रायपुर/ रायपुर शहर के डंगनिया इलाके में खदान बस्ती है। यहां श्रमिकों के 2 दर्जन से अधिक परिवार रहते हैं। कोई मकान बनाने में ईंटें ढोने का काम करता है, तो कोई घरों में रोजमर्रा का काम। मगर अब सब कुछ बंद है। टीम यहां की गलियों में पहुंची तो मजदूरों की जुबां पर वो दर्द आया जो लॉकडाउन की वजह से उपजे हालातों ने इन्हें दिया है। वो दर्द जो अमूमन सरकार में बैठे जिम्मेदार या तो सुन नहीं पाते या शायद सुनना नहीं चाहते।

राकेश लोधी ने अपनी समस्या बताते वक्त कहा- क्या बताऊं, बहुत तकलीफ है। हफ्तों से सब्जी नहीं खाई श्रमिकों ने बताया कि सरकारी मदद के नाम पर मुफ्त चावल मिलता है। कैमरे पर ये पूछने लगे कि क्या यही काफी है ? मकान बनाने वाले मिस्त्रियों की हेल्परी करने वाले राकेश लोधी ने बताया कि कभी पानी में डुबाकर तो कभी नमक के साथ चावल खा लेते हैं, क्यों सब्जी खरीदने के लिए हमारे पर पैसे नहीं है। 10 से 15 हजार रुपए की उधारी हो चुकी है, अब उधार देने वाले भी मना कर रहे हैं। जिनके लिए काम करते थे, वो कह देते हैं हमारा काम बंद है हम कहां से दें। बहुत दिक्कतें हैं हम क्या क्या बताएं।

गोदावरी तारक ने बताया कि उनका परिवार 15 हजार रुपए का कर्ज लॉकडाउन के दौरान ले चुका है। सरकार के लोग हमारी तरह जीवन जी कर देखें गोदावरी तारक रायपुर के सुंदर इलाके में बन रहे कॉम्प्लेक्स में मजदूरी का काम कर रही थीं। होली त्योहार के पहले छुट्टी कर दी गई और इसके बाद लॉकडाउन लग गया। गोदावरी ने बताया कि रोजी के जो 150 से 200 रुपए मिलते थे, वो मिलने बंद हो गए। घर के खर्च को दूसरों से रुपए मांगकर चलाया, हम हालत खराब हो चुकी है। हमें बिना मजदूरी के कुछ नहीं मिलता, हम कैसा जीवन जी रहे हैं, जी कर देखें सरकार के लोग। दाल, सब्जी कुछ नहीं है घरों में। हम जैसों को कुछ आर्थिक मदद मिलनी चाहिए।

इस महिला को काम से निकाल दिया गया, दिन-रात अब इसी चिंता में बीत रहे हैं कि आगे क्या होगा। मालिकों ने कह दिया कोरोना फैला है, काम पर मत आना इसी बस्ती में रहने वाली एक महिला ने बताया कि वो रायपुरा इलाके में कुछ परिवारों के घर पर काम करने जाती थी। मगर लॉकडाउन लगते ही उसे काम से निकाल दिया गया, मालिकों ने कह दिया कि कोरोना फैल रहा, तुम अब काम पर मत आना। महिला ने बताया कि पिछले कुछ महीनों में घरों का काम करके जो रुपए जमा किए थे अब उसी से घर चल रहा है, लॉकडाउन यूं ही चलता रहा तो पता नहीं हमारा गुजारा कैसे होगा।

मुन्नी बाई की शाम इसी तरह गुजरती है। लोगाें की गालियां सुनने के बाद चूल्हा जलता है मुन्नी प्रजापति छोटी मूर्तियां बनाकर बेचतीं थीं, दो महीने से इनका काम बंद पड़ा हुआ है। घर पर सिलेंडर है मगर अब रोज चावल चूल्हे पर पकातीं हैं, क्योंकि सिलेंडर को रीफिल कराने के लिए इनके पास पैसे नहीं हैं। आस-पास के पेड़ों की सूखी टहनियों को काटती हैं, ताकि चूल्हा जल सके जिनके पेड़ होते हैं वो गालियां देते हैं, ये सब सहने के बाद घर पर चूल्हा जलता है। मुन्नी चाहती हैं कि सरकार ऐसे गरीब परिवारों को सिलेंडर, या किसी तरह से पैसों से सब्जियां देकर मदद कर दे।

शांति साहू के घर में छोटे बच्चे भी मन मारकर जीने को मजबूर हैं। कोरोना तो बाद में मारेगा पहले ये बदहाली मार देगी शांति साहू, मैरिज हॉल में जाकर सब्जियां काटने, हलवाई की मदद करने की मजदूरी करती हैं। इनका काम भी बंद पड़ा है। शांति ने बताया कि जैसे तैसे कर्ज लेकर परिवार चला रहे हैं, घर में तीन छोटे बच्चे हैं, ये खाने-पीने की चीजें मांगते हैं तो इन्हें गुस्से में हम पीट देते हैं, कहां से लाकर देंगे। हफ्ते दर हफ्ते लॉकडाउन बढ़ रहा है, और हमारी परेशानी भी। कोरोना बीमारी से शायद हम बाद में मरेंगे, मगर ये बदहाली हमें पहले मार देगी।

बस्ती के सभी युवाओं का रोजगार लॉकडाउन की वजह से ठप है। कोई आर्थिक मदद या कम से जरूरतों को पूरा करे सरकार श्रमिक संगठन से जुड़े शीतल पटेल ने बताया कि बस्तियों में रहने वाले ये ज्यादातर श्रमिक रोजी छिन जाने से परेशान हैं। सरकार को चाहिए कि ऐसे कुछ लोगों की या तो आर्थिक मदद कर दे, या कुछ जरूरतें ही पूरी कर दे। ये संभव भी है मगर अफसोस की इस तरह की कोई पहल होती कभी दिखी नहीं। लॉकडाउन लगाना संक्रमण रोकने के लिहाज से जरूरी है तो श्रमिकों की सोचना भी सरकार की जिम्मेदारी है।