जशपुर के बगीचा गांव का मामला ,हफ्ते भर के भीतर दो पहाड़ी कोरवा की मौत ,बोले बीएमओ शरीर मे नहीं था खून ,डीपीओ ने कहा योजना के दायरे से थी बाहर जाती थी स्कूल
हसदेव एक्सप्रेस न्यूज जशपुर। राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र का कागजों में दर्जा हासिल करने वाले विशेष संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवाओं की जान की शासन को परवाह नहीं है। कुपोषण एवं अनुवांशिक बीमारी ने एक बार फिर 14 वर्षीय पहाड़ी कोरवा किशोरी को मौत के आगोश में सुला दिया। पहाड़ी कोरवाओं की मौत पर स्वास्थ्य एवं महिला बाल विकास विभाग दोनों एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ अपने दायित्वों से इति श्री कर गए। सीएमएचओ ने जहाँ कुपोषण को मौत की प्रमुख वजह बताई तो वहीं डीपीओ महिला एवं बाल विकास विभाग किशोरी को सुपोषण योजना के दायरे से बाहर बताते हुए अनुवांशिक बीमारी से ग्रसित होने की बात कह दायित्वों से किनारा कर किया।

मामला आदिवादी बाहुल्य जशपुर जिले के बगीचा की है । वार्ड क्रमांक 10 स्थित पहाड़ी कोरवा बस्ती में सनु कोरवा अपने 5 बच्चों के साथ जीवन यापन कर रहा था । जिसमें से एक 15 वर्षीय किशोरी पद्मा सोमवार को बीमारी से जंग लड़ते हुए जिंदगी की जंग हार गई। यहाँ बताना होगा कि 1 हफ्ते पहले भी ईलाज के अभाव में इसी बस्ती की एक वृद्ध महिला की मौत हो गई थी।पहाड़ी कोरवा बच्ची की मौत के बाद स्वास्थ्य एवं महिला एवं बाल विकास विभाग दोनों जिम्मेदारी एवं जवाबदेही से बचते नजर आए। बीएमओ के फीडबैक के आधार पर सीएमएचओ पुरषोत्तम सुथार कुपोषण को मौत की प्रमुख वजह बता रहे तो वहीं डीपीओ महिला एवं बाल विकास विभाग अजय शर्मा ने बच्ची को सुपोषण अभियान के दायरे से ही बाहर बता दिया। डीपीओ ने तर्क दिया कि न तो वो नोनिहाल (6 साल की आयु की )है न ही शाला त्यागी किशोरी। जिससे उसे योजना का लाभ दिया जा सके । इस तरह दोनों अधिकारी जिम्मेदारी से बचते रहे। जानकारी के अनुसार लंबे अर्से से सनु कोरवा का परिवार कुपोषण का दंश झेल रहा है।15 वर्षीय पद्मा भी लंबे समय से कुपोषण का शिकार थी।4 दिन पहले पहाड़ी कोरवा बच्ची की तबियत अधिक खराब हो गई, शरीर सूजकर पीला पड़ गया था।उसे सांस लेने में भी काफी तकलीफें हो रही थी।रविवार को पद्मा को उल्टी होने लगी और अगले दिन बुखार ने उसे जकड़ लिया।सोमवार को पीड़ित बच्ची की सांसें तेज चलने लगी और परिजन स्थानीय लोगों की मदद से बच्ची को बगीचा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर पँहुचे जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया।सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के बीएमओ आरएन दुबे ने बताया कि बच्ची के शरीर में खून की कमी थी और उसे उल्टी व बुखार की शिकायत थी,यहाँ लाते तक उसकी मौत हो चुकी थी।वार्डों में स्वास्थ्य टीम भेजकर सघन जांच कराई जाएगी।
बोलीं पार्षद और भी बच्चे कुपोषित हैं जिनका सर्वे आवश्यक
वार्ड पार्षद श्रीमती प्रेरणा थवाईत ने बताया कि उन्हें रात में सूचना मिली जिंसके बाद उन्होंने तत्काल परिजनों से मुलाकात की और सहायता राशि देकर देर रात 12 बजे शव के साथ परिजनों को उनके गृहग्राम ब्लादर पाठ रवाना किया।उन्होंने बताया कि यहां और भी बच्चे कुपोषित हैं जिनका सर्वे कर उन्हें पोषित करना आवश्यक है।उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि एक हफ्ते में यह पहाड़ी कोरवा परिवार से दूसरी मौत है।इसके पूर्व एक पहाड़ी कोरवा वृद्ध महिला ने ईलाज के अभाव में दम तोड़ दिया था।उक्त बस्ती के साथ विभिन्न वार्डों में स्वास्थ्य जांच कराते हुए उपचार की त्वरित पहल प्रशासन को करनी चाहिए।उन्होंने कहा कुपोषण के खिलाफ कागजी कार्यवाही से हटकर जमीनी स्तर पर इसे दुरुस्त करने की आवश्यकता है।
सवाल छोड़ गई पद्मा, पीड़ित परिवार गृह ग्राम रवाना
फिलहाल मृतिका पद्मा ने अपने पीछे कई सवाल छोड़ दिए हैं।जिसका जवाब किसी के पास नहीं है।अब देखना होगा कि शासन प्रशासन कुपोषण के विरुद्ध जमीनी व्यवस्था को कब मजबूत करता है ताकि फिर किसी पद्मा की मौत न हो और उसे ईलाज की जरुरत न पड़े।पीड़ित परिवार मृतिका के अंतिम संस्कार के लिए गृहग्राम ब्लादर पाठ रवाना हो गया है।
तो क्या कागजों में दूर किया जा रहा कुपोषण
राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र पहाड़ी कोरवा बच्ची की मौत ने कुपोषण के विरुद्ध चलाए जा रहे तमाम अभियान एवं दावों पर सवालिया निशान लगते हुए शासन प्रशासन को कटघरे में ला खड़ा किया है।दिल झकझोर देने वाली घटना ने न केवल सुपोषण अभियान बल्कि कुपोषण के विरुद्ध कार्य करने वाले मैदानी अमलों की पोल खोल कर रख दी है।यूँ तो हर गली मोहल्ले में आज कुपोषित बच्चों की पहचान की जाती है।महिला बाल विकास विभाग एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा शासन की योजनाओं के तहत उन्हें पोषण आहार (रेडी टू ईट )के साथ सुपोषित (गर्म)भोजन दिया जाता है।जिसके बाद बड़ा सवाल यह है कि मृतक पहाड़ी कोरवा बच्ची लंबे समय से कुपोषित क्यों थी उसका कुपोषण दूर क्यों नहीं किया जा सका। क्या बाल्यावस्था में उसे पोषण आहार सहित महिला एवं बाल विकास विभाग की सेवाएं नहीं मिकी। महिला बाल विकास एवं स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त भूमिका यहां क्यों देखने को नहीं मिली।सालाना 25 करोड़ रुपए से अधिक का आबंटन खर्च कर कुपोषण दूर करने के दावे क्या कागजों तक सीमित क्यों रह गए। तमाम ऐसे सवाल हैं जो मृतिका पद्मा अपने पीछे छोंड़ गई।
वर्जन
कुपोषण से मौत होने की संभावना
कुछ दिन पूर्व एक पहाड़ी कोरवा महिला की भी मौत हुई थी। बच्ची की मौत के स्पष्ट कारणों का पता लगाया जा रहा है। प्रथम दृष्टया खून की कमी अर्थात कुपोषण से मौत होने की सूचना मिल रही है।
पी .सुथार ,सीएमएचओ ,जशपुर
वर्जन
सुपोषण अभियान के दायरे में नहीं आती,अनुवांशिक बीमारी से हुई होगी मौत
मृतिका किशोरी सुपोषण अभियान के दायरे से बाहर स्कूली छात्रा थी।कुपोषण से मौत नहीं हुई होगी। यह जनजाति पिछले कुछ सालों से अनुवांशिक बीमारी से ग्रसित है। सम्भवतः इसी से बच्ची की मौत हुई होगी।
अजय शर्मा,डीपीओ मबावि जशपुर