जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की बेंच ने आदेश में कहा कि सरगुजा जिले के उदयपुर तहसील के ग्राम घठबार्रा की 2008 और 2011 की ग्रामसभा बैठकों में केवल व्यक्तिगत भूमि अधिकार और पट्टों पर चर्चा हुई थी। सामुदायिक अधिकारों पर कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ।