पहली बार चुनावी मैदान में उतरीं प्रियंका गांधी ,वायनाड से भरा पर्चा, जानें कांग्रेस महासचिव का अमेठी ,रायबरेली के रास्ते वायनाड पहुंचने तक की कहानी ….

केरल। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी पहली बार चुनावी मैदान में उतरी हैं। उन्होंने 23 अक्टूबर को केरल की वायनाड लोकसभा सीट से अपना पर्चा दाखिल कर दिया। पर्चा दाखिल करने से पहले उन्होंने एक रोड शो किया, जिसमें उन्होंने कहा कि वो पिछले 35 साल से चुनाव प्रचार कर रही हैं। लेकिन पहली बार अपने लिए वोट मांग रही हैं।

वहीं राहुल गांधी ने बहन के लिए प्रचार करते हुए कि वायनाड के अब दो सांसद हैं एक औपचारिक और एक अनौपचारिक
ये सीट पहले उनके भाई राहुल गांधी के पास थी। उन्होंने दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा था। वायनाड और रायबरेली। अब पार्टी ने उनकी बहन प्रियंका गांधी के चुनावी डेब्यू के लिए वायनाड सीट को चुना है। वायनाड सीट पर 13 नवंबर को वोटिंग होगी। मतगणना 23 नवंबर को होगी।
राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी की उम्मीदवारी का समर्थन करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ”वायनाड के लोगों के लिए मेरे दिल में खास जगह है। मैं उनके प्रतिनिधि के तौर पर अपनी बहन से बेहतर किसी उम्मीदवार की कल्पना नहीं कर सकता था। मुझे उम्मीद है वो वायनाड की ज़रूरतों के लिए जी-जान से काम करेंगी और संसद में एक मजबूत आवाज़ बन कर उभरेंगीं।
अगर प्रियंका गांधी जीतती हैं तो गांधी परिवार के मौजूदा तीनों सदस्य सांसद हो जाएंगे। राहुल गांधी ने लोकसभा के सदस्य हैं जबकि उनकी मां सोनिया गांधी राज्यसभा में हैं। प्रियंका गांधी चुनाव जीतने के बाद लोकसभा की सदस्य बनेंगीं।

तीन दशक से पर्दे के पीछे से राजनीति

प्रियंका गांधी कांग्रेस की राजनीति में पर्दे के पीछे से तो काफी लंबे समय से सक्रिय रही हैं। 1990 के दशक के आख़िरी वर्षों से ही वो अपनी मां सोनिया गांधी के चुनाव अभियानों का जिम्मा संभालती रही हैं।
इसके अलावा 2004 में जब उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट से राहुल गांधी सक्रिय राजनीति में आए तो प्रियंका गांधी ने ही उनके लिए जोरदार जनसंपर्क अभियान चलाया था।
लेकिन उन्होंने खुद को बैकग्राउंड में ही रखा। पहली बार उनकी राजनीति में आधिकारिक एंट्री 2019 को लोकसभा चुनाव से पहले हुई जब उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चुनावी अभियान का प्रभारी बनाया गया। लेकिन कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी।
इसके बाद 2022 में यूपी के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहा। तब उनके आलोचकों ने कहा था कि प्रियंका गांधी के तौर पर कांग्रेस का तुरूप का पत्ता चूक गया।
2019 के जब प्रियंका गांधी को कांग्रेस महासचिव बनाया गया था तो ये चर्चा थी कि वो अपनी मां की पारंपरिक सीट रायबरेली से चुनाव लड़ सकती हैं। यहां तक कि उन्हें चुनाव में खड़े होने की अपील करते हुए पोस्टर भी लग गए थे। लेकिन उन्हें चुनाव मैदान में नहीं उतारा गया।

प्रियंका गांधी का चुनाव लड़ना क्यों अहम

सवाल उठता है कि आख़िर कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को चुनाव में अब उतारने का फैसला क्यों किया।
कांग्रेस की राजनीति को समझने वाले विश्लेषकों का मानना है कि ये बिल्कुल सही समय था। कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया और वो संसद में काफी मुखर नज़र आ रही है। अगर प्रियंका भी लोकसभा पहुंचती हैं तो वह अपने भाई के साथ मिल कर मोदी सरकार को और अच्छी तरह से घेर सकती हैं। वायनाड उनके लिए आसान सीट साबित हो सकती है क्योंकि राहुल गांधी यहां काफी लोकप्रिय साबित हुए हैं।
प्रियंका गांधी ने वायनाड के वोटरों से अपील करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा,” 1989 में मैंने 17 साल की उम्र में पहली बार अपने पिता के लिए चुनाव प्रचार किया था। इस बात को 35 साल हो गए हैं। इस दौरान मैंने अपनी मां, भाई और अपने कई सहकर्मियों के लिए अलग-अलग चुनावों में प्रचार किया। लेकिन ये पहली बार है जब अपना चुनाव प्रचार कर रही हूं।

उन्होंने लिखा, ” मैं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जी की दिल से आभारी हूं कि उन्होंने मुझे यूडीएफ का उम्मीदवार बनने का मौका दिया। वायनाड से पार्टी उम्मीदवार बनने में अपने परिवार के समर्थन के लिए भी मैं आभारी हूं। अगर आप मुझे अपना प्रतिनिधि बनाएंगे तो ये मेरे लिए सम्मान की बात होगी।

दादी इंदिरा गांधी से होती है तुलना

भारतीय मतदाताओं एक वर्ग में प्रियंका गांधी को पसंद भी किया जाता रहा है. लोग प्रियंका में उनकी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की झलक देखते हैं।
उनका मानना है कि वो इंदिरा गांधी जैसी मज़बूत इच्छाशक्ति वाली महिला हैं और भारतीय राजनीति की चुनौतियों का बखूबी सामना कर सकती हैं।
प्रियंका गांधी राहुल गांधी के उलट अपने पिता राजीव गांधी की राजनीतिक उत्तराधिकारी समझी जाती रही थी। यहां तक कि आतंकवादी हमले में मारे गए उनके पिता के अंतिम संस्कार के दौरान भी लोग ये उम्मीद कर रहे थे कि प्रियंका ही कांग्रेस के नई नेता होंगीं।
लेकिन इसके बाद प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में नहीं उतरीं। पिता की मौत के बाद पहली बार प्रियंका गांधी सार्वजनिक तौर पर तब दिखीं, जब बिज़नेसमैन रॉबर्ट वाड्रा से उनकी शादी हो रही थी।

मुश्किल वक़्त में दिया मां और भाई को सहारा

ऐसा माना जाता है कि 1990 के दशक के आख़िर में जब कांग्रेस नेतृत्व के सवाल पर संघर्ष करती हुई दिख रही थी और सोनिया गांधी ने राजनीति में न आने का फैसला कर लिया था तो प्रियंका गांधी ने ही पर्दे के पीछे हालात संभाले थे।
इसके बाद वो लगातार अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी को राजनीति में आगे बढ़ने में मदद करती रहीं। पिछले कुछ सालों के दौरान जब राहुल गांधी ने भारत जोड़ो अभियान के दौरान लंबी यात्राएं कीं तो वो उनके साथ लगातार बनी रहीं।
लेकिन 2019 से 2024 के बीच लोगों ने प्रियंका गांधी को सामने आकर कांग्रेस में सक्रिय भूमिका निभाते देखा। इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा और पार्टी के अंदर और बाहर उन्हें चुनावी राजनीति में उतारने की मांग बढ़ने लगी।