भूविस्थापितों को आंदोलन के लिए उकसा रहा एसईसीएल प्रबंधन !मुआवजा राशि के लिए अधिकारी-कर्मियों के लटकाऊ रवैए से परेशान इस नेता ने उतार दिए कपड़े ,जानें पूरा मामला

कोरबा। अगर यह कहें कि एसईसीएल प्रबंधन के चंद अधिकारी और कर्मचारी भू विस्थापितों को बात-बात पर बार-बार आंदोलन करने के लिए उकसाते हैं, तो गलत नहीं होगा। उन्हें कागजों के नाम पर इस कदर परेशान करते हैं कि वह आंदोलन करने पर, विरोध करने पर खदान बंदी करने और कई तरह से प्रदर्शन कर अपनी बातों को रखने के लिए मजबूर हो जाए तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

ऐसा ही एक मामला शनिवार को दीपका महाप्रबंधक कार्यालय में हुआ। अपने अधिग्रहित मकान का मुआवजा लेने के लिए भूविस्थापित नेता मनीराम भारती कार्यालय पहुंचे थे। ऐसे में दीपका प्रबंधन द्वारा उनके दस्तावेजों में कमी बताते हुए उन्हें बाकी औपचारिकताएं पूरी करने की बात कही गई। यह सुनकर मनीराम नाराज हो गए और एस ई सी एल प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए कहने लगे की जब भूविस्थापितों के प्रतिनिधियों को ही एस ई सी एल प्रबंधन परेशान कर रहा है तो आम भूविस्थापितों के साथ कैसा सलूक किया जाता होगा। ऐसा कहते हुए मनीराम भारती वहीं धरना देकर बैठ गए, जिसके बाद प्रबंधन के आला अधिकारी हरकत में आए और महाप्रबंधक सक्सेना ने मामले का संज्ञान लेते हुए तत्काल मुआवजे की राशि को प्रदान करने का निर्देश संबंधित विभाग के अधिकारियों को दिया तब कहीं जाकर देर शाम पीड़ित भूविस्थापित के खाते में मुआवजे की रकम जमा करवाई गई। दरअसल मनीराम भारती के बेटे की शादी तय हुई है, तारीख नजदीक आ गई है परंतु प्रबंधन के अधिकारी दस्तावेजी कार्यवाही को धीमी गति से चला रहे थे, ऐसे में उनका आक्रोशित होना लाजमी था। हालांकि दीपका महाप्रबंधक के संज्ञान लेने के बाद मामला शांत हुआ और मनीराम संतुष्ट दिखे।

एसी में बैठने वाले समझें भू विस्थापित परिवारों का दर्द

इस तरह का कोई एक प्रकरण नहीं है बल्कि कई अधिकारियों और वर्षों से जमे कर्मचारियों की हठधर्मिता, कार्य के प्रति निष्क्रियता, फाइलों को निपटाने के प्रति उदासीनता और भूविस्थापितों को बेवजह परेशान करने तथा कई मामलों में लेन-देन की मंशा पूरी न होने पर कागजों और दस्तावेजों में कोई ना कोई कमी बात कर, रिकॉर्ड के एंट्री में छुट्टी सुधार की जरूरत बता कर बार-बार बेवजह चक्कर पर चक्कर लगवाए जाते हैं। इसमें अधिकारियों और कर्मचारियों का कुछ नहीं बिगड़ता क्योंकि उन्हें तो सरकार से मोटी तनख्वाह मिल रही है, लेकिन जिस भूविस्थापित का घर,खेत, मकान सब कुछ खदान में चला गया और वह नौकरी, रोजगार, रोजगार के साधन और मुआवजा के साथ-साथ बसाहट के लिए भटक रहा है तो उसका दर्द वह स्वयं और उसका परिवार ही जान सकता है। एसी रूम में बैठने वाले अधिकारी व प्रबंधन को चाहिए कि मुआवजा प्रक्रिया में सरलता के साथ प्रभावितों की समस्याओं का निराकरण किया जाए जिससे ऐसी स्थितियां उत्पन्न ना हों।