कोरबा। कोरबा जिले की खास और महत्वपूर्ण विधानसभा कोरबा की सीट पर आखिरकार लखनलाल देवांगन ने 1000-2000 नहीं बल्कि 25629 मतों से बड़ी और ऐतिहासिक जीत हासिल की है। लखनलाल देवांगन के सिर पर जीत का सेहरा सज गया है और अपने सीधे-सरल-सहज व्यक्तित्व से वन-टू- का फोर कर चुके हैं। माय नेम इज लखन…..के गानों की गूंज समर्थकों का उत्साह बढ़ा रही है।
किसी प्रत्याशी की जीत में टिकट फाइनल होने से लेकर पूरे चुनाव के दौरान उसके लिए की जाने वाली जमीनी मेहनत ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। लखन लाल देवांगन के विजय रथ में दो नाम शुरू से सारथी के तौर पर चर्चित रहे और इन्होंने जब-जब कमान संभाली, लखनलाल को जीत का स्वाद चखाया। जोगेश लाम्बा की कुशल रणनीति ने महापौर तो अशोक चावलानी ने कटघोरा का विधायक बनवाया।भाजपा में प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अशोक चावलानी और जोगेश लाम्बा की जोड़ी ने अपने प्रदेश उपाध्यक्ष को फिर विधायक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
अपने ही लगे थे कमजोर करने,कोरबा छोड़ मनेन्द्रगढ़ चले गए
चुनाव के दौरान हुई इस बात को नकारा नहीं जा सकता और यह आंतरिक कटु सत्य भी है कि लखन लाल की जमीन कमजोर करने के लिए चुनिंदा लोग कोरबा छोड़ मनेन्द्रगढ़ में शिफ्ट हो गए थे, सूत्रों के मुताबिक यहां तक कि पार्टी कार्यालय के कम्प्यूटर ऑपरेटर तक को साथ ले गए। युवा नेता की अगुवाई में उसकी टीम मनेन्द्रगढ़ में लगी रही तो यहां लखन के हालात डगमगाने लगे थे। युवा मोर्चा की भी टीम शुरुआत में गायब रही। आम लोगों के बीच से यह बात भी निकली की लखन का प्रचार कमजोर है,प्रचार की कछुआ चाल है, कहीं भीड़ नहीं, शोर-शराबा नहीं है,और भी न जाने क्या-क्या…।
चावलानी बनाये गए चुनाव संचालक
इधर संगठन ने काफी विचार कर अशोक चावलानी को लखन का चुनाव संचालक बनाया तो लगने लगा कि अब नैया पार लगेगी। संचालक बनने के बाद चावलानी की रणनीति और जोगेश लाम्बा का बूथ मैनेजमेंट, वार्डो में सक्रिय टीम का गठन से लेकर गली मोहल्ले,घर-घर जाकर प्रचार ने जोर पकड़ा। लखन देवांगन भी खुद जमीनी और विश्वासी कार्यकर्ताओं, महिला मोर्चा अध्यक्ष वैशाली रत्नपारखी,उमादेवी सराफ,संजूदेवी राजपूत,मंजू सिंह आदि के साथ सघन जनसम्पर्क में लगे रहे। महापौर रहते कराए गए कार्यों और 15 साल की नाकामियों को जनता के बीच रखने का काम जोगेश ने भी किया तो चावलानी ने सामाजिक संगठनों में लखन के लिए पकड़ मजबूत की। चावलानी पर तोहमत भी लगे,कटाक्ष ने भी विचलित किया पर वे अपने अभियान में डटे रहे।
मनेन्द्रगढ़ से टीम अंतिम दौर में लौटी
इधर जब ऊपर से हालातों की रिपोर्टिंग ली गयी तब सच जानकर शीर्ष नेतृत्व ने डण्डा घुमाया और मनेन्द्रगढ़ का बहाना कर गई हुई टीम ने अंतिम दौर में वापसी की, यह न होता तो गाज गिरना तय था इस बात से वो भी वाकिफ रहे। वापसी के बाद टीम ने अपनी क्षमता दिखाई और अंतिम दौर के प्रचार में डटे। सरी तरफ जोगेश लाम्बा,अशोक चावलानी के साथ गोपाल मोदी, नवीन पटेल, अमित नवरंगलाल आदि ने मिलकर अंदरूनी तौर पर काम जारी रखा। गोपाल मोदी ने रामपुर के साथ-साथ कोरबा में भी जिम्मेदारी निभाई। लखन के लिए माहौल बनाने जिलाध्यक्ष ने गृहमंत्री अमित शाह सहित यूपी-बिहार के मंत्री,विधायक, डिप्टी सीएम तक की सभा करा दी।वरिष्ठों की एका और कनिष्ठों के टीम वर्क व परिवर्तन की लहर के साथ क्षेत्रीय मुद्दों ने भाजपा की जीत के अंतर को बहुत बड़ा कर दिखाया।
अब श्रेय लेने की होड़
यह अटल सत्य है कि हार का ठीकरा अपने सिर कोई नहीं फोड़वाना चाहता पर जीत का श्रेय लेने की होड़ लगी रहती है। लखन लाल की जीत के बाद यही हो रहा है। जो चेहरे शुरू से मध्य तक पूरी तरह गायब रहे और शहर में रहकर भी खास मौकों में नजर नहीं आये,उनकी टीम तक नहीं दिखी न काम किया, वो भी इस होड़ में शामिल हैं। बहरहाल जीतने के बाद सारे गिले-शिकवे अपने आप ही विलोपित हो जाते हैं,और होना भी चाहिए किन्तु मेहनत को तवज्जो भी देना जरूरी है।