KORBA : पुराने जर्जर पुल से आवागमन पर लग रहे नो -इंट्री , बैकअप समानांतर पुल की अनदेखी से 4 दशक पुराना कुदुरमाल पुल से आवागमन पर लगा प्रतिबंध,फंड की उपलब्धता के बावजूद शासन -प्रशासन की अनदेखी का खामियाजा भुगत रही जनता ! बढ़ गया आवागमन का फासला …

कोरबा। आकांक्षी जिला कोरबा में अधिकारियों की अदूरदर्शिता ,अनदेखी और अव्यवस्थित प्लानिंग की वजह से यातायात व्यवस्थाएं बिगड़ रही है।
ग्राम कुदुरमाल में हसदेव नदी पर बने 650 मीटर पुराने पुल को जर्जर हालत ,सुरक्षा के मद्देनजर बंद कर दिया गया है। बैकअप (समानांतर )पुल तैयार नहीं होने विभागीय बदइंतजामी ने जनता के आवागमन का फासला बढ़ा दिया है। वहीं बालको क्षेत्र के बेलगिरी नाले पर बना पुल भी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गया है। इसे भी जल्द बंद करने की तैयारी चल रही है। ऐसे में जिले की 4 लाख से अधिक आबादी और औद्योगिक ट्रांसपोर्ट पूरी तरह प्रभावित होगी ।

👉 ढाई दशक में यातायात का 400 गुना बढ़ गया दबाव

औद्योगिक नगरी कोरबा जिले में कोयला खदानों और नए प्लांटों के विस्तार के चलते पिछले ढाई दशक में यातायात का दबाव लगभग 400 गुना बढ़ चुका है। कोयला परिवहन में ही 4,000 से अधिक भारी वाहन रोजाना सड़कों पर दौड़ रहे हैं, इसके बावजूद पुलों की क्षमता बढ़ाने या नए पुल बनाने पर संबंधित विभाग ने कभी ध्यान नहीं दिया।


लगभग 40 साल पुराने कुदुरमाल पुल पर मरम्मत के अभाव में इसका स्लैब बैठ गया, जिसके बाद इसे बंद करना पड़ा। इससे कोरबा, बिलासपुर, रायगढ़ और जशपुर जाने वालों को लगभग 50 किलोमीटर अधिक दूरी तय करनी पड़ रही है।

👉 बालको का बेलगिरी पुल भी हुआ छतिग्रस्त

बालको क्षेत्र का बेलगिरी नाले पर बना पुल भी चौबीसों घंटे भारी वाहनों के दबाव में रहता है। समय रहते मरम्मत नहीं होने से यह बुरी तरह जर्जर हो चुका है और किसी भी वक्त इसे बंद करना पड़ सकता है। शहर से बाहर जाने वाले कई अन्य पुल-पुलिया भी इसी स्थिति में हैं।

👉 ट्रांसपोर्टरों और जनता को हो रहा भारी नुकसान

अगर यह पुल भी बंद हो गया तो जिले की आबादी के साथ-साथ उद्योगों और ट्रांसपोर्ट कारोबार पर बड़ा असर पड़ेगा। पहले से ही परिवहन कंपनियां अतिरिक्त दूरी तय करने से भारी नुकसान झेल रही हैं।
उल्लेखनीय हैं की कुछ वर्ष पहले तीन नए पुलों भिलाईखुर्द-सर्वमंगला, बालको-रिसदी रोड, परसाभाटा-ध्यानचंद चौक के निर्माण के लिए करीब 66 करोड़ का प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन फंड स्वीकृत नहीं हुआ। संबंधित विभाग अब भी फंड की कमी का हवाला दे रहा है।
जिले को हर साल लगभग 800 करोड़ रुपये डीएमएफ फंड मिलता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस राशि का सही उपयोग किया जाए तो पुलों की बदहाली दूर की जा सकती है, लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के कारण जनता को परेशानी झेलनी पड़ रही है।