विधानसभा चुनाव पांचों राज्यों के आए एग्जिट पोल ,जानें चुनाव विश्लेषक के नजरिए से कहाँ किसकी बन रही सरकार,किसको मिलेगी हार

रायपुर ।आज 30 नवंबर को तेलंगाना के विधानसभा चुनाव के साथ ही पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव संपन्न हो गए । 07 नवंबर से 30 नवंबर के दरमियान पूरे किए जाने थे, सभी राज्यों के चुनाव परिणाम 03 दिसंबर को घोषित किए जाने हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इन राज्यों के चुनावों का अपना महत्व है, यद्यपि राज्यों के चुनाव और केंद्र के चुनाव में मुद्दे और प्रभाव अलग होते हैं पर लोकसभा चुनाव से कुछ ही पहले हो रहे इन चुनावों से एक संकेत तो निकलेगा ही कि मोटे तौर पर देश के जनमानस में क्या चल रहा है क्योंकि ये पांच राज्य देश के अलग अलग भागों में स्थित है।

मिजोरम के जरिए पूर्वोत्तर भारत, छत्तीसगढ़ के जरिए मध्य भारत, तेलांगना के जरिए दक्षिण भारत, राजस्थान के जरिए पश्चिमोत्तर भारत और मध्य प्रदेश के जरिए पश्चिम मध्य भारत की राजनैतिक तासीर का अंदाज लगाया जा सकता है। भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के लिए यह चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है, इनके परिणाम दोनों दलों की लोकसभा चुनावों की तैयारियों पर निश्चित ही गहरा प्रभाव डालेंगे, इसलिए सभी की निगाहें इन चुनाव परिणामों पर लगी हैं।
मेरी भी उत्सुकता है और मेरे भी अपने विचार और समझ इन पांच राज्यों के चुनाव परिणामों पर है।
सबसे पहले बात पूर्वोत्तर भारत में स्थित छोटे से, पर बेहद खूबसूरत राज्य , प्रकृति की गोद में संरक्षित मिजोरम की जहां विधानसभा की कुल 40 सीटें हैं जो राज्य के 08 जिलों में अवस्थित हैं। इन 40 सीटों में से 39 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्गों के लिए आरक्षित है जबकि आइजोल पूर्व की एकमात्र सीट अनारक्षित है। 2018 के आम चुनाव में मिजोरम की क्षेत्रीय पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट ने जोरामथांगा के नेतृत्व में कांग्रेस की दस वर्षों की सरकार को बुरी तरह से पराजित कर सत्ता में वापसी की थी, जो एन डी ए की घटक दल है। उक्त चुनाव में एम एन एफ को 26 सीटें, एक अन्य क्षेत्रीय पार्टी जोरम पीपुल्स मूवमेंट पार्टी को 08 सीटें, कांग्रेस को 05 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा ने भी एक सीट जीतकर अपना खाता खोला था।
2023 के चुनाव में एन डी ए के दोनों घटक दल एम एन एफ और भाजपा बिना गठबंधन के आमने सामने हैं। एम एन एफ, कांग्रेस और जेड एम पी ने सभी 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं जबकि भाजपा ने 23 उम्मीदवारों को चुनाव में उतारा है वहीं आम आदमी पार्टी ने भी प्रतीकात्मक रूप से 04 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इस प्रकार से इस छोटे से राज्य में बहुकोणीय मुकाबला हो रहा है। पिछली बार की तरह से सत्ता विरोधी लहर बहुत प्रबल दिखाई नहीं देती है, यद्यपि सत्तारूढ़ एम एन एफ के खिलाफ असंतोष तो है पर कांग्रेस अकेले उस असंतोष को लहर में बदलने पूरी तरह से सक्षम नहीं दिख रही उसे राज्य की दूसरी प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी जेड एम पी से चुनाव पश्चात गठबंधन करके ही सत्ता हासिल हो सकती है।
अब बात हमर अपन छत्तीसगढ के। मध्य भारत में स्थित देश का तेजी से विकसित होता राज्य छत्तीसगढ़ ने कई मानकों पर देश में अपना अलग मुकाम बनाया है और दुनिया भर का ध्यान आकर्षित किया है। छत्तीसगढ़ खनिज प्रधान और प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण राज्य है जो बेहद मेहनतकश, खुशमिजाज लोगों का प्रदेश है। छत्तीसगढ़ की राजनैतिक तासीर बेहद शांतिप्रिय है। यहां के मतदाता अति उग्र या मुखर नही है पर बेहद जागरूक और संवेदनशील हैं। वो बेहद खामोशी से ही बड़े परिवर्तन को अंजाम देने वाली जनता है। 2003 और 2018 के विधानसभा चुनाव इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। उक्त दोनों चुनावों में प्रदेश के जागरूक मतदाताओं ने बड़ी ही खामोशी और प्रभावी ढंग से सत्ता परिवर्तन को अंजाम दिया था तब की दोनों सरकारों को इसका एहसास ही नहीं था।
2018 में प्रदेश की जनता ने पन्द्रह वर्षों से काबिज डॉक्टर रमन सिंह जी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को बुरी तरह से सत्ता से बेदखल कर कांग्रेस को सत्ता दी थी। तब 90 विधानसभा सीटों में से 68 सीटें कांग्रेस को मिली थीं, 15 वर्षों से सत्ता में काबिज भाजपा महज़ 15 सीटों पर सिमट गई थी जबकि बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन कर कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी का गठन कर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी जी स्वयं को किंगमेकर की भूमिका में चाहते थे पर महज़ 07 सीटों पर सिमट गए थे, बसपा 02 और जे सी सी जे को 05 सीटें मिली थीं। बड़ा जनादेश प्राप्त कांग्रेस सरकार ने भूपेश बघेल जी के नेतृत्व में पूरे ठसक से सत्ता संचालन किया। जहां एक ओर सरकार पूरे शबाब और रुआब से चलती रही वहीं प्रमुख विपक्षी दल भाजपा इन पांच वर्षों में बिखरी बिखरी सी पड़ी दिखी, भूपेश सरकार के विरुद्ध कोई चेहरा नही था, ठोस रणनीति का अभाव स्पष्ट दिखा, भाजपा कोई बड़ा जनांदोलन इस सरकार के खिलाफ खड़ा करती नही दिखी। कोविड महामारी के दौर में भी पार्टी जनता के लिए स्पष्ट खड़ी नही दिखी, कुलजमा विरोध की रस्म अदायगी ही इन पांच वर्षों में भाजपा की तरफ से दिखाई पड़ी। इसका बड़ा लाभ सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने उठाया और जनहित में, किसानों के हित में अनेक कार्यों को अंजाम दिया, छत्तीसगढ़ की अस्मिता, भाषा, व्यंजन, लोककला, संस्कृति को नई पहचान दिलाते हुए अपने आधार को बढ़ाने में सफलता पाई। इस कार्यकाल में भूपेश सरकार के विरुद्ध जमीन में कोई बड़ा असंतोष देखने को नहीं मिला, हां उनके कई जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लोगों में नाराजगी जरूर स्पष्ट दिखी, जो चुनाव परिणामों में परिलक्षित भी होती दिखेगी और पिछली बार से कम सीटें मिलेंगी।
अब आते हैं दक्षिण भारत के हमारे पड़ोसी राज्य तेलांगना के चुनावी राजनीति पर। पहले एक नज़र 2018 के चुनाव परिणाम पर डालते हैं। यह चुनाव कांग्रेस ने चार दलों का महागठबंधन बनाकर लड़ा था, पर बुरी तरह से परस्त हुई थी। तब की टी आर एस ने 119 सदस्यों की विधानसभा सीटों में से एकतरफा 88 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस गठबंधन को 21 जिसमें अकेले कांग्रेस की 19 सीटें आई थी, ए आई एम आई एम को 07 सीटें, निर्दलियों ने 02 सीटें जबकि एक सीट भाजपा को मिली थीं।तेलांगना में पिछले दस वर्षों से अर्थात् अपने अस्तित्व से ही वहां के. चंद्रशेखर राव की पार्टी टी आर एस अब इसका नाम बी आर एस हो चुका है का शासन जारी है। दस वर्षों की सत्ता विरोधी लहर वहां दिखाई देती है। वहां की जनता सत्तारूढ़ पार्टी के भ्रष्टाचार, अधूरे विकास कार्यों और परिवारवाद से त्रस्त दिखाई पड़ती है और वह अन्य विकल्पों पर विचार करती दिखी। पहले उसने भाजपा में वह विकल्प तलाशा पर उसकी सारी निगाह अब कांग्रेस पर टिक गई है। कांग्रेस अपने प्रदेशाध्यक्ष रेवंत रेड्डी के नेतृत्व में पूरी एकजुटता और दमखम से लड़ाई लड़ रही है। कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार के मार्गदर्शन में सारे रणनीतिक हथियारों से लैस कांग्रेस इस बार सत्ता से कम पर रुकती नहीं दिखती। उसे आंध्र की वाई एस आर, तमिलनाडु की द्रमुक का भी पूरा समर्थन है। वहीं साल भर पहले तक खुद को बी आर एस की प्रबल विकल्प बताने वाली भाजपा के तेवर चुनाव आते आते ढीले पड़ गए और वह मुकाबले से लगभग बाहर हो चुकी है तथा अपने प्लान बी पर जुट गई है कि किसी भी तरह से तेलांगना में कांग्रेस की सरकार नहीं बनने देना है इसके तहत वह रणनीतिक रूप से बी आर एस को सहयोग की तरफ बढ़ती दिख रही है। इसका उसे बड़ा लाभ लोकसभा चुनावों में राव के रूप में नए साथी का मिलना होगा। वहीं असुदुद्दीन ओवैसी की ए आई एम आई एम भी कांग्रेस की बनिस्पत बी आर एस के साथ ही रहना चाहती है, यानी बी आर एस को अपनी सत्ता बचाने में भाजपा और ए आई एम आई एम का पूरा सहयोग मिल रहा है वहीं कांग्रेस अपने स्वयं के दम पर बी आर एस सरकार से सीधी लड़ाई लड़ रही है। यकीनन चुनाव बेहद कठिन, दिलचस्प होगा।
अब आते हैं रंगीले राजस्थान पर। यह प्रदेश अपने गौरवशाली इतिहास, संस्कृति और परंपरा के लिए विख्यात है। राजस्थान की राजनीतिक परिस्थितियां भिन्न हैं। यहां पिछले तीस पैंतीस वर्षों से हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन का निर्बाध चलन है। एक और दिलचस्प बात यह है कि यहां की जनता दोनों प्रमुख पार्टियों के अलावा निर्दलियों और अन्य छोटी पार्टियों को भी जमकर अपना आशीर्वाद देती है, जिससे ये विधायक निर्णायक भूमिका में रहते हैं। 2018 के आम चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा की वसुंधरा सरकार को हराकर अशोक गहलोत के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। चुनाव परिणाम इस प्रकार से रहे थे, कांग्रेस 99 सामान्य बहुमत से 02 सीटें कम, भाजपा को 73 सीटें, बसपा को 06 सीटें, आर एल पी को 03 सीटें, सी पी आई एम को 02 सीटें,बी टी पी को 02 सीटें, आर एल डी को 01 सीट तथा निर्दलियों ने 13 सीटें जीती थीं। शुरुआत के साढ़े तीन वर्षों में गहलोत सरकार अपने आंतरिक अवरोधों में ही उलझी रही, ऊपर से कोविड़ महामारी ने भी व्यवधान उत्पन्न किया , पर पिछले डेढ़ वर्षों में गहलोत सरकार ने बेहद सक्रियता से अपनी छवि को जनता में सुधारा है, उनकी सारी योजनाएं जनता की पहुंच में रहीं। चिरंजीवी योजना ने तो सरकार को बड़ी बढ़त दिलाई है। अन्य लोकलुभावन योजनाओं ने भी सरकार की छवि को सुधारा है, पर पेपर लीक मामले, महिलाओं पर अत्याचार, मंत्री और विधायकों के बेलगाम कारनामे, सांप्रदायिक तनाव ने सरकार को बैकफुट पर भी लाया है। एन चुनावों से पहले गहलोत और पायलट की दिखावी एकता को पहले जनता में लाना था। वहीं भाजपा भी अपने आंतरिक अवरोधों में ही ज्यादा उलझी रही, हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन की प्रथा को ध्यान में रखते हुए वह गहलोत सरकार के विरुद्ध कोई भी बड़ा जनांदोलन खड़ा करने में विफल रही, जनाक्रोश यात्रा, पेपर लीक मामले में दिखावटी विरोध ने जनता में कोई भी प्रभाव नहीं छोड़ा। केंद्रीय आलाकमान द्वारा वसुंधरा राजे को पांच वर्षों तक किनारा करते रहना भी भाजपा के लिए सुविधाजनक कतई नहीं है, एन चुनाव में जरूर भाजपा आलाकमान ने गलती सुधारते हुए राजे को महत्व देने का प्रयास किया है पर इसका असर कितना होगा देखना होगा। पूर्व की तरह इस चुनाव में भी निर्दलियों और अन्य छोटी छोटी पार्टियों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी तय दिख रहा। इस बार हर पांच वर्षों में सत्ता परिवर्तन का रिवाज बदलना तो देखना ही होगा पर एक बात तो मुझे लगता है कि बदलती दिख रही है, अतीत में जब भी गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी है तो वह सामान्य बहुमत से और दूसरे दलों , निर्दलियों के सहयोग से बनी है पर जब वह सत्ताच्युत हुई है तो बहुत बुरी तरह से हारकर। इस बार मुझे इस रिवाज में बदलाव साफ दिख रहा है, अर्थात् इस बार सत्ता संघर्ष भीषण है। दोनों खेमे पूरे चाक चौबंद से चुनावी मैदान में हैं, एक एक सीट पर मुकाबला बेहद कठिन और दिलचस्प है।
और अंत में सबसे बड़े चुनावी राज्य मध्य प्रदेश की बात जहां विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं। देश के दिल के नाम से मशहूर मध्य प्रदेश हमारा मूल प्रदेश है। इससे ही अलग होकर हमारा छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया है। देश में मध्य प्रदेश की अपनी अलग पहचान और महत्व है। मध्य प्रदेश में भी खनिज संसाधनों की भरमार है, वन्य अभ्यारण, अनेक प्राचीन और सिद्ध मंदिर यहां हैं, पर्यटन के नक्शे में भी मध्य प्रदेश का अपना विशिष्ठ स्थान है। मध्य प्रदेश की राजनीति भी द्वि दलीय रही है। यहां भाजपा और कांग्रेस में ही सत्ता हस्तांतरण जनता के मतदान के द्वारा होता आया है। 2018 के चुनाव में मध्य प्रदेश की जनता ने कांग्रेस और भाजपा में बेहद तीखी, नजदीकी लड़ाई में कांग्रेस को सत्ता सौंपी थी। 2018 के अंतिम परिणाम में कांग्रेस को 114 सीटें मिली थीं सामान्य बहुमत से 02 सीटें कम जबकि भाजपा को 109 सीटें मिली थीं और निर्दलीय 03 सीटें जीतने में कामयाब रहे, बसपा को जहां 02 सीटें मिली वहीं एस पी को 01 तथा आर एल एस पी को भी 01 सीट हासिल हुई थी।कमलनाथ जी के नेतृत्व में सरकार पंद्रह महीने ही चली थी कि कोविड महामारी के दौरान ही कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में 22 विधायकों का एक धड़ा कांग्रेस से अलग होकर भाजपा से हाथ मिला लिया और कांग्रेस सरकार बहुमत के अभाव में गिर गई तथा पिछले दरवाजे से पुनः शिवराज सिंह चौहान जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार भोपाल में काबिज हो गई। 2023 के आम चुनाव अनेक मामले में भिन्न है। इस बार शिवराज सरकार के खिलाफ लोगों में सत्ता विरोधी भावना और गहरी है। वहीं भाजपा में खेमेबाजी भी अपने चरम पर है, मुख्यमंत्री के ही अनेक दावेदार देखे सुने जा सकते हैं। वहीं सिंधिया के कांग्रेस से अलग होने पर दिग्विजय सिंह जी और कमलनाथ जी की जुगलबंदी से कांग्रेस बेहद मजबूती से, एकजुटता से लड़ती दिख रही है। सिंधिया के चंबल संभाग में ही कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य को बेबस कर दिया है जिसे भांपकर ही भाजपा आलाकमान ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को चुनावी मैदान में उतारा है। उधर बुंदेलखंड में उमा भारती की नाराजगी भी साफ तौर पर दिखाई देती है। कुलजमा खेमों में बिखरी भाजपा और एकजुट कांग्रेस में सत्ता हेतु सीधा संघर्ष है, मध्य प्रदेश की जनता ने ही फैसला करना है कि वह किसे सत्ता की बागडोर सौंपेगी।
तो यह मेरी अपनी धारणा, आंकलन इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर है। निसंदेह यह चुनाव किसी भी दल के लिए आसान नहीं है, जनता भी दलों के कथनी करनी में अंतर की वजह से उनसे बहुत उत्साही नही है बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त मतदान के अधिकार का सजगता से प्रयोग ही इस चुनाव की बुनियादी बात है, राजनैतिक दलों को अब जनता की भावना के अनुचित दोहन से बचना चाहिए और उनके हित में इस लोकतंत्र के पर्व को ढालना चाहिए। अंतिम छोर तक लोकतंत्र और सरकार की पंहुच ही परिपक्व लोकतंत्र माना जायेगा, अन्यथा वर्षो का चुनावी दिखावा इस बार भी सत्ता का मुखौटा बदलाव ही बनकर रह जायेगा।राजनैतिक दलों को प्रण करना होगा कि इस पंच वर्षीय कार्यकाल में वे आम जनता की सभी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर लेंगे ताकि विकास के दूसरे सोपान का दौर शुरू किया जा सके। जनता को भी झूठे वादे करने वालों को सदैव के लिए बाहर बैठा देना चाहिए और जाति धर्म से ऊपर उठकर, बिना प्रलोभन के पढ़े लिखे और निर्विवाद लोगों का चुनाव करना चाहिए।
मेरी राजनैतिक समझ के अनुसार 03 दिसंबर को चुनाव परिणाम इस तरह से आने वाले होंगे।

  1. मिज़ोरम 40 सीटें
    M N F 15 से 18
    Cong. 12 से 15
    Z P M 05 से 07
    B J P 00 से 01
    I N D 00 से 01.
  2. छत्तीसगढ़ 90 सीटें
    Cong. 55 से 60
    B J P. 24 से 29
    B S P. 02 से 03
    J C C J. 00 से 01
    G G P. 00 से 01
    I N D. 00 से 01.
  3. तेलांगना 119 सीटें
    Cong. 57 से 62
    B R S. 50 से 55
    AIMIM. 05 से 07
    B J P. 02 से 03
    IND. 01 से 02.
  4. राजस्थान 199 सीटें
    B J P. 102 से 109
    Cong. 75 से 83
    I N D.
    +
    Others 15 से 21.
  5. मध्य प्रदेश 230 सीटें
    Cong. 129 से 136
    B J P. 81 से 87
    I N D.
    +
    Others. 10 से 13.

मेरे उपरोक्त आंकलन और विश्लेषण से यही निष्कर्ष निकलता है कि पांच राज्यों के इन विधानसभा चुनावों के परिणामों में दो राज्यों यथा छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस आसानी से सरकार बनाने जा रही है, जबकि राजस्थान में भाजपा की सरकार बनती दिख रही है, वहीं तेलांगना में बेहद कड़ा मुकाबला है और कांग्रेस कमर कस ले कोई सेल्फ गोल न करे तो वह सामान्य बहुमत से सरकार बना सकती है, अन्यथा बी आर एस भाजपा और ए आई एम आई एम की प्रत्यक्ष मदद से फिर से अपनी हैट्रिक सरकार बना सकती है, मिजोरम में तो त्रिशंकु विधानसभा के हालात दिख रहे हैं। कांग्रेस के रणनीतिकारों को अभी से वहां की दूसरी क्षेत्रीय पार्टी ZMP से चर्चा कर गठबंधन की सरकार बनाने की पहल शुरू कर देनी चाहिए, वरना भाजपा वहां MNF के साथ मिलकर खेल कर जायेगी और कांग्रेस हाथ मलती रह जायेगी। लब्बोलुआब यह है कि इन चुनावी पांच राज्यों में से दो सीधे सीधे कांग्रेस की झोली में जा रहे, एक राज्य भाजपा के साथ होता दिख रहा, और बाकी के दो राज्यों में दोनों ही पार्टियों की रणनीतिक भूमिका दांव पर है। दोनों ही पार्टियों को 2024 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर ही अपनी राजनैतिक चालें चलनी होंगी, क्योंकि इसी कौशल से वह अपने प्रतिद्वंदी पर मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर सकती है।
सादर,
परमजीत बॉबी सलूजा,
राजनैतिक विश्लेषक,
बिलासपुर छत्तीसगढ़
9424142680,
9770034948.
29.11.23