एक दशक बाद पिटलाइन की उपयोगिता हुई सिद्ध , कोचुवेली एक्सप्रेस का मेंटेनेंस के साथ होने लगा उपयोग, 2012 में बनकर तैयार होने के साथ ही शुरु करने को लेकर बना हुआ था संशय

कोरबा। पिटलाइन बनने की शुरुआत 2008-09 में हो गई थी। जिसका शुभारंभ 2012 में करने पहुंचे बिलासपुर जोन के जीएम अरुणेन्द्र कुमार ने अपूर्ण बता दिया था। तब से अब तक पिटलाइन के समकक्ष एक अतिरिक्त लाइन का भी निर्माण कराया गया। इसके बाद भी यह शुरू होगा या नहीं इसे लेकर संशय की स्थिति बनी हुई थी। इतना ही नहीं रेलवे बोर्ड के एक निर्देश का हवाला देते हुए इसकाे शुरू करने की संभावना ही बिलासपुर मंडल के अफसरों ने खत्म कर दी थी। इन सबके बीच अब पिटलाइन का उपयोग शुरू हो गया है।

यह शुरुआत कोचुवेली से कोरबा आने वाली द्वि-साप्ताहिक सुपरफास्ट एक्सप्रेस के मेंटेनेंस से किया जाने लगा है। इस गाड़ी का मेंटेनेंस यहां बुधवार व शनिवार को होने लगा है। जिसके कारण अब इस गाड़ी को मेंटेनेंस के लिए बिलासपुर पिट यार्ड भेजने का सिलसिला भी थम गया है।
कोरबा रेलवे स्टेशन के उरगा एंड पर बना पिटलाइन को लेकर दो माह पूर्व दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के एजीएम विजय कुमार साहू ने कहा था कि शीघ्र ही शुरू होगा इसका उपयोग। उनके इस बयान के बाद से ही मंडल रेल प्रबंधक प्रवीण पाण्डेय के निर्देश पर पिटलाइन की खामियों को दूर करने का काम शुरू कर दिया गया था। सबसे बड़ी समस्या पानी पहुंचाने की थी। क्योंकि पुराना पंप खराब हो चुका था, पानी का स्तर काफी नीचे होने के कारण स्थानीय अधिकारी नए पंप के लिए रिस्क नहीं लेना चाहते थे। इन सभी खामियों को दुरुस्त कर लिया गया है। इसकी शुरुआत कोचुवेली ट्रेन से हो गई है। इस गाड़ी में अब न केवल वाशिंग व वाटरिंग का काम होने लगा है वरन टेक्नीकल टीम द्वारा ट्रेन की बारीकी से जांच कर सुरक्षात्मकढंग से परिचालन के लिए ओके किए जाने का काम भी होने लगा है।

ट्रेन के साथ आता है टेक्नीकल स्टाफ

कोचुवेली एक्सप्रेस जिसका मरम्मत अब तक बिलासपुर में हो रहा था अब कोरबा के पिटलाइन में होने लगा है। इसके लिए कोचुवेली ट्रेन के साथ ही बिलासपुर से 10 सदस्यीय टेक्नीकल स्टाफ यहां आता है और मेंटेनेंस करने के बाद इसी ट्रेन के साथ शाम 7.40 बजे यहां से वापस बिलासपुर के लिए रवाना हो जाते हैं। इस टीम में शामिल सदस्यों ने बताया कि प्रायमरी व सेकेंडरी मेंटनेंस के लिए उन्हें यहां भेजा जाता है। सप्ताह में 2 दिन यहां आकर वे गाड़ी के साथ लौट जाते हैं। ट्रेनों की संख्या बढ़ने पर स्थायी रूप से कोरबा में ही स्टाफ की व्यवस्था की जा सकती है।

प्रारंभ में कुछ माह होता था वाटरिंग व वाशिंग का काम

पिटलाइन बनने के कुछ माह तक लिंक एक्सप्रेस को वहां भेजा जाता था। तब इस गाड़ी में स्थानीय कर्मचारियों द्वारा वाशिंग व वाटरिंग का काम किया जाता था। लेकिन यह काम भी कुछ माह चलने के बाद बंद कर दिया गया। उसके बाद फंड मिलने पर दूसरी लाइन का निर्माण कराया गया। ताकि एक से अधिक गाड़ियां पिट यार्ड में खड़ी हो सकें। इसके बाद से स्टेशन में जगह नहीं होने पर ट्रेनों को वहां भेज दिया जाता था।

आगे इन गाड़ियों के मरम्मत का खुल गया रास्ता

पिटलाइन पर मेंटेनेंस का काम शुरू होने के साथ ही अब अन्य गाड़ियों के बिलासपुर में मेंटेनेंस के बजाय कोरबा में कराए जाने का रास्ता खुल गया है। इन गाड़ियों में कोचुवेली के बाद हसदेव एक्सप्रेस, शिवनाथ एक्सप्रेस, छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस का प्रायमरी व सेकेंडरी मेंटेनेंस यहीं हो सकता है। इतना ही नहीं यहां से चलने वाली मेमू व पैसेंजर गाड़ियों की नियमित साफ सफाई और पीने के पानी की व्यवस्था भी की जा सकेगी।