कोरबा। कोरबा जिले में कटघोरा वन मंडल में पदस्थ रहे पूर्व अधिकारियों के संरक्षण में कुछ मैदानी अधिकारी व कर्मचारियों ने ऐसे-ऐसे कमाल किए हैं कि उनकी तारीफ में शब्द भी कम पड़ जाएं। इन्होंने एक ऐसा भी कारनामा कर दिखाया है जो न सिर्फ चौंकाने वाला है बल्कि कैम्पा मद में हुए भ्रष्टाचार की कहानी को भी बयान करता है।
हमने एक मामला सामने लाया जिसमें कटघोरा वन मंडल के पसान वन परिक्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत पिपरिया में सिंचित रोपणी के नाम पर भ्रष्टाचार उजागर हुआ है। 265 हेक्टेयर क्षेत्रफल में पौधारोपण तो कागजों में हुआ है लेकिन विभागीय जांच में ही पता चला कि 135 हेक्टेयर क्षेत्रफल भूमि तो यहां है ही नहीं तो फिर इसके पौधे कहां गए? यह सवाल अभी चर्चा में बना हुआ है कि दूसरी तरफ बोर खनन के नाम पर बड़ा गड़बड़झाला भी सामने आया है
यह है मामला
दरअसल वर्ष 2021 में दो पार्ट 150 व 115 हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपे गए पौधों की सिंचाई के लिए पार्ट-1 में 12 व पार्ट-2 में 9 नग बोर का खनन वन विभाग द्वारा कराया गया। स्थानीय सूत्र बताते हैं कि चार दिन के भीतर 21 नग बोर का खनन पूर्ण कर दिया गया। यह बहुत बड़ा कमाल है जो कम समय में वन विभाग के अधिकारियों ने 21 बोर खनन करा दिए। अब बोर तो खुदवा दिया गया, मोटर भी लगवा दिए गए लेकिन सवाल था इसे चलाया कैसे जाए..?
किराये पर मंगाया जनरेटर
बताया गया कि इस इलाके में 11000 केव्ही का करंट तो दौड़ता है लेकिन सिंचित रोपणी एरिया के आसपास ना तो कोई ट्रांसफार्मर है और ना ही कोई विद्युत कनेक्शन। 2022 में खनन कराए गए 21 नग बोर को चलाने की चुनौती थी। इससे पहले उनकी टेस्टिंग भी जरूरी थी, लिहाजा तत्कालीन स्टाफ ने पसान से किराए पर जनरेटर मंगवाया। तीन से चार दिन तक जनरेटर के जरिए सभी बोर की टेस्टिंग करीब 15-15 मिनट तक बोर चला कर की जाती रही। इसके बाद जनरेटर भी खराब हो गया तो उसे वापस लौटा दिया गया। तब से लेकर आज तक बोर चले नहीं, मोटर में करंट दौड़ा नहीं और इस अवधि में 8-9 नग मोटर भी चोरी चले गए। इस पूरे कार्य में नियोजित रहे शख्स ने बताया कि जब बोर चला ही नहीं तो रोपणी के पौधों को पानी कहां से मिलेगा, और धीरे-धीरे पौधे मरते चले गए। बताया गया कि अभी 27-28000 पौधों का रोपण अगस्त-सितंबर 2023 में किया गया लेकिन इन पौधों को भी पानी नसीब नहीं हुआ है। वर्ष 2022 में कराए गए 21 नग में से 8 बोर के मोटर चोरी भी हो गए। 13 नग मोटर सुरक्षित बचा लिए गए हैं।
अब सवाल तो कायम है कि जब यहां बिजली का कनेक्शन नहीं था तो बोर खनन क्यों कराया गया, बोर खनन करने से पहले कनेक्शन क्यों नहीं खींचे गए या बोर खनन करने के बाद बिजली विभाग से कनेक्शन क्यों नहीं लिया गया? आखिर 21 नग बोर करने में खर्च किए गए राशि और सिंचाई न होने के कारण बर्बाद हुए पौधों में लगे रूपयों की भरपाई कैसे और किस-किस से होगी..?
इन्होंने बताया सब कुछ ओके था
इस मामले में हमारी बात वर्तमान पसान रेंजर श्री दहायत से तो नहीं हो सकी लेकिन तत्कालीन रेंजर धर्मेंद्र चौहान, जिनके कार्यकाल में यह सारे कार्य हुए थे उनकी माने तो डेढ़ साल पहले जब वे पदस्थ थे तब सारे पौधे जीवित थे और खुदवाए गए 19 बोर सभी के सभी चालू हालत में थे और इससे पौधों की सिंचाई भी हो रही थी।इनका कहना है कि पौधों की रोपणी के लिए जमीन भी मिसिंग नहीं है, जिओ टैगिंग के जरिए सत्यापन बाद सारा काम सेक्शन हुआ और कोई भी बोर उस समय तक बंद नहीं था। हालांकि डेढ़ साल पहले इनका तबादला कोरबा कर दिया गया है और वर्तमान में नारंगी क्षेत्र में कार्य संभाल रहे हैं। डेढ़ साल पहले इन्होंने रेंजर रामनिवास दहायत को कार्यभार सौंपने के साथ-साथ रोपणी से संबंधित सभी दस्तावेज भी हैंडओवर कर दिए। अब अगर धर्मेंद्र चौहान की मानें तो सारे बोर चल रहे थे, लेकिन यह भी आश्चर्यजनक है कि बिना बिजली कनेक्शन के यह सब कैसे संभव होता रहा?