रायपुर । प्रदेश में अवैध निर्माणों को लेकर शासन ने पुराने आदेश में बड़ा बदलाव करते हुए नई व्यवस्था लागू की है। अब किसी भी भवन या दुकान को बिना सुनवाई और कानूनी प्रक्रिया के तोड़ा नहीं जा सकेगा। शासन ने इस व्यवस्था को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए कई नए प्रावधान जोड़े हैं।
पहले नगरीय निकाय अक्सर बिना पूर्व सूचना या अधूरी जांच के निर्माण तोड़ देते थे। कई मामलों में लोगों को न तो कारण बताओ नोटिस मिलता था, न अपना पक्ष रखने का मौका। अब नया आदेश इस मनमानी पर पूरी तरह रोक लगाता है। शासन ने स्पष्ट किया है कि अब नोटिस देना, जवाब लेना, सुनवाई करना और हर कार्रवाई का रिकॉर्ड रखना अनिवार्य होगा।

नए आदेश के अनुसार, अब नोटिस रजिस्टर्ड डाक से भेजना जरूरी होगा। साथ ही उसकी एक प्रति संबंधित भवन की दीवार पर चिपकाई जाएगी, ताकि यह दावा न किया जा सके कि सूचना नहीं मिली।
शासन ने अपील की प्रक्रिया को भी सशक्त बनाया है। अब आदेश पारित होने के बाद 15 दिन तक कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। इस अवधि में प्रभावित व्यक्ति अपील कर सकता है या स्वयं निर्माण हटा सकता है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो ही प्रशासन बुलडोजर चलाएगा।
नई व्यवस्था में हर ध्वस्तीकरण की वीडियोग्राफी अनिवार्य की गई है। मौके पर मौजूद अधिकारियों, पुलिसकर्मियों और कर्मचारियों के नाम भी ध्वस्तीकरण रिपोर्ट में दर्ज होंगे।
शासन ने अफसरों की जवाबदेही भी तय की है। यदि कोई अधिकारी बिना नियमों के किसी की संपत्ति गिराता है, तो नुकसान की भरपाई उसकी जेब से की जाएगी और उसके खिलाफ अभियोजन या अवमानना की कार्रवाई भी हो सकती है।
सबसे बड़ा बदलाव डिजिटल ट्रैकिंग के रूप में किया गया है। अब सभी नगर निगम और नगर पंचायतों को डिजिटल पोर्टल बनाने का निर्देश दिया गया है, जिसमें हर अवैध निर्माण से जुड़ी फाइल, नोटिस, जवाब, आदेश और सुनवाई की स्थिति सार्वजनिक रूप से देखी जा सकेगी। जनता अब ऑनलाइन यह जान सकेगी कि किसका निर्माण अवैध घोषित हुआ और क्या कार्रवाई चल रही है।
शासन का यह कदम मनमानी पर लगाम लगाते हुए पारदर्शिता की नई मिसाल पेश करता है। नई नीति यह सुनिश्चित करेगी कि निर्दोष का घर या दुकान न टूटे, लेकिन अवैध निर्माण करने वाला अब छिप नहीं सकेगा।
(आनंद कुमार पटेल, अवर सचिव, नगरीय प्रशासन विभाग)
