मणिपुर। मणिपुर में एक बार फिर हालात बिगड़ते जा रहे हैं। स्थिति को काबू में करने के लिए दंगा नियंत्रण वाहनों के साथ आरएएफ को बुलाया गया है। प्रदर्शनकारियों ने सड़कें ब्लॉक कर दी हैं और पुलिस को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है।
लगातार पथराव हो रहा है. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए दूसरी तरफ से पुलिस ने भी आंसू गैस के गोले दागे हैं. पूरे मणिपुर में 15 सितंबर तक इंटरनेट भी बंद कर दिया गया है।
मणिपुर में हिंसा का नया दौर
सितंबर के पहले हफ्ते से मणिपुर में हिंसा का वही रूप देखने को मिल रहा है जो 2023 में जुलाई, अगस्त के महीने में देखा गया था। ड्रोन से हवाई बमबारी से लेकर आरपीजी लॉन्च करने और अत्याधुनिक हथियारों के इस्तेमाल ने स्थिति को संवेदनशील बना दिया है। घाटी में हत्याओं के बाद कोओर्डिनेटिंग कमेटी की ओर से ‘सार्वजनिक आपातकाल’ की घोषणा की गई है।
COCOMI (कोओर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी) ने एक कड़ा अल्टीमेटम जारी किया है, जिसमें भारतीय सशस्त्र बलों से पांच दिनों के भीतर संकट से निपटने के लिए ठोस कार्रवाई की मांग की गई है। इसमें कहा गया है कि ऐसा न होने पर, लोगों द्वारा अपनी और मूल आबादी की रक्षा के लिए कठोर कदम उठाए जाएंगे, जिसमें मणिपुर से केंद्रीय बलों का निष्कासन भी शामिल है।
सेना ने तैनात किए एंटी ड्रोन सिस्टम
मणिपुर में 3 मई 2023 से हिंसा का दौर शुरू हुआ था. लेकिन 16 महीने बाद भी राज्य में शांति बहाल नहीं हुई. जिरीबाम जिले में शनिवार को हुई ताजा हिंसा में 5 लोगों की मौत हो गई. मणिपुर में हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वहां हिंसा में शामिल दोनों समुदायों के पास अब ऐसे हथियार हैं जिनका इस्तेमाल आमतौर पर युद्ध में किया जाता है. सेना इस कदर मजबूर है कि उन्हें एंटी ड्रोन सिस्टम तैनात करने पड़े हैं. पहाड़ों और घाटियों में लोगों ने बंकर बना रखे हैं।
क्यों नहीं थम रही हिंसा?
ये पूरी लड़ाई दो जातीय समूह कुकी और मैतई के बीच की है। ज्यादार मैतई समुदाय के लोग घाटी में रहते हैं और वहीं कुकी समुदाय के लोग पहाड़ों पर रहते हैं। हिंसा के बाद तो इन दोनों समुदायों का एक-दूसरे के स्थानों पर जाना बिलकुल बंद सा है। यही अलगाव हिंसा न थमने का एक बड़ा कारण भी है।
दोनों की अलग-अलग लोकेशन होने के चलते पूरा इलाका एक सरहद में बदल गया है। रिपोर्ट के अनुसार, दोनों ने अपने लिए सेफ बंकर बना लिए हैं। भारी मात्रा में हथियार दोनों के पास ही मौजूद हैं। जिससे जब मौका मिलता है तब वो एक-दूसरे पर हमला करते हैं और फिर बंकर में छिप जाते हैं। घाटी और पहाड़ी होने के चलते उन्हें रोक पाना भी मुश्किल हैं।
अब तक 200 की मौत
पिछले साल 3 मई को मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के बाद भड़की जातीय हिंसा के बाद से मणिपुर में अबतक 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।
मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नागा और कुकी शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं। बता दें कि इस हिंसा के चलते हजारों की संख्या में लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं।