दीदी को मिलेगा मौका या भाभी पर भरोसा रहेगा बरकरार ,प्रत्याशी बैचैन ,मतदाता बनेंगे तारणहार …..

कोरबा । लोकसभा चुनाव 2024 ने नामांकन शुरू होने के बाद अब रफ्तार पकड़ ली है। कोरबा लोकसभा सीधे केंद्र से निगरानी में है और छत्तीसगढ़ की हॉट सीट बन चुकी है। हाई प्रोफाइल हो चुके कोरबा में यह चुनाव शान्ति वर्सेस क्रान्ति का है जहां पहली बार दोनों तरफ महिला आमने-सामने हैं। एक भाभी तो दूसरी दीदी से संबोधित हैं। भाभी अपने ससुराल में चुनाव लड़ रही हैं तो दीदी ने अपना मायका बता दिया है। लोग इस पर चुटकी लेने लगे हैं कि ससुराल में तो ज्यादा हक भाभी का ही होता है,बेटी तो पराया धन ही होती है। वैसे रिश्ते-नाते और चुनाव में निभाने-निभाने का फर्क है,जिसे मतदाता भली-भांति समझते व निभाते आये हैं लेकिन अभी इनकी खामोशी प्रत्याशियों समेत समीक्षकों को बेचैन किये हुए है।

लखन कितना बनेंगे तारणहार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम की लहर में बह जाने को तत्पर सरोज पांडेय के लिए कोरबा के विधायक, मंत्री लखनलाल देवांगन सारथी बने हैं। मंत्री श्री देवांगन का चेहरा व काम किस हद तक तारणहार बन पाएंगे,यह तो वक्त बताएगा किन्तु प्रत्याशी का आयातित बड़ा तामझाम भी काफी चर्चा में है। कोरबा के सुधि मतदाता बड़े सजग किन्तु खामोशी से तेल और तेल की धार देख रहे हैं….। यक्ष प्रश्न यह भी है कि जिस तरह लखनलाल, नकारात्मक वोटों को भुना ले गए, क्या वे अपनी तरह की जीत दीदी के लिए मुकम्मल करा पाएंगे ?

बाहरी का मुद्दा अंत तक

प्रखर राष्ट्रीय नेत्री की प्रतिष्ठा यहां दांव पर लगी है। उन पर बाहरी होने का मुद्दा विपक्ष ने लपका है जो चुनावी अंत तक कायम संभावित है। वैसे सरोज पांडे का कोरबा आना-जाना संगठनात्मक सिलसिले में विरले होता रहा है लेकिन चर्चाओं में शुमार है कि वे अपेक्षित अपनापन नहीं बना सकीं जबकि वे यहां की पालक सांसद भी रही हैं।

बनावटी मुखौटा, डर कायम

4 माह पूर्व सम्पन्न विधानसभा चुनाव में जनता ने बनावटी मुखौटा उतार कर असली चेहरा दिखा दिया। लोकसभा में भी बनावटी मुखौटा उतरने का डर है और पार्टीजन अन्दर से भयभीत है, ऐसा लोगों का मानना है। बाउन्सर और बाहरी पेड वर्कर चुनाव की नैया पार नहीं लगा सकते क्योंकि इनका स्वयं का कोई प्रभाव नहीं है। किसी भी चुनाव में जातिगत समीकरण बहुत अहम होता है। बहरहाल भाभी वर्सेस दीदी की टक्कर में कोरबा लोकसभा में पिछडा़ वर्ग के मतदाता ही निर्णायक होंगे।

दो कदम तुम भी चलो-दो कदम हम भी चलें

चुनावी झंझावत में जब एक तरफ बड़ा तामझाम है और बंदिशें भी तमाम हैं, तब कांग्रेस प्रत्याशी ज्योत्सना महन्त के साथ पति डॉ.चरणदास महन्त हाथ थामे सहारा दिए हैं। भाभी का वास्ता राजनीतिक परिवार से तो है लेकिन राजनीति के दाँव-पेंच अपेक्षाकृत नहीं जानतीं, तो उन्हें बाहरी आवरण से सजग करने डॉ. महन्त साए की तरह साथ हैं। राष्ट्रीय प्रखर नेत्री के समक्ष गृहणी से राजनीति में आई सौम्य, सरल महिला हैं। अब यह जनता को तय करना है कि विकास क्या सिर्फ क्रान्ति और चीखने-चिल्लाने,गड़े मुर्दे उखाड़ने से ही लाई जा सकती है, या फिर सरलता ,सज्जनता भी काम बनाते हैं…।
लगातार……