MP : इस डॉक्टर ने लिखा मौत का कफ सिरप , 10 बच्चों की मौत के बाद एक्शन में मोहन सरकार डॉक्टर गिरफ्तार ,फार्मा.संचालकों पर FIR ,जानें इस जहरीली सिरप के बारे में …..

मध्यप्रदेश। छिंदवाड़ा में 10 बच्चों की मौत के बाद प्रशासन ने बड़ी कार्रवाई करते हुए कफ सिरप लिखने वाले डॉक्टर प्रवीण सोनी को शनिवार देर रात गिरफ्तार कर लिया है। इससे पहले शनिवार को ही परासिया थाना में डॉक्टर प्रवीण सोनी और कोल्ड्रिफ सिरप बनाने वाली कंपनी sresun फार्मास्युटिकल के संचालकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गयी थी।

मामले में ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक एक्ट की धारा 27(A), बीएनएस की धारा 105 और 276 के तहत केस दर्ज किया गया है। डॉक्टर के खिलाफ परासिया सीएचसी से बीएमओ अंकित सहलाम ने शिकायत की थी। छिंदवाड़ा में मरने वाले ज्यादातर बच्चों को कफ सिरप डॉक्टर प्रवीण सोनी ने ही लिखी थी। जिस सिरप से बच्चों की मौत हुई थी, उसकी जांच रिपोर्ट शनिवार देर रात आई थी।रिपोर्ट में पाया गया कि कोल्ड्रिफ कफ सिरप में डायएथिलीन ग्लाइकोल की मात्रा 48.6% थी. जिससे स्वास्थ्य को गंभीर क्षति पहुंच सकती है।

👉इन राज्यों में प्रतिबंध,छत्तीसगढ़ में सप्लाई नहीं

इस सिरप को पीने से राजस्थान और मध्यप्रदेश में 12 बच्चों की मौत हो गई है। मध्यप्रदेश और तमिलनाडु में यह सिरप बैन कर दी गई है, वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सिरप के नमूने लेकर जांच करवा रही है। इस सिरप की निर्माता कंपनी तमिलनाडु कांचीपुरम स्थित श्रीसन फार्मा है। इसकी जांच में अत्याधिक मात्रा में डाइएथिलीन ग्लाइकॉल ( डीईजी) पाई गई है। राज्य शासन के स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि तमिलनाडु की इस कंपनी की कफ सिरप की छत्तीसगढ़ में सप्लाई नहीं हैं। लोगों में भ्रम न फैले, इसलिए इस सिरप को भी छत्तीसगढ़ में भी प्रतिबंधित करेंगे।

जानिए इस जहर के बारे में :👇

डायएथिलीन ग्लाइकोल (Diethylene Glycol – DEG) क्या है?
जानकारों के मुताबिक डायएथिलीन ग्लाइकोल एक औद्योगिक केमिकल है, जिसका उपयोग सामान्यतः एंटीफ्रीज़ (गाड़ियों के रेडिएटर में),पेंट, प्लास्टिक, और सॉल्वेंट बनाने में किया जाता है।

❌ यह मानव उपयोग के लिए नहीं होता, यानी दवाओं या खाने में इसका इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। कभी- कभी गलती या लापरवाही से इसे ग्लिसरीन या प्रोपलीन ग्लाइकोल (जो सुरक्षित सॉल्वेंट होते हैं) की जगह दवाओं में मिला दिया जाता है।

💧किसी भी दवा या सिरप में डायएथिलीन ग्लाइकोल की स्वीकार्य मात्रा 0% होनी चाहिए, यानी यह बिलकुल नहीं होना चाहिए। अगर यह पाया जाता है, तो वह दवा मानव उपयोग के लिए “असुरक्षित और जहरीली” मानी जाती है।

☠️ अगर इसकी मात्रा ज्यादा हो जाए तो क्या होता है?
डायएथिलीन ग्लाइकोल तेज़ ज़हर की तरह काम करता है। इसके प्रभाव किडनी, लिवर और नर्वस सिस्टम पर बहुत घातक होते हैं।

👉 विषाक्तता के लक्षण:

उल्टी, चक्कर, और पेट दर्द, पेशाब बंद होना (किडनी फेल्योर का संकेत), सांस लेने में तकलीफ़, बेहोशी या कोमा के अलावा बच्चों में कुछ ही घंटों में मौत तक हो सकती है

👉🧠 यह शरीर में क्या करता है?

जब यह शरीर में जाता है, तो लिवर इसे तोड़कर टॉक्सिक मेटाबोलाइट्स (जहरीले यौगिक) बनाता है जो किडनी की नलियों को नष्ट कर देते हैं, और शरीर से विषैले पदार्थ बाहर नहीं निकल पाते। परिणामस्वरूप रक्त में ज़हर फैलता है, जिससे मौत भी हो सकती है।
डायएथिलीन ग्लाइकोल दवा में “शून्य” मात्रा में ही स्वीकार्य है।48.6% जैसी मात्रा बहुत ही घातक और जानलेवा है। यह पूरी तरह से मानव उपयोग के लिए प्रतिबंधित केमिकल है, फिर भी यह दवा कम्पनी इसका सीरप में इस्तेमाल कर रही थी जो अक्षम्य और कठोर दंडनीय अपराध है।