छत्तीसगढ़ सरकार का बड़ा फैसला: नगरीय निकाय की संपत्तियों की बिक्री व बेस प्राइस तय करेंगे कलेक्टर

रायपुर। राज्य सरकार ने नगरीय निकाय की संपत्तियों को लेकर बड़ा फैसला किया है। इसके तहत अब नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में अचल संपत्तियों की बिक्री करने के अधिकार मंत्रालय से लेकर कलेक्टरों को सौंप दिया गया है। नए आदेश के मुताबिक नगर निगमों में 10 करोड़, नगरपालिकाओं में 4 करोड़ और नगर पंचायतों में डेढ़ करोड़ तक की संपत्तियों का फैसला कलेक्टर कर सकेंगे।

इसके लिए जिला कार्यालय में एक नोडल अफसर भी नियुक्त किया जाएगा जो नस्तियों का परीक्षण कर अनुमोदन के लिए कलेक्टर को पेश करेगा। नए निर्णय से राजधानी रायपुर समेत कई छोटे – बड़े नगरों से बिक्री के इंतजार में पड़ी दुकानों की नीलामी हो सकेगी। इससे निकायों को अच्छी आय बढ़ने की उम्मीद है।
खास बात यह है कि इस तरह का अधिकार शासन ने पहली बार रायपुर कलेक्टर को गोल बाजार के संबंध में दिया था। लेकिन अब इसे पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया है। प्रदेश में अब तक नगरीय निकाय अपनी प्रापर्टियों पर दुकानें आदि बनाकर इसे बेचने के लिए बेस प्राइस तय करते थे। जैसे किसी दुकान की कीमत 30 लाख तय की गई।
खरीदने के इच्छुक लोग बंद लिफाफों में कोई 30 लाख, कोई 30 लाख एक रुपए या 30 लाख दस हजार या 35 लाख रुपए भरकर जमा करते थे। फिर इसका टेंडर खोलने राज्य शासन को यानी मंत्रालय भेजा जाता था। लेकिन ज्यादातर मामलों में अफसर रूचि ही नहीं लेते थे। बेस प्राइज से अधिक कीमतें देखकर वे कुछ भी आपत्तियां लगाकर बिक्री रोक देते थे।राजधानी में ही सुभाष स्टेडियम, अश्विनी नगर, डंगनियां समेत कई स्थानों पर दुकानों की बिक्री रूकी पड़ी है। इनमें निगम के करोड़ों रुपए निर्माण में तो फंस गए, लेकिन बिक्री न होने से पैसे वापस खजाने में नहीं आ सके। राज्य शासन ने कलेक्टर की व्यस्तता को देखते हुए इसका विकल्प भी निकाला है और एक नोडल अधिकारी बनाने का आदेश दिया गया है। कई दफे निकायों की जमीन नहीं रहती फिर भी वह उस पर प्रापर्टी खड़ी करके बेच देता है। या इस पर विवाद शुरू हो जाते हैं। नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने प्रदेश के कलेक्टरों, नगर निगमों के कमिश्नरों तथा नगर पालिकाओं व नगर पंचायतों के सीएमओ को इस संबंध में आवश्यक कार्यवाही करने को कहा है।

निकायों की आय बढ़ेगी, पारदर्शिता भी होगी

जानकारों का कहना है कि सरकार का यह फैसला काफी अच्छा है। इसमें और पारदर्शिता की जरूरत है। खेल तो बेस प्राइस तय करते वक्त भी होता है। बेस प्राइस के बाद बंद लिफाफों में कीमतें बुलाई जाती हैं। कुछ लोग चेन बनाकर मिल-जुलकर बेस प्राइस से कुछ ही अधिक कीमतें भरते हैं। इससे निकायों को कम आय होती है।इसलिए ओपन टेंडर होने चाहिए। ऑनलाइन टेंडर व नीलामी भी होनी चाहिए, ताकि देश के किसी भी कोने में बैठा व्यक्ति इसमें शामिल हो सके। नीलाम के साथ – साथ ऑनलाइन ही इच्छुक खरीददार कीमतें बढ़ाते चले। जैसे हर नीलामी दस-दस हजार रुपए से आगे बढ़े। इससे ऊंची कीमत पर प्रापर्टी बिकेगी।निकायों को अच्छी आय होगी। पारदर्शिता भी बनी रहेगी। मंत्रालय केवल नीति बनाने के काम तय सीमित रहे। समाचार पत्रों में जैसे बैंक डिफाल्टरों की प्रापर्टी नीलाम करने या प्राइवेट बिल्डर अपने मकान बेचने बड़े विज्ञापन जारी करते हैं। वैसे ही निकाय भी अपनी प्रापर्टी बेचने एक नहीं बल्कि सभी समाचार पत्रों में विज्ञापन जारी करें। ताकि ज्यादा लोग नीलामी में शामिल हो सकें।