शांति में खलल डालने वाले लोगों पर कार्रवाई करने में क्या अब पुलिस के हाथ कॉपेंगे….?गलत कार्य में भी बढ़ता राजनीतिक दबाव ! कितना सही-कितना गलत ……

कोरबा। अपराधियों, खुरापातियों और उद्दण्ड लोगों, अवैध काम करने वालों के साथ-साथ शांति में खलल डालने वाले लोगों पर कार्रवाई करने में क्या अब पुलिस के हाथ कॉपेंगे….?

ऐसा सवाल आम लोगों के मन में इसलिए उठने लगा है क्योंकि जिस तरह से गतिविधियां हो रही हैं, वह ठीक नहीं कही जा रही। इसका एक उदाहरण तो कबाड़ के मामले में देखने और सुनने को मिलता है जब एक रेगुलर चोरी का माल खरीदने वाले कबाड़ी पर कार्रवाई करने की बात आती है तो कई पुलिस अधिकारी व कर्मियों के मुंह से अनायास ही सुनने को मिलता है कि, अरे भैया उसे पर हाथ डालोगे तो कोर्ट कचहरी झेलना पड़ेगा। मतलब कि काम भी गलत-तरीका भी ठीक नहीं और ऊपर से खाकी पर डर का दबाव। नतीजा यह है कि पुलिस की नाक के नीचे अवैध कबाड़ का काम चल रहा है।
दूसरा मामला दीपका थाना क्षेत्र में सामने आया जब उधम मचाते हुए, बाइक पर स्टंट कर लोगों को भयभीत कर रहे युवक पर पुलिस कर्मियों ने कार्रवाई की तो उन दो ASI खगेश राठौर व जितेश सिंह को बढ़ते राजनीतिक दबाव के कारण विभागीय सजा भुगतनी पड़ी है। घटना स्थल पर मौजूद कोई भी शख्स जिसने इस पूरे वाकये को देखा, वह पुलिस कर्मियों की कार्रवाई को गलत नहीं ठहरा रहा बल्कि लोगों का मानना है कि इस तरह से खुलेआम लोगों को परेशानी में डालने वालों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए ताकि वह दोबारा ऐसी गलती ना करें। हालांकि आम जनता के बीच पुलिस की छवि को बेहतर बनाने की कवायदों और बात-बात पर होती बेवजह की राजनीतिक दखल के बीच सार्वजनिक रूप से इस तरह से दण्ड देने को एक कप्तान होने की हैसियत और नजरिए से भले ही गलत कहा जा सकता है, लेकिन यह भी तो है कि ऐसे लोगों को भैया-दादा बोलकर मान-मनुहार कर,हाथ जोड़कर मनाया भी तो नहीं जा सकता। फिर,कुछ हो जाए तो यह आरोप कि पुलिस मूकदर्शक बनी रही। अगर इसी तरह से उद्दण्डता करने वालों के कारनामों पर कार्रवाई करने के बाद सजा मिलती रही तो भला कौन पुलिस कर्मी सजा का भागीदार बनना चाहेगा और ऐसे लोगों पर कार्रवाई क्यों कर अपनी मुसीबत बढ़ाना पसन्द करना चाहेंगे। बाइकर को सबक सिखाते एक पक्षीय वायरल वीडियो के आधार पर व एक नेता के दरबार में लगी हाजिरी के बाद दोनों पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही की गई है।

आधिकारिक तौर पर सही,व्यवहारिक में गलत

आधिकारिक तौर कप्तान का निर्णय उनके अधिकार क्षेत्र और विवेक से सही भी हो, लेकिन व्यावहारिक दृष्टिकोण से इस तरह की कार्रवाई को लोग ही अनुचित ठहरा रहे हैं। यह किसी का पक्षपात नहीं बल्कि बदलते दौर के साथ अपराध करने की, सामाजिक गतिविधियों को बिगाड़ने की बदलते तरीकों से तत्काल निपटने का भी एक तरीका है। आज गली- मोहल्ले में नशा की हालत में जिस तरह से लोग उद्दण्डता कर रहे हैं और करते नजर आते हैं, उन पर आम लोग हाथ डालने से कतराते हैं,तब ऐसे में पुलिस की ओर ही हसरत भरी निगाहों से ताकते हैं कि वही इन्हें सबक सिखाएगी। अब, जब ऐसे उधमी लोगों पर डंडा नहीं बरसेगा तो क्या वह खातिरदारी से सुधरेंगे, इस पहलू को भी गौर से समझने की जरूरत है। जरूरतमंद लोगों पर डंडा बरसे तो उससे पुलिस की छवि धूमिल नहीं होगी बल्कि और निखरेगी। हां, यह जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी सज्जन/बेकसूर के साथ ऐसा ना हो। यह भी सही है कि कुछ पुलिसकर्मियों की हरकतों से विभाग की छवि धूमिल होती है लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं है। सांठगांठ रखने वाले मुखबिरनुमा कर्मियों पर जरूर सख्ती बरतने की जरूरत है।

गेवरा स्टेडियम का है मामला

बताते चलें कि यह मामला गेवरा स्टेडियम में 11 सितम्बर की रात का है। यहां उद्दंडता के साथ व्यवस्था का उल्लंघन करने पर युवक की मौके पर ही खातिरदारी की गई। उसके खिलाफ मोटर व्हीकल एक्ट के तहत 5 हजार का जुर्माना भी किया गया। युवक के उत्पात से कई लोग चपेट में आने से बचे। सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान उपस्थित स्थानीय लोगों ने बताया कि उत्पाती युवक नशे में लग रहा था, जो कार्यक्रम स्थल स्टेडियम परिसर में तेजरफ्तार और सायलेंसर के तेज आवाज के साथ बाइक चलाते हुए स्टंटबाजी कर रहा था। इस दौरान वहां मौजूद कई लोग उसकी बाइक की चपेट में आने से बच गए। तीन बच्चे तो बाइक से दबने से बाल-बाल बच गए। लोगों ने उत्पाती युवक को सबक सिखाने वाले पुलिस कर्मियों पर विभागीय कार्रवाई को गलत बताया है। महिलाओं व बच्चों के परेशान होने की सूचना पर दोनों ASI मौके पर पहुंचे थे, जहां युवक को रोकने की कोशिश करने पर वह उनके ऊपर ही बाइक चढ़ाने की कोशिश कर रहा था। तब उसे सबक सिखाने कड़ाई दिखाई गई और विधिवत कार्रवाई भी की।